Brain & Nervous System, Mental Health

पार्किन्सोनिज़्म, (Parkinsonism) – एक जटिल और गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्या

परिचय
पार्किन्सोनिज़्म ( Parkinsonism) जिसे पार्किंसन रोग (Parkinson’s Disease) भी कहते हैं एक महत्वपूर्ण और जटिल डिजेनेरेटिव न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (तंत्रिकाओं के स्वत: कमजोर होते जाने वाला रोग) है जो आमतौर पर बढ़ती उम्र के साथ विकसित होता है और धीरे-धीरे रोगी के शरीर की गतियों को प्रभावित करता है।

पार्किंसन रोग का कारण
हमारे मस्तिष्क में कुछ विशेष तंत्रिकाएं होती हैं जिन्हें डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स (dopaminergic neurons) कहते हैं। इनमें डोपामिन (Dopamine) नाम का एक विशेष केमिकल होता है। ये तंत्रिकाएं मांसपेशियों की गति को संतुलित और नियंत्रित करने में मदद करती हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, कुछ व्यक्तियों में डोपामिन बनाने वाली कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं, जिससे शरीर में गति नियंत्रण प्रभावित होता है।
इसका मुख्य कारण अभी पूरी तरह ज्ञात नहीं है, लेकिन उम्र, अनुवांशिकता एवं वातावरण में मौजूद कुछ तत्व  इसके रिस्क फैक्टर्स माने जाते हैं। आयु बढ़ने के साथ मस्तिष्क के अन्य भागों में होने वाले क्षय (degeneration) से डिमेंशिया के साथ पार्किन्सोनिज़्म के लक्षण भी उत्पन्न हो सकते हैं।

कुछ बीमारियों में मस्तिष्क के बेसल गैंग्लिया (जहाँ डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स होते हैं) को नुकसान पहुँचने से पार्किन्सोनिज़्म जैसी बीमारी बन जाती है। इन में से मुख्य हैं – हीमैक्रोमैटोसिस (अत्यधिक आयरन जमा होने की बीमारी) या विल्सन डिज़ीज़ (अत्यधिक कॉपर जमा होने की बीमारी)। ये बीमारियाँ युवा लोगों में भी पायी जा सकती हैं। मुक्केबाजों में बार बार सर पर गंभीर चोट लगने से भी इस प्रकार की बीमारी हो सकती है। कुछ दवाएं डोपामीन के असर को ब्लॉक करती हैं, उनके सेवन से कुछ लोगों में पार्किन्सोनिज़्म के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। दवा बंद करने पर ये लक्षण ख़त्म हो सकते हैं। इनमें से मुख्य हैं – उल्टी की दवाएं Metoclopramide (Perinorm), Siquil, उल्टी व चक्कर की दवा Prochlorperazine (Stemetil), एसिडिटी की बहुत सी दवाओं में मिक्स Levosulpride एवं मानसिक रोगों की बहुत सी दवाएं जैसे Chlorpromazine, Haloperidol, Olanzapine आदि।

पार्किंसन रोग के प्रमुख लक्षण
पार्किंसन के लक्षण धीरे-धीरे बढ़ते हैं और समय के साथ गंभीर होते जाते हैं। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:

  • चेहरे का भावहीन दिखाई देना (mask face)
  • हाथ, पैर, गर्दन या होंठ में कंपन (Tremors)
  • शरीर की गति का धीमा हो जाना (Bradykinesia)
  • मांसपेशियों का कठोर हो जाना (Rigidity) एवं शरीर का झुक जाना
  • चलने में अस्थिरता और संतुलन में समस्या (Postural Instability)
  • चलते समय हाथों का न हिलना व कोहनियों एवं घुटनों का थोड़ा मुड़ा रहना  
  • बोली अस्पष्ट और धीमी होते जाना
  • लिखावट छोटी और अस्पष्ट होती जाना (micrographia)
  • झुक कर चलना और गिरने की प्रवृत्ति होना
  • पैर घिसट कर छोटे छोटे कदम रख कर चलना (short shuffling steps)

रोग की प्रकृति और प्रगति
पार्किंसन एक धीमे-धीमे बढ़ने वाला रोग है। इसमें समय के साथ मस्तिष्क में डोपामिन की मात्रा लगातार घटती जाती है, जिससे रोग के लक्षण भी गंभीर होते जाते हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्किंसन रोग का अभी तक कोई स्थायी इलाज (Cure) उपलब्ध नहीं है। इसका दवाओं से कुछ हद तक नियंत्रण किया जाता है एवं मरीज को दैनिक कामों में जो भी सहायता संभव हो उपलब्ध कराई जाती है।

पार्किंसन का इलाज और दवाएँ

  • पार्किंसन रोग में दी जाने वाली दवाएँ जैसे कि लेवोडोपा (Levodopa) या डोपामिन एगोनिस्ट्स (Dopamine Agonists) शरीर में डोपामिन के प्रभाव को बढ़ाने का कार्य करती हैं।
  • दवाएँ रोग को ठीक नहीं करतीं, बल्कि लक्षणों को कुछ समय के लिए कम करती हैं। दवाओं का असर सीमित समय तक रहता है। जैसे ही दवा का प्रभाव कम होता है, लक्षण फिर से प्रकट हो जाते हैं।
  • समय के साथ जैसे-जैसे डोपामिन बनाने वाले न्यूरॉन्स की संख्या और घटती है, दवा की डोज बढ़ानी पड़ती है।
  • दवा के साथ कई बार साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं, जैसे उलझन, मनोविकृति (Psychosis), अचानक नींद आना, ब्लड प्रेशर गिरना, हाथ पैरों का अधिक चलने लगना आदि।
  • जीवनशैली में कुछ सुधार, जैसे कि नियमित व्यायाम, फिजियोथेरेपी, संतुलित आहार और मानसिक समर्थन से रोगी की जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है।

रोग प्रबंधन में कठिनाई

  • रोगी और उनके परिजनों के लिए यह समझना कठिन होता है कि दवाओं से रोग सिर्फ कुछ हद तक नियंत्रित होता है। दवाओं की डोज़ बढाने से उनके साइड इफेक्ट्स अधिक होने लगते हैं इसलिए ऐसी डोज़ सेट करनी पड़ती है जिससे मरीज का यथासंभव काम चलता रहे और नुकसान भी कम हो।
  • बढ़ती बीमारी के साथ यह स्थिति और जटिल होती जाती है।
  • कुछ मामलों में, शल्य चिकित्सा जैसे डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (Deep Brain Stimulation) का सहारा लिया जा सकता है, लेकिन यह भी केवल लक्षणों को कुछ हद तक कम करने में मदद करता है, बीमारी को खत्म नहीं करता।

निष्कर्ष
पार्किंसन रोग एक गंभीर समस्या जिसके इलाज में स्वयं मरीज और उसके परिजनों में बहुत समझदारी और धैर्य होना आवश्यक है। रोगियों और परिजनों को इस रोग की प्रकृति को सही तरीके से समझना चाहिए और रोगी को शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर पूरा समर्थन देना चाहिए। सही उपचार और धैर्य से रोगी लंबे समय तक एक सक्रिय और गरिमापूर्ण जीवन जी सकते हैं।

डॉ. शरद अग्रवाल एम. डी.

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