बार बार दस्त होना ( Chronic diarrhea )
यदि किसी इन्फैक्शन के कारण दस्त हों तो थोड़ी दवा लेनी होती है व केवल एकाध दिन परहेज करना होता है. नमक, चीनी, ग्लूकोज, इलैक्ट्राल का घोल, शिकंजी, रूह अफ़जा, दही की लस्सी या मट्ठा आदि अच्छी मात्रा में लेना चाहिए. रोटी, दही, आलू इत्यादि हलकी सब्जियाँ, बिना दूध का दलिया, पतली खिचड़ी आदि ले सकते हैं. फलों में केवल केला लें. दस्त ठीक होने तक दूध, जूस, तली व मसाले दार चीजें, नानवेज व बाजार की चीजें न लें. अधिक दस्त कभी कभी खतरनाक साबित हो सकते हैं इस लिए आम तौर पर डॉक्टर को दिखा कर ही दवा लेना चाहिए. कुछ लोगों को किसी किसी एंटीबायोटिक से दस्त होते हैं. उन्हें यह बात डॉक्टर को अवश्य बतानी चाहिए, जिससे वह उन्हें सुरक्षित एंटीबायोटिक दे सकें. जिन लोगों को बार बार दस्त होते हैं या लगातार दस्त रहते हैं उनके दस्तों का कारण जानना आवश्यक होता है. बार बार दस्त होने के सामान्य कारण निम्न हैं –
- बार बार इन्फैक्शन होना
- आँतों की बीमारी जैसे टी. बी. कोलाइटिस इत्यादि होना
- दूध का न पचना
- आँतों की चाल में गड़बड़ी होना
- पुरानी डायबिटीज व थायराइड की बीमारी
- पेट साफ़ करने बाली दवाओं का गलत प्रयोग
बार बार होने वाले इन्फैक्शन सामान्यत: पानी व गंदे खाद्य पदार्थों से होते हैं. इसके लिए पानी को उबालना सबसे अच्छा रहता है. ऐक्वागार्ड व आर ओ फ़िल्टर भी काफी हद तक काम करते हैं. यदि बाहर कभी पानी पीना पड़े तो स्टैण्डर्ड कम्पनी का मिनरल वाटर ही पीना चाहिए. यदि इनमें से कुछ न मिले तो गहरे वाले सरकारी हैंडपंप, जेट पम्प या ट्यूब वैल का पानी पिया जा सकता है. खाने की चीजों में जो उबाल कर, तल कर या भली भांति सेक कर बनाई जाती हैं वे कीटाणु रहित हो जाती हैं. कच्ची सब्जियों (विशेषकर जो मिट्टी से निकलती हैं, जैसे – गाजर, मूली, धनियाँ, अदरख इत्यादि) से इन्फैक्शन का डर होता है. सब्जियों को उबाल कर बनाने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त उबालने से सब्जी में उपस्थित फाइबर नरम हो जाते हैं तथा वे आसानी से पच जाती हैं. जो फल साबुत खाए जाते हैं जैसे (अंगूर, अमरुद, आढू, ककड़ी, जामुन आदि) उनसे इन्फैक्शन हो सकता है. जो फल छिलका उतार कर खाए जाते हैं (जैसे केला, पपीता, खरबूजा, संतरा इत्यादि) उनसे इन्फैक्शन का डर नहीं होता है. फलों में मौजूद अधिक फाइबर से भी कुछ लोगों को दस्त होते हैं. कुछ दिनों के लिए सभी प्रकार के फल, कच्ची सब्जियां व सलाद रोंक कर देखें. यदि उनको न लेने से दस्त ठीक हो जाएं व पुनः लेने से फिर होने लगें तो इनकी मात्रा नियंत्रित करना आवश्यक है. बाजार में बिकने वाला जूस, शिकंजी, गन्ने का रस, फास्ट फ़ूड इत्यादि बिलकुल नहीं लेने चाहिए. होटलों या दावतों का खाना खाने से भी इन्फैक्शन का काफी डर होता है. यदि किसी जगह पर खाना पड़े तो तुरंत की सिकी हुई रोटी, कचोड़ी, भटूरे या एकाध तेज गरम सब्जी या दाल खा कर ही काम चला लेना चाहिए. इन स्थानों पर सलाद, दही, चटनी, साँस, नानवेज व पानी नहीं लेना चाहिए.
