प्रश्न : कुछ हकीम लोग नब्ज देख कर बीमारी बता देते हैं. चिकित्सा विज्ञान इस विषय में क्या कहता है.
उत्तर : यह केवल उच्च कोटि की ठग विद्या है. हमारे देश में व्याप्त अशिक्षा व अंधविश्वास का लाभ सभी प्रकार के ठग लोग उठाते हैं. आज के वैज्ञानिक युग में भी हम रोज ऐसी ख़बरें पढ़ते हैं कि धन दुगना करने के चक्कर में कोई ठगी का शिकार हो गया, संतान के लिए किसी स्त्री ने पड़ोसी के बच्चे की बलि दे दी, झाड़ फूंक के चक्कर में किसी मरीज ने अपनी जान गवां दी इत्यादि. पढ़े लिखे लोगों में भी चमत्कारों पर विश्वास करने की प्रवत्ति पाई जाती है.
नब्ज देख कर बीमारी पता चल सकती है यह भी एक अन्ध विश्वास है जिसका फायदा कुछ ठग लोग उठाते हैं. बहुत से मरीजों की बीमारी का अंदाज केवल उनका चेहरा, हाव भाव व चाल ढाल देख कर लग जाता है. जैसे पीलिया आँखों में दिख जाता है, खून की कमी चेहरा देखने से मालूम हो जाती है, साँस का फूलना दूर से ही दिखता है, बुखार का अंदाज शरीर को छूते ही लग जाता है, डिप्रेशन हाव भाव से मालूम होता है, कहीं दर्द हो तो चाल ढाल से उसका अंदाज लग जाता है, नाड़ी