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टाइफाइड बुखार ( Typhoid fever )

टाइफाइड बुखार एक विशेष प्रकार के बैक्टीरिया (Salmonella Typhi) द्वारा इंफेक्शन होने से होता है. आमतौर पर यह इंफेक्शन दूषित जल व खाद्य पदार्थों के सेवन से फैलता है.

लक्षण  : टाइफाइड का मुख्य लक्षण है बुखार जो कि आमतौर पर धीरे-धीरे बढ़ता है और बिना कंपकंपी दिए आता है (कभी-कभी हल्की ठंड लग सकती है).  सामान्यता मरीज को सर दर्द होता है,  पेट में भी दर्द हो सकता है और कब्ज या दस्त हो सकते हैं.  यदि समय पर सही इलाज ना मिले तो धीरे-धीरे बीमारी की गंभीरता बढ़ती है.  दूसरे हफ्ते में बुखार और अधिक होने लगता है एवं पेट फूलना,  भूख न लगना,  बुखार की तेजी में बड़बड़ाना आदि लक्षण होने  लगते हैं.  जीभ पर सफेदी जम जाती है (coated tongue),  तिल्ली (spleen) थोड़ी बढ़ जाती है,  और कुछ मरीजों (विशेषकर  गोरे लोगों में)  सीने पर हल्के गुलाबी स्पॉट (rose spot rash) दिखाई देते हैं.  बहुत से मरीजों में शरीर पर मोतीझला नाम के छोटी छोटी बूंदों जैसे दाने दिखाई देते हैं.  अशिक्षित लोग इसको टाइफाइड का खास लक्षण मानते हैं और यह मानते हैं कि जब तक  दाने नहीं निकलेंगे टाइफाइड नहीं  उतरेगा.  वास्तविकता यह है कि किसी भी बुखार में लंबे समय तक मैं नहाने से खाल के ऊपर किरेटिन और  मैल की पतली परत जम जाती है जिसके नीचे से पसीने की  छोटी छोटी बूंदें बारीक मोतियों की तरह झलकती है.  उसी को लोग मोतीझला कहते हैं.

दो हफ्ते तक टाइफाइड का उचित इलाज ना होने पर तीसरे हफ्ते में यह गंभीर रूप धारण कर लेता है.  इस स्टेज पर दिमाग में सूजन (typhoid encephalopathy) हो सकती है और आंतों में घाव बनने से खूनी दस्त या आंत बर्स्ट (intestinal perforation) हो सकती हैं. जब टाइफाइड पर असर करने वाली एंटीबायोटिक्स का आविष्कार नहीं हुआ था तो इन्हीं कॉन्प्लिकेशन के कारण बहुत से मरीजों की मृत्यु हो जाती थी.  जो मरीज इस स्टेज से  बच जातेथे  उनमें 3 से 4 हफ्ते का समय (मियाद) पूरा करके बुखार धीरे-धीरे उतरना शुरू हो जाता था.  इसी कारण से इसे मियादी बुखार कहते थे.

डायग्नोसिस  : अधिकतर केसेज में टाइफाइड को लक्षणों के आधार पर ही  डायग्नोस किया जा सकता है.  यदि बुखार का कारण समझ ना आ रहा हो तो कुछ  जांचें करा कर देखना होता है कि टाइफाइड ही है या कोई अन्य बुखार. खून में टाइफी डॉट नाम की जांच एवं ब्लड,  यूरीन या स्टूल कल्चर से टाइफाइड कंफर्म किया जा सकता है.  यदि किसी और इन्फेक्शन का भी शक हो तो उसके लिए जांच कराकर देख लेते हैं.

टाइफाइड की जांच के लिए विडाल टेस्ट नामक खून की जांच हमारे यहां अत्यधिक प्रचलन में है.  टाइफाइड बुखार होने के सात आठ दिन बाद से यह टेस्ट पॉजिटिव आना शुरू होता है.  एक बार टाइफाइड होने के बाद यह बहुत दिन तक पॉजिटिव आता रहता है  और बहुत से नॉर्मल लोग जिन्हें कोई बीमारी नहीं है उनमें भी पॉजिटिव आ सकता है.  इन कारणों से अब इस टेस्ट की कोई वैल्यू नहीं है और विकसित देशों में इसे छोड़ा जा चुका है. जिन लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है वे केवल बुखार महसूस होने पर ही इस टेस्ट को करा लेते हैं और टाइफाइड के धोखे में फालतू एंटीबायटिक खाते रहते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि इंफेक्शन कोई और होता है परन्तु इस  टेस्ट के  पॉजिटिव आने के कारण डॉक्टर टाइफाइड का इलाज करने लगते हैं व असल बीमारी की  डायग्नोसिस में देर हो जाती है.

उपचार  : टाइफाइड के उपचार के लिए कुछ विशेष एंटीबायोटिक्स देते हैं व बुखार को कम करने के लिए पेरासिटामोल का प्रयोग करते हैं (एस्प्रिन व दर्द निवारक दवाएं कॉन्बिफ्लेम आदि नहीं लेना चाहिए).  एंटीबायोटिक्स का चुनाव बीमारी की स्टेज के अनुसार किया जाता है.  बीमारी की शुरुआत में  हल्की दवाएं दी जाती हैं जबकि अधिक  इंफेक्शन या कॉन्प्लिकेशन होने पर मरीज को अस्पताल में भर्ती करके तेज एंटीबायोटिक्स के इंजेक्शन देने होते हैं.  टाइफाइड के बहुत से कीटाणु कॉमन एंटीबायोटिक्स के आदी हो गए हैं अर्थात उन पर आम एंटीबायोटिक्स काम नहीं करती.  ऐसे केसेस में कॉन्प्लिकेशन का खतरा अधिक होता है.  इसलिए टाइफाइड का इलाज योग्य चिकित्सक से ही कराना चाहिए.  टाइफाइड बुखार में तेज दर्द निवारक दवाओं व स्टीरॉयड दवाओं जैसे डेकाड्रोन, बेटनेसोल आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे आंतों में अल्सर होने का डर होता है.

टाइफाइड फैलने के कारण  : टाइफाइड के मरीजों के मल (stool) में टाइफाइड का बैक्टीरिया बहुतायत में पाया जाता है. हमारे यहां अभी भी गांवों व पिछड़ी बस्तियों में बहुत से लोग खुले में शौच इत्यादि करते हैं.  इससे यह बैक्टीरिया कुओं, तालाबों के पानी व भूमिगत जल (underground water)  में मिल जाता है. शहरों में टूटी फूटी सीवर लाइन का  दूषित पानी भूमिगत जल व निगम की पाइपलाइन को प्रदूषित कर देता है.  नालों व सीवर का पानी नदियों में छोड़े जाने के कारण नदियों व  नहरों के पानी में भी  कीटाणु  मिल जाते हैं. इसके अतिरिक्त कई स्थानों पर सब्जियां उगाने वाले लोग नालों के पानी से सब्जियों की सिंचाई करते हैं.  फल व सब्जियां बेचने वाले भी आमतौर पर फलों व सब्जियों को  गीला रखने के लिए उन पर गंदे पानी का छिड़काव करते रहते हैं जिस में तरह तरह के कीटाणु हो सकते हैं.  जिन को टाइफाइड हो चुका है उनके मल में टाइफाइड बैक्टीरिया काफी दिनों तक पाए जा सकते हैं. ऐसे लोग यदि चाट बनाने,  खाना बनाने या वेटर इत्यादि का काम करते हैं और उनको शौच जाने के बाद ठीक से हाथ धोने की आदत नहीं है तो उनके द्वारा भी यह इंफेक्शन फैल सकता है.

इन कारणों से हमारे देश में टाइफाइड के अलावा कुछ अन्य इंफेक्शन जैसे पीलिया,  गैस्ट्रोएन्ट्राइटिस व कॉलरा आदि भी लगातार फैलते रहते हैं.  जो भूमिगत जल 110  फीट के नीचे से निकाला जाता है उस में इंफेक्शन होने की संभावना बहुत कम होती है.

रोकथाम :  टाइफाइड से बचाव के लिए एक टीका उपलब्ध है जो कि सभी लोगों को लगवाना चाहिए.  इसके अतिरिक्त फलों व सब्जियों को भलीभांति  धोकर व छिलका उतार कर खाना चाहिए.  पीने के पानी को उबाल लेना चाहिए या आरो इत्यादि फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए.  बाजार में बिकने वाले खुले खाद्य पदार्थ,  चाट  पकौड़ी,  चटनी,  गन्ने का रस व अन्य फलों के रस का प्रयोग नहीं करना चाहिए.  यदि किसी को टाइफाइड हुआ हो तो उसका पूरा इलाज अवश्य करना चाहिए.  यह भी याद रखें कि टाइफाइड के इलाज के बाद विडाल टेस्ट नहीं  कराना चाहिए.

डॉ. शरद अग्रवाल एम डी

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