Allergy, Miscellaneous

दवाओं से रिऐक्शन ( Drug reaction )

कुछ लोगों को यह भ्रम होता है कि उन्हें ऐलोपैथिक दवाएं नुक्सान करती हैं. इस चक्कर में वे अन्य अवैज्ञानिक अधकचरी पैथियों की दवाएं खाते रहते हैं व बीमारी को बढ़ा लेते हैं. सच यह है कि दवाओं के हानि कारक प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) का विधिवत अध्यन केवल एलोपैथी में ही किया जाता है. सभी दवाओं में साइड इफैक्ट नहीं होते. जिन दवाओं से साइड इफैक्ट होते भी हैं वे कुछ ही मरीजों में होते हैं. दवाओं से जो भी संभावित नुकसान हैं वे सभी मेडिसिन की किताबों में लिखे होते हैं. कुछ साइड इफैक्ट ऐसे होते हैं जिनसे बचने के लिए उपाय किये जा सकते हैं. यदि ऐसा संभव नहीं है तो उस दवा के स्थान पर दूसरी दवा प्रयोग की जा सकती है. यदि किसी को कभी कोई एकाध दवा रियेक्शन कर जाय तो उस के कारण ऐलोपैथी को खराब मान लेना मूर्खता है.

जिन मरीजों को दवाओं से रिऐक्शन होता है उन्हें अपना मेडिकल रिकार्ड संभाल कर रखना चाहिए. जिन दवाओं से रिऐक्शन हुआ है उनकी लिस्ट बनानी चाहिए व जब भी किसी डॉक्टर को दिखाना हो तो इस विषय में अवश्य बताना चाहिए. इस के साथ ही जो दवाएं रिऐक्शन नहीं करती हैं उनकी भी एक लिस्ट बनानी चाहिए. आवश्यकता पड़ने पर उस लिस्ट में से दवाएं चुन कर दी जा सकती हैं.                             दवाओं के साइड इफैक्ट कई प्रकार के होते है. कुछ दवाओं में हलके से अनचाहे प्रभाव होते हैं जिनसे कोई हानि नहीं होती, जैसे जुकाम खाँसी की दवा से खुश्की होना व नींद सी आना, कुछ दवाओं से हल्की से कब्ज होना, मेट्रोनिडाजोल से कडवा मुंह होना आदि. इस प्रकार के प्रभावों के कारण दवा को बंद करना आवश्यक नहीं होता. कुछ दवाएं एसिडिटी व गैस्ट्राईटिस करती हैं. दर्द निवारक दवाएं, टीबी की दवाएं, पेचिश की दवाएं, मलेरिया की दवाएं, आदि विशेष रूप से ऐसा कर सकती हैं. इन दवाओं को खाना खाने के तुरंत बाद खाने से, दूध से, व ऐन्टासिड के साथ खाने से परेशानी कम हो जाती है.

कुछ लोगों को दवाएं खाने से स्किन एलर्जी होती है. यह पित्ती उछलने के रूप में, हलके लाल दाने व खुजली के रूप में, या फिक्स्ड ड्रग रैश (कुछ विशेष स्थानों पर काले नीले चकते हो जाना) के रूप में हो सकती है. जिन दवाओं से इस प्रकार की एलर्जी हो सकती है उनकी लिस्ट यहाँ दी गयी है.

1. सल्फा ड्रग्स (सेप्ट्रान, राइमोडार आदि)

  1. पेनिसिलिन
  2. टेट्रासाइक्लिन
  3. ऐस्पिरिन, ऐनाल्जिन व अन्य दर्द निवारक दवाएं (इन में ऐस्प्रो, सेरिडान, ऐक्शन 500, ब्रुफेन, काम्बिफ्लाम आदि दवाएं भी आती हैं).
  4. दस्त की दवाएं (मेट्रोनिडाजोल, टिनिडाजोल, फ्युरोक्सोन, लोमोफेन, डिपेंडाल आदि).
  5. क्विनोलोन्स(Quinolones) सिप्रोफ्लोक्सासिन, ओफ्लोक्सासिन, लीवोफ्लोक्सासिन आदि
  6. मिरगी की दवाएं फ़ेनिटॉइन (Phenytoin) व फीनोबार्बिटोन (Phenobarbitone).             जिन लोगों को स्किन एलर्जी होती भी है उन्हे इन सभी दवाओं से एलर्जी नहीं होती. कुछ लोगों को लगाने वाली दवाओं से एलर्जी होती है (जैसे फ्युरासिन, सेवलान, डेटाल, दर्द के लिए मलने की दवाएं स्पिरिट आदि) जिस दवा से एलर्जी हो उस दवा को दोबारा प्रयोग नहीं करना चाहिए. कुछ लोगों को किन्हीं विशेष दवाओं से डिस्टोनिया (dystonia गर्दन, जबड़ा, या जीभ ऐंठना) होता है. ऐसा विशेषकर उल्टी की कुछ दवाएं व मानशिक रोग की दवाओं से होता है. कुछ लोगों को किसी किसी एंटीबायोटिक से दस्त होते हैं. एम्पिसिलिन, एमोक्सिसिलिन, सिफ्लैक्सिन, किलन्डामाइसिन, व एजिथ्रोमाइसिन से ऐसा होने की संभावना अधिक होती है. इस प्रकार के मरीजों को दूसरी एंटीबायोटिक दी जा सकती है.

