हैल्थ टिप्स ( Health tips )
यदि कोई व्यक्ति अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गया है तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाएं. डॉक्टर को घर बुलाने की कोशिश में समय नष्ट ना करें. एक अकेला डॉक्टर घर पर गंभीर मरीज की ठीक से सहायता नहीं कर सकता.
शरीर का कोई अंग जल जाए तो उस पर तुरंत बहता हुआ पानी डालें. यदि खाल में छाला बन जाए तो उस हिस्से की खाल को हटाए नहीं व उस पर कोई भी चीज न लगाएं. शीघ्र ही डॉक्टर को दिखाएं. बरनोल कभी न लगाएं.
छोटे मोटे कटे या छिले घाव को साफ करने के लिए पानी में रूई को उबालकर थोड़ा ठंडा करके उसे साफ करें. डेटॉल, सेवलोन प्रयोग ना करें. सर्जिकल स्पिरिट या आफ्टर शेव लोशन से भी साफ कर सकते हैं. बहुत छोटे घाव पर बैंड एड लगा सकते हैं. थोड़ा बड़ा घाव हो तो डॉक्टर को दिखाकर ठीक से ड्रेसिंग कराना चाहिए. यदि घाव मिट्टी या गंदगीके संपर्क में आया हो तो टिटनेस का टीका भी लगवा लेना चाहिए.
कुत्ते काटे के घाव को तुरंत बहते पानी व डिटर्जेंट सोप से भली प्रकार धोना चाहिए एवं उसके बाद डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए. घाव में मिर्च इत्यादि कभी ना लगाएं व झाड़ फूंक एवं देसी दवाओं के चक्कर में हरगिज न पड़ें.
बुखार होने पर पेरासिटामोल ( क्रोसिन, कैल्पोल आदि ) की गोली हर 4 घंटे बाद ले सकते हैं. हल्के-फुल्के सीजनल बुखार एक आध दिन में उतर जाते हैं. तेज दर्द निवारक दवाएं जैसे डिस्प्रिन, कॉन्बिफ्लेम आदि न लें. बहुत तेज बुखार होने पर निमेसुलाइड की आधी गोली ले सकते हैं. अपने आप से एंटीबायोटिक्स न लें क्योंकि हर इंफेक्शन में अलग-अलग एंटीबायोटिक काम करती हैं. ठंड लगकर बुखार आने पर अपने आप से मलेरिया की दवा न खाएं क्योंकि ठंड लगकर बुखार बहुत से कारणों से आ सकता है.
दस्त होने पर Norflox TZ, Ciplox TZ इत्यादि ना लें. इनसे गैस्ट्राइटिस हो सकती है और उल्टियां होने की संभावना बढ़ जाती है.
गुम चोट लगने पर उसे कुछ देर तक बर्फ से सेकें. इससे अंदर ही अंदर होने वाला खून का रिसाव व सूजन कम हो जाएगी. आयोडेक्स इत्यादि से कोई लाभ नहीं होता. लगाने वाली कुछ दवाएं इतनी तेज होती हैं कि उनसे खाल जल जाती है.
सर दर्द या शरीर दर्द होने पर हल्की दर्द निवारक दवाएं ही लेना चाहिए. तेज दवाएं तेजाब को बढ़ाती हैं जिससे अल्सर होने की संभावना होती है. तेज दर्द निवारक दवाएं हृदय और गुर्दों पर भी बुरा असर डालती हैं.
किसी व्यक्ति को सीने में दर्द हो व हार्टअटैक का संदेह हो तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना चाहिए. डॉक्टर को घर बुलाने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए. हार्ट अटैक के मरीज को जितनी जल्दी ICU मैं भर्ती होकर इलाज मिल सके उतना ही अच्छा रहता है.
जो बच्चे घर में रहते हुए खाने पीने में बहुत परेशान करते हैं, कमजोर व चिड़चिड़े होते हैं, वे सब हॉस्टल में जाकर ठीक से खाने पीने लगते हैं और स्वस्थ हो जाते हैं. कारण यह है कि वहां केवल समय से खाना मिलता है और कोई खाना लेकर उनके आगे पीछे नहीं घूमता.