कुछ लोगों को दूध से दस्त होते हैं. दूध में उपस्थित लैक्टोज नामक शुगर के न पचने के कारण ऐसा होता है. ऐसे लोगों को दूध, चाय, खोया, पनीर, आइसक्रीम, चाकलेट, दूध की मिठाई, दलिया व खीर सभी का परहेज करना होता है. दही जमने की प्रक्रिया में लैक्टोज का पाचन हो जाता है इसलिए दही से दस्त नहीं होते. अत; इस प्रकार के लोग दूध की कमी दही से पूरी कर सकते हैं. लैक्टोज के समान ही सोर्बिटोल नामक एक शुगर होती है जिसका प्रयोग दवाओं को मीठा करने में व च्युइंगम, टाफी इत्यादि बनाने में होता है. अधिक मात्रा में एसिडिटी की दवाएं पीने वालों को कभी कभी सोर्बिटोल के न पचने से गैस बनना व दस्त हो सकते हैं.
इरिटेबल बावल सिंड्रोम एक बहुत कामन बीमारी है. इसमें कुछ लोगों को कब्ज, कुछ को दस्त व कुछ को कभी कब्ज कभी दस्त, पेट दर्द आदि हो सकते हैं. अपने देश में अमीबा द्वारा बड़ी आंत का इन्फैक्शन भी बहुत होता है. उसके लक्षण भी इस से मिलते जुलते होते हैं. बहुत से लोगों को दोनों बीमारियाँ एक साथ पाई जाती हैं. वे जब अमीबियासिस की दवा खाते हैं तो उन्हें थोडा लाभ होता है पर दवा बंद करते ही फिर परेशानी होने लगती है. ऐसे लोग अनावश्यक रूप से अमीबियासिस की दवाएं खाते रहते हैं. इस प्रकार की परेशानियों के लिए योग्य चिकित्सक से परामर्श लेकर ही दवाएं खाना चाहिए. यदि दस्तों के साथ उल्टी, भूख कम होना, पेट में दर्द व दुखन, बुखार, वजन कम होना, मल के साथ खून आना आदि कोई भी लक्षण हो तो तुरन्त डाक्टर को दिखाना चाहिए. बहुत से लोगों को यह अंध विश्वास होता है कि ऐलोपैथी में पेट का स्थाई इलाज नहीं होता. वे देसी, हकीमी इत्यादि के चक्कर में पड़ कर बहुत नुकसान उठाते हैं. कुछ लोग ठीक से पेट साफ़ न होने को कब्ज समझते हैं और दस्तावर दवाएं खाने लगते हैं. वे भी दस्तों के शिकार हो जाते हैं.
थायराइड हार्मोन अधिक बनने से भी दस्त हो सकते हैं जो कि थायराइड का इलाज करने पर ही ठीक होते हैं. डायबिटीज के पुराने मरीजों में न्यूरोपैथी होने के कारण भी कुछ लोगों को दस्त होते हैं जो कि बहुत कठिनाई से कंट्रोल होते हैं. लम्बे समय तक दस्त रहना किसी गम्भीर बीमारी का सूचक हो सकता है. दस्त रहने के कारण शरीर में प्रोटीन व विटामिनों की कमी हो जाती है व अन्य बहुत सी बीमारी होने का डर रहता है. इसके लिए योग्य डाक्टर से परामर्श करके आवश्यक जांचें करा के इलाज कराना चाहिए.
डॉ शरद अग्रवाल एम डी