कुछ इंजेक्शन जैसे पेनिसिलिन, आइरन, विटामिन बी 1 इत्यादि से खतरनाक एनाफ़ाइलेक्टिक रिएक्शन हो सकता है. इस प्रकार के इंजेक्शन सभी लोगों को अस्पताल में ही लगवाना चाहिए. जिन मरीजों को कभी इस प्रकार का रिएक्शन हुआ है उन्हें इसका अत्यधिक ध्यान रखना चाहिए व हर बार डॉक्टर को बताना चाहिए.

टीबी की कुछ दवाओं से पीलिया, आँख की रोशनी कम होना व जोड़ों में दर्द होने जैसी शिकायतें हो सकती हैं. इससे घबराकर दवा छोडनी नहीं चाहिए व योग्य चिकित्सकों के निर्देशन में ही टीबी का इलाज करवाना चाहिए.

ऐलोपैथी के अतिरिक्त अन्य सभी पैथियों की दवाओं से भी रिएक्शन हो सकते हैं. उन दवाओं के विषय में कोई जानकारी न होने के कारण ये रिएक्शन बहुत खतरनाक हो सकते हैं. कुछ आयुर्वेदिक भस्में इत्यादि धीरे धीरे गुर्दों व बोन मैरो (रक्त मज्जा) को खराब करती हैं जिनका कोई इलाज संभव नहीं होता. सर्पगंधा नामक दवा के प्रयोग से डिप्रेशन की बीमारी हो सकती है. कब्ज के लिए प्रयोग किये जाने वाले अधिकतर आयुर्वेदिक चूर्णों में बहुत तेज दवाएं होती हैं जो आँतों को नुक्सान पहुंचा सकती हैं. इसके अतिरिक्त आयुर्वेद के नाम पर बिकने वाली बहुत सी साँस और दर्द की दवाओं में स्टीराइड दवाएं व सस्ती दर्द निवारक दवाएं मिली होती हैं जोकि अपना आदी बनाती हैं व लम्बे समय में बहुत हानि पहुंचाती हैं.

कुछ लोग यह शिकायत करते हैं कि उन्हें अंग्रेजी दवा बर्दाश्त नहीं होती. कुछ को दवा गरमी करती है, कुछ को लैट्रीन में खून आने लगता है, कुछ को पेट दर्द व जलन होती है आदि आदि. यदि दवाओं के विषय में ठीक जानकारी हो तो इन परेशानियों से बचा जा सकता है. कुछ दवाएं तेज़ाब को बढ़ाती हैं. यदि इन्हें खाना खाने के बाद दूध से लिया जाय व दवाओं के साथ एसिडिटी कम करने की दवाएं ली जाएं तो इस परेशानी को कम किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त उन दवाओं को चुना जा सकता है जो कम तेजाब बनाती हैं.

लैट्रिन में खून आने का कारण अधिकतर लैट्रिन सख्त आने के कारण मल द्वार कट जाना होता है. इसके बाद जब भी लैट्रिन सख्त आती है वह जगह फिर कट जाती है व खून आने लगता है. इस से बचने के लिए कब्ज से बचने का प्रयास करना चाहिए. अधिक मात्रा में फल व सब्जी लेने, दूध मुनक्का या इसबगोल आदि लेने से कब्ज ठीक हो जाता है. जिन लोगों को ह्रदय रोग या पैरालिसिस का अटैक हुआ हो उन्हें खून जमने से रोंकने वाली दवाएं एस्पिरिन एवं क्लोपिड़ोग्रिल आदि दी जाती हैं. यदि ऐसे किसी मरीज को अल्सर या खूनी बबासीर हो तो उन्हें इन दवाओं से परेशानी हो सकती है. ऐसे में डॉक्टर को सभी बातों के हानि लाभ सोंच कर निर्णय लेना चाहिए.

जब किसी भी ब्यक्ति को कोई दवा खाते समय कोई भी परेशानी होती है तो उसे अपने डॉक्टर को अवश्य बताना चाहिए. कई बार वह परेशानी दवा से न होकर किसी अन्य कारण से होती है. अपने मन से ही दवा बंद नहीं करनी चाहिए, न ही एलोपैथिक दवाओं को खराब मान लेना चाहिए.                                   डॉ. शरद अग्रवाल एम डी

 

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