यदि आपको किसी काम में रूचि ना होती हो, मन में खुशी ना होती हो, जीवन बेकार लगता हो तो आप संभवता डिप्रेशन ( उदासी की बीमारी) के शिकार हैं. इस बीमारी में व्यक्ति उदास, निराश व चिड़चिड़ा हो जाता है, उसका पारिवारिक जीवन और काम खतरे में पड़ जाता है और यहां तक कि वह आत्महत्या तक कर सकता है. डिप्रेशन का इलाज ठीक से करने पर यह पूरी तरह ठीक हो जाता है.
आम तौर पर लोग यह समझते हैं कि फल खाने से बहुत ताकत आती है और शरीर की ग्रोथ होती है. सच यह है कि फलों से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण प्रोटीन वाले भोजन (जैसे दूध की चीजें, दालें, चना, अंडे इत्यादि) होते हैं. फलों के जूस तो खट्टे होने के कारण नुकसान भी करते हैं.
यदि आपको खर्राटे अधिक आते हैं व दिन के समय अधिक नींद आती है तो यह एक खतरनाक बीमारी Obstructive Sleep Apnea के लक्षण हो सकते हैं.
जिन मरीजों को खून की कमी बताई जाती है उनमें से अधिकतर लोग अनार का जूस पीने लगते हैं. सच यह है कि अनार में आयरन बिल्कुल नहीं होता है. इसी तरह चुकंदर में भी बिल्कुल आयरन नहीं होता है.
खून की कमी के ज्यादातर मरीजों को डॉक्टर आयरन की गोलियां या सिरप लिख देते हैं जबकि बहुत से मरीजों को अन्य कारणों से खून की कमी होती है. कुछ लोगों को विटामिन बी12 या फोलिक एसिड की कमी से खून नहीं बनता है. कुछ लोगों को थैलासीमिया माइनर के कारण खून की कमी होती है. उनको आयरन देने से नुकसान हो सकता है.
किसी मरीज को खून की बहुत कमी होने पर बहुत से डॉक्टर केवल खून के बोतले चढ़ा देते हैं. चढ़ाया हुआ खून केवल दो तीन हफ्ते में ही खत्म हो जाता है. जांच करा कर यह जानना आवश्यक होता है कि खून की कमी क्यों हो रही है.उसके अनुसार इलाज करने से खून की कमी पूरी होती है.
बहुत से डायबिटीज के मरीज समझते हैं कि चावल में से मांड निकालने से उसका स्टार्च खत्म हो जाता है. सच यह है कि चावल स्वयं में केवल स्टार्च (कार्बोहाइड्रेट) ही होता है.
मोतीझला के विषय में लोगों में बहुत से अंधविश्वास पाए जाते हैं. लोग इसे टाइफाइड का विशेष लक्षण समझते हैं. सच यह है कि किसी भी बुखार में लंबे समय तक न नहाने के कारण खाल के ऊपर किरेटिन की बारीक सी परत जम जाती है. उसके नीचे पसीने की बारीक बूंदें मोती के समान दिखाई देती हैं. इसे ही मोतीझला कहते हैं.
छोटे कस्बों में स्थान स्थान पर ऐसी पैथोलॉजी लैब खुल गई हैं जिन्हें टेक्नीशियन लोग चला रहे हैं. यह एकदम गैरकानूनी है एवं इन की रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं होती. इसी प्रकार कुछ अस्पतालों वह धर्मार्थ चिकित्सालय में केवल टेक्निशियन लोग टेस्ट करते हैं. जांचें वहीँ कराना चाहिए जहां पैथोलॉजिस्ट स्वयं जांचें करते हैं.
यदि किसी व्यक्ति का बहुत अधिक खून अचानक से बह जाए तो एक दम से ब्लड प्रेशर कम होने का खतरा होता है. ऐसे में तुरंत खून चढ़ाना ही सही उपचार है पर तुरंत खून उपलब्ध ना होने पर ग्लूकोस सेलाइन की बोतल चढ़ा कर ब्लड प्रेशर को मेंटेन किया जा सकता है. कुछ लोग ग्लूकोज की बोतल के स्थान पर हीमेक्सेल नाम की एक बहुत महंगी बोतल चढ़ाते हैंजिसका कोई एडवांटेज नहीं है. हद तो यह है कि कुछ झोलाछाप डॉक्टर खून की कमी के मरीजों में भी हीमेक्सेल की बोतल चढ़ा कर पैसे ऐंठ लेते हैं.
बहुत से मरीज ऐसा बताते हैं कि उनकी ब्लड शुगर बहुत कम निकली इसलिए डॉक्टर ने उन्हें खूब चीनी खाने को बोला है जिससे उनकी शुगर डाउन ना हो जाए. यह एक बहुत बड़ी गलतफहमी है. सच यह है कि कोई व्यक्ति यदि जिंदगी भर चीनी ना खाए तब भी उसकी शुगर डाउन नहीं होगी. मनुष्य के अलावा कोई भी जानवर चीनी नहीं खाता लेकिन उनकी शुगर डाउन नहीं होती है. ब्लड शुगर केवल तभी डाउन होती है जब आपने डायबिटीज की दवा खाई हो या इंसुलिन का इंजेक्शन लगाया हो और खाना उसके अनुसार ना खाया हो.डायबिटीज के मरीज को दस्त या उल्टी होने पर भी शुगर डाउन होने का डर रहता है.
पीलिया होने पर कभी झाड़ने के चक्कर में ना पड़ें, ना ही कोई देशी दवा खाएं. झाड़ने वाले केवल हाथ की सफाई दिखाकर अंधविश्वासी जनता को बेवकूफ बनाते हैं. अधिकांश मरीजों में पीलिया अपने आप ठीक होता है जिसका क्रेडिट यह ठग लोग ले लेते हैं.
खाल की बीमारियों में डेटॉल, सैवलॉन, निको व नीम साबुन आदि प्रयोग न करें. इनसे खाल को नुकसान हो सकता है. खाल को साफ करने व नहाने के लिए भी डेटॉल का इस्तेमाल न करें.
टाइफाइड बुखार को डायग्नोस करने के लिए बहुत से लोग विडाल टेस्ट कराते हैं. एक बार टाइफाइड होने के बाद यह टेस्ट बहुत लंबे समय तक पॉजिटिव आ सकता है इसलिए यह विश्वसनीय नहीं होता. जिन डॉक्टरों या मरीजों को इस बात की जानकारी नहीं होती वे बार-बार इस टेस्ट को कराते रहते हैंऔर अनावश्यक एंटीबायोटिक्स खाते रहते हैं.
बहुत से मरीजों को ऐसा लगता है कि उन्हें लंबे समय से बुखार है. उन्हें बुखार होता ही नहीं है, वे बुखार नाप कर देखते भी नहीं हैं और विडाल टेस्ट करा लेते हैं. विडाल टेस्ट हल्का सा पॉजिटिव आने पर वे टाइफाइड के धोखे में फालतू एंटीबायोटिक्स खाते रहते हैं.
दमा व गठिया के इलाज में देसी पुड़िया कभी न खाएं. इस प्रकार की पुड़िया बेचने वाले ठग लोग इसमें बेटनेसोल आदि स्टेरॉयड दवाएं मिला देते हैं जिनसे गठिया के दर्द या सांस फूलने में तुरंत आराम मालूम होता है पर फिर मरीज इन का बुरी तरह आदी हो जाता है और यह बहुत नुकसान करती हैं.
अखबारों में विज्ञापन देकर मिर्गी का पवित्र इलाज करने वाले केवल ठग हैं. उनकी पुड़ियों में मिर्गी की सबसे सस्ती और सबसे स्ट्रांग दवा Epilan होती है जोकि बहुत नशा करती है इसलिए इसको डॉक्टर आमतौर पर प्रयोग नहीं करते. उसके अलावा पवित्र आयुर्वेदिक दवा के नाम पर और सब चीजें हैं केवल स्टंट होती हैं.
नाप सरकना और मलवाने से उसका ठीक हो जाना केवल मन के भ्रम है. इसी प्रकार कौड़ी भी कोई बीमारी नहीं होती.
.झाड़ फूंक करने वाले और भूत भगाने वाले केवल बातें बना कर और हाथ की सफाई दिखाकर भोले भाले और अंधविश्वासी लोगों को ठगते हैं. कुछ मानसिक रोगियों को दिमागी बीमारी के कारण तरह तरह की आवाजें सुनाई देती हैं या लोग दिखाई देते हैं. उसी को ये लोग भूत प्रेत बता देते हैं. कुछ लोग अपनी बात मनवाने के लिए अपने ऊपर भूत प्रेत या देवी देवता आने का नाटक भी करते हैं.
नब्ज देखकर बीमारी बताने वाले हकीम केवल ठग होते हैं. वे केवल मरीज के हाव भाव एवं चाल ढाल देखकर अंदाज से कुछ सामान्य बातें बता देते हैं जो कि ज्यादातर लोगों पर फिट बैठती हैं. अंधविश्वासी लोग समझते हैं कि उनका मर्ज पकड़ लिया गया है
बहुत से लोगों को यह वहम होता है के एलोपैथिक दवाएं उन्हें गर्मी पड़ती हैं व रिएक्शन करती हैं. इनमें से अधिकतर लोगों को तेजाब के कारण पेट में सूजन होती है जिसमें दवा पहुंचने से बेचैनी होती है. कुछ लोगों को किसी विशेष दवा से एलर्जी भी हो सकती है. यदि किसी विशेष दवा से परेशानी होती है तो उसके बदले में अन्य दवाएं दी जा सकती हैं. ऐसे लोगों को अपने पर्चे संभाल कर रखना चाहिए और माफिक आने वाली एवं न आने वाली दवाओं की लिस्ट बनानी चाहिए.
हेपेटाइटिस बी, एड्स के समान एक अत्यंत खतरनाक बीमारी है जोकि इंफेक्टेड खून द्वारा फैलती है. खून चढ़ाने से पहले उसकी पूरी जांच होना आवश्यक होता है. जो लोग खून बेचते हैं उनके खून में यह बीमारी अक्सर पाई जाती है.
हेपेटाइटिस बी और एड्स इंफेक्टेड सुइयों से भी फैल सकते हैं.जब भी कोई इंजेक्शन लगवाना हो तो उसे डिस्पोजेबल सिरिंज से ही लगवाएं. खाल में गुदवाने (tattoo) से भी ये इंफेक्शन फैल सकते हैं. गली मोहल्लों में घूमने वालों से नाक कान नहीं छिदवाना चाहिए. एक्यूपंक्चर की सुइयों से भी ये इंफेक्शन हो सकते हैं.
नाई के उस्तरे से खाल में हल्का सा कट लग जाने से भी यह इंफेक्शन हो सकता है, इसलिए यदि नाई से शेव बनवाएँ तो नए ब्लेड से ही बनवाना चाहिए. बाल कटवाने के बाद गर्दन के बाल भी उस्तरे की बजाए मशीन से साफ करवाना चाहिए.
बहुत से मोटे लोग वजन कम करने के लिए सुबह शहद नींबू का सेवन करते हैं. सच यह है किस शहद में काफी कैलरी होती है जिन से वजन बढ़ सकता है.
अखबारों और टीवी में लाखों करोड़ों रुपए के विज्ञापन देकर बिकने वाली ताकत की दवाएं, लंबाई बढ़ाने की दवाएं, मोटापा कम करने की दवाएं, याददाश्त बढ़ाने वाली दवाएं, जोड़ों के दर्द के तेल, बवासीर, गंजेपन मर्दाना ताकत की दवाएं आदि केवल फ्रॉड होती हैं. इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता.
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी