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उच्च रक्तचाप ( हाई ब्लड प्रेशर , High Blood Pressure )

हाई ब्लड प्रेशर के संबंध में जानने योग्य कुछ बातें

हमारा हृदय एक निश्चित दवाब के साथ रक्त धमनियों में पम्प करता है. इसी को सामान्य ब्लड प्रेशर कहते हैं. इसको मेन्टेन करना एक बहुत जटिल प्रक्रिया है जिसमे मुख्य रूप से हृदय, गुर्दे व कुछ हार्मोन्स का योग दान होता है. इस जटिल प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ी होने से ब्लड प्रेशर सामान्य से ऊँचे स्तर पर मेन्टेन होने लगता है. ब्लड प्रेशर हाई रहने से शरीर की धमनियों को हानि होती है जिससे निम्न बीमारियाँ होने का डर रहता है –

  1. हृदय् की दीवार मोटी होने लगती है जिससे हृदय की कार्य क्षमता कम हो जाती है. ब्लड प्रेशर बहुत अधिक बढ़ जाने से हार्ट फेल्यर का भी डर रहता है.
  2. हृदय की धमनियों (coronary arteries) में चर्बी जमने लगती है (atherosclerosis) व हृदय पर अधिक बोझ पड़ता है, जिससे एन्जाइना एवं हार्ट अटैक की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
  3. मस्तिष्क की धमनियों में रक्त जमने (thrombosis) से पैरालिसिस होने का डर होता है. अधिक ब्लड प्रेशर से मस्तिष्क की धमनी फट सकती है ( brain hemorrhage).
  4. गुर्दे खराब हो सकते हैं व आँखों के परदे खराब हो सकते हैं.
  5. नाक से खून आ सकता है व पैरों में गैन्ग्रीन हो सकती है.

यदि हाई ब्लड प्रेशर के साथ साथ डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्राल, या सिगरेट व तम्बाकू सेवन जैसे रिस्क फैक्टर्स साथ में हों तो इन बीमारियों का डर कई गुना बढ़ जाता है.

अधिकतर लोगों में ब्लड प्रेशर की बीमारी आनुवांशिक (खानदानी) होती है. यह आम तौर पर तीस से चालीस वर्ष की आयु में आरम्भ होती है. यदि किसी को कम आयु में ब्लड प्रेशर की बीमारी होती है तो उसकी जांचें करा कर देखते हैं कि उसे किसी अन्य बीमारी के कारण तो ब्लड प्रेशर हाई नहीं है. यदि ऐसा कोई कारण मिलता है तो उसको ठीक करने से ब्लड प्रेशर की बीमारी दूर हो सकती है. अन्य सभी लोगों को जीवन भर ब्लड प्रेशर की दवाएं खानी होती हैं.

ब्लड प्रेशर की दवाओं से सामान्यत: कोई नुक्सान नहीं होता है. यदि किसी दवा से कोई छोटी मोटी परेशानी होती है तो उसके स्थान पर दूसरी दवा प्रयोग की जा सकती है. बीटा ब्लाकर दवाओं से किसी किसी को नपुंसकता की शिकायत हो सकती है व दमे के रोगियों की परेशानी बढ़ सकती है. इसी प्रकार इनैलेप्रिल, रैमिप्रिल आदि दवाओं से सूखी खाँसी आने की शिकायत हो सकती है. यदि ऐसा कुछ हो तो अपने डॉक्टर को दिखा कर दूसरी दवा लिखवा लेनी चाहिए. दवा की जितनी डोज से ब्लड प्रेशर कंट्रोल हो उतनी दवा लगातार लेनी चाहिए, उसे कम नहीं करना चाहिए. जाड़ों में ब्लड प्रेशर की दवा की डोज़ थोड़ी बढ़ानी पढ़ सकती है. गर्मियों में पसीना आने के कारण कुछ कम दवा से ब्लड प्रेशर कंट्रोल हो सकता है.

ब्लड प्रेशर बढ़ने के कोई लक्षण नहीं होते. थोड़ा बहुत ब्लड प्रेशर महसूस भी नहीं होता है. बहुत से लोगों को यह भ्रम होता है कि ब्लड प्रेशर थोड़ा सा भी बढ़ने से उन्हें सरदर्द, चक्कर व घबराहट होने लगती है. सच यह है कि घबराहट व बेचैनी के कारण उस समय ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. किसी भी व्यक्ति में ब्लड प्रेशर हमेशा एक सा नहीं रहता है. यह लगातार बदलता रहता है. दवाओं की डोज़ इस प्रकार निश्चित करनी होती है कि ब्लड प्रेशर नार्मल रेंज में रहे.

ब्लड प्रेशर लगातार बढ़ा हुआ न रहता हो तो भी उसकी दवा नियमित रूप से खानी चाहिए क्योंकि ब्लड प्रेशर कभी कभी बढ़ने से भी ख़तरा रहता है जब कि दवाओं से कोई नुकसान नहीं है. खाने में नमक, घी, तेल का परहेज करना चाहिए. नियमित रूप से टहलना, साइकिल चलाना, स्विमिंग, खेल या जागिंग जैसे व्यायाम करना चाहिए (वेट लिफ्टिंग नहीं) व तनाव कम करने का प्रयास करना चाहिए.                                            प्राणायाम व सामान्य योगासनों से भी कुछ लाभ होता है. अधिक टेढ़े मेढ़े आसन व शीर्षासन न करें.             डॉ. शरद अग्रवाल  एम.डी.

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