IBS(Irritable Bowel Syndrome, इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम)
IBS का शाब्दिक अर्थ है बिना कारण आँतों का अधिक संवेदनशील हो जाना. भोजन पचाने की प्रक्रिया में हमारी आंतों में गति होती है व कुछ गैस बनती है. सामान्यत: हमें यह महसूस नहीं होती. IBSके मरीजों को इन्हीं क्रियाओं से पेट में दर्द व असुविधा होने लगती है. IBS में आँतों में कोई खराबी नहीं होती, न ही कोई इंफेक्शन होता है, केवल आंतों की चाल गड़बड़ा जाती है जिससे पेट दर्द, कब्ज या दस्त हो सकते हैं.
IBS के मुख्य लक्षण :
- पेट में बार बार दर्द होता है जो कि लेट्रिन जाने से या गैस पास होने से कम हो जाता है. पेट दर्द किसी विशेष स्थान पर नहीं होता.दबाने से दर्द बढ़ता नहीं है. सोते समय दर्द नहीं होता.
- आंव आती है.
- केवल कब्ज़ या दस्त हो सकते हैं. अधिकांश लोगों को कभी कब्ज कभी दस्त होते हैं. ऐसा महसूस होता है कि पेट पूरी तरह साफ नहीं हुआ. कुछ लोगों को केवल सुबह के समय पतले दस्त होते हैं.
- IBS में बुखार, वजन कम होना, भूख न लगना, लैट्रिन में खून आना इत्यादि लक्षण नहीं होते. यदि पेट की परेशानी के साथ यह लक्षण किसी मरीज में हो तो उसे किसी अन्य बीमारी की संभावना सोचते हुए विस्तृत जांच कराना आवश्यक है.
IBS जैसे लक्षण पेट की कई अन्य बीमारियों में हो सकते हैं. हमारे देश में खानपान में गन्दगी के कारण अमीबिक कोलाइटिस (amebic colitis) बहुत होती है, उसके लक्षण जी IBS से बहुत मिलते हैं. बहुत से लोगों को IBS भी होती है और साथ में अमीबिक इन्फेक्शन भी हो जाता है. कोलाइटिस की दवा खाने से उन्हें कुछ दिन के लिए लाभ होता है लेकिन फिर वही परेशानी होने लगती है. इस प्रकार के मरीज अनावश्यक रूप से कोलाइटिस की दवाई खाते रहते हैं.
दूध में पाई जाने वाली लैक्टोज़ नाम की शुगर को पचाने के लिए आंतों में लैक्टेज़ नामक एंजाइम पाया जाता है. आयु के साथ बहुत से लोगों में इसकी मात्रा कम होती जाती है. इस प्रकार के लोगों में दूध, चाय, पनीर, खोया, आइसक्रीम, चॉकलेट आदि लेने पर पेट दर्द, गैस व दस्त हो सकते हैं. इस प्रकार के लक्षणों से भी IBS व कोलाइटिस का धोखा होता है. इस अवस्था को लैक्टोज़ इंटॉलरेंस (lactose intolerance) कहते हैं. लैक्टोज़ इंटॉलरेंस के मरीजों को दही या मट्ठा लेने से कोई परेशानी नहीं होती. दही व मट्ठे के अलावा उन्हें दूध से बनी और कोई चीज नहीं लेनी चाहिए. जब तक वे इस प्रकार का परहेज नहीं करते उनकी परेशानी किसी भी दवा से दूर नहीं हो सकती.
आंतों की टीबी (intestinal tuberculosis), अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis), क्रोन्स डिज़ीज़ (crohn’s disease), कैंसर व थायराइड की बीमारी आदि में भी आईबीएस से मिलते-जुलते लक्षण हो सकते हैं. योग्य चिकित्सक मरीज को देखकर व आवश्यक जांच कराकर इन बीमारियों का पता लगा सकते हैं.
IBS का उपचार
IBS के लिए कोई विशेष दवा नहीं होती. भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ाने से अधिकतर मरीजों को लाभ होता है. फाइबर के सबसे अच्छे स्रोत इसबगोल और चोकर हैं. इसके अतिरिक्त कच्ची सब्जियां और फल भी फाइबर के अच्छे स्रोत हैं पर उन में मौजूद नेचुरल फाइबर थोड़ा सख्त होता है. सब्जियों व फलों को उबालने से उन में मौजूद फाइबर नरम हो जाता है और तब वे IBS के मरीजों को फायदा करते हैं. IBS के बहुत से मरीजों को इसबगोल लगातार लेने से फायदा होता है. इसबगोल को शाम के खाना खाने के 2 घंटे पहले लेना चाहिए. यदि किसी मरीज को कब्ज का असर हो तो उसे इसबगोल के साथ अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए. जिनको बार-बार पतली लैटरीन आती हो उन्हें कम पानी के साथ इसबगोल लेना चाहिए. कुछ लोगों को बेल खाने से भी बहुत फायदा होता है. बेल का मौसम न होने पर बेल का पाउडर खाने पर भी फ़ायदा हो सकता है.
IBS के मरीज को सामान्य से अधिक दस्त होने पर कुछ समय के लिए दस्त की दवाई लेना पड़ सकती हैं. कब्ज बहुत अधिक होने पर भी कुछ समय के लिए कब्ज की दवा ले सकते हैं. मरीज को यदि कोई विशेष खाद्य पदार्थ खाने पर परेशानी होती हो तो उसे छोड़ देना चाहिए. अधिक मसालों, फास्ट फूड, चाय कॉफी, कोला ड्रिंक्स, तंबाकू सिगरेट एवं शराब से भी बचना चाहिए. नियमित व्यायाम करने से, योग व प्राणायाम करने से और तनावमुक्त रहने से IBS की परेशानी कम हो जाती है. IBS बिल्कुल खतरनाक बीमारी नहीं है इसलिए इस से परेशान न होकर इसके साथ एडजस्ट करना सीखना चाहिए.
डॉ. शरद अग्रवाल (एम. डी.)