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मलेरिया बुखार ( Malaria )

मलेरिया बुखार प्लाज़्मोडियम नाम के एक विशेष प्रकार के परजीवी (parasite) द्वारा इन्फेक्शन होने से होता है. यह परजीवी मादा एनोफ़िलीज़ मच्छर द्वारा काटे जाने से फैलता है. वैसे तो यह इन्फेक्शन वर्ष में कभी भी हो सकता है पर बरसात के दिनों में इस के होने की संभावना अधिक होती है. जब मलेरिया के मरीज को मच्छर काटता है तो उस के खून के साथ मलेरिया परजीवी मच्छर के पेट में पहुँच जाते हैं और वहाँ विकसित हो कर मच्छर की लार में पहुँच जाते हैं. फिर जब मच्छर दोबारा किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो परजीवी उस के खून में पहुँच कर लिवर में पहुँच जाते हैं. वहाँ कुछ समय तक विकसित होने के बाद अंततः ये खून में पहुँच कर मलेरिया बुखार पैदा करते हैं.

मलेरिया परजीवी की ऐसी चार किस्में होती हैं जो मनुष्यों में इन्फेक्शन करती हैं. इनके नाम हैं प्लाज़्मोडियम फैल्सीपैरम, वाइवैक्स, ओवेल और मलेरी. अभी हाल में एक और किस्म P. knowlesi सामने आई है जो पहले केवल एक विशेष प्रकार के बंदर में मलेरिया पैदा करने के लिए जानी जाती थी लेकिन अब मनुष्यों में भी इसके बहुत से केस पाए गए हैं. इन सभी प्रकारों में से फैल्सीपैरम सब से खतरनाक होता है.

लक्षण : मलेरिया परजीवी शरीर में प्रवेश करने के बाद पहले कुछ दिन लिवर की कोशिकाओं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं में मल्टीप्लाई करता है इसलिए मच्छर के काटने के 7 दिन से अधिक के बाद बुखार आता है. आम तौर पर बुखार के साथ तेज ठंड व कंपकंपी लगती है. इसके साथ सरदर्द, उल्टियाँ और सूखी खाँसी हो सकती है. बुखार एक दिन छोड़ कर भी आ सकता है और लगातार भी आ सकता है. बुखार उतरने पर बहुत पसीना आ सकता है. अधिक इन्फेक्शन होने पर खून की कमी हो सकती है और हल्का पीलिया हो सकता है. तिल्ली थोड़ी बढ़ सकती है. कभी कभी फैल्सीपैरम मलेरिया खतरनाक रूप धारण कर सकता है जिसमें दिमागी बुखार (cerebral malaria), ब्लडप्रेशर बहुत कम होना (shock syndrome) या फेफड़ों पर अटैक (respiratory distress syndrome) हो कर मरीज की मृत्यु भी हो सकती है. गर्भवती महिलाओं में यदि मलेरिया हो जाए तो गर्भस्थ शिशु को बहुत नुकसान पहुँच सकता है.

डायग्नोसिस :  रक्त की स्लाइड बना कर उसे माइक्रोस्कोप द्वारा देखने पर मलेरिया परजीवी अधिकतर केसेज़ में दिख जाता है. कार्ड टैस्ट से भी मलेरिया को डायग्नोस किया जा सकता है. लेकिन कभी कभी मलेरिया होते हुए भी ये टैस्ट पॉज़िटिव नहीं आते हैं. ऐसे में यदि लक्षणों के आधार पर मलेरिया की संभावना लगती है तो भी उस की दवा दी जाती है. डेंगू के समान मलेरिया में भी प्लेटलेट्स कम हो सकती हैं लेकिन इस में रक्तस्राव (bleeding) का डर नहीं होता इसलिए प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती.

उपचार : सामान्य मलेरिया बुखार का इलाज घर पर रह कर ही किया जा सकता है लेकिन खतरनाक मलेरिया इन्फेक्शन का इलाज तुरंत अस्पताल में भरती कर के करना चाहिए. बहुत से मलेरिया परजीवियों ने दवाओं से प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है, इसलिए सामान्य दवाएँ उन पर असर नहीं करतीं. मलेरिया की दवाओं का चुनाव परजीवी के प्रकार और उस की प्रतिरोध क्षमता के अनुसार किया जाता है. पुरानी दवाओं क्लोरोक्विन और क्विनीन के अतिरिक्त अब बहुत सी नई दवाएँ और उनके कॉम्बिनेशन उपलब्ध हैं. वाइवैक्स मलेरिया का परजीवी इलाज के बाद भी बहुत लम्बे समय तक लिवर में जीवित रह सकता है और दोबारा रक्त कोशिकाओं का इन्फेक्शन कर सकता है. इसे समाप्त करने के लिए प्राइमाक्विन नामक दवा को 15 दिन तक लेना होता है.

मलेरिया से बचाव : यदि आपको किसी ऐसे स्थान पर जाना हो जहाँ मलेरिया का इन्फेक्शन अधिक होता है तो आप को अपने डॉक्टर से राय ले कर ऐसी दवाएँ खानी चाहिए जिनसे मलेरिया की संभावना बहुत कम हो जाए. इस प्रकार की दवाओं को कुछ समय तक सप्ताह में एक बार लेने से उस दौरान मलेरिया होने की संभावना कम हो जाती है.

 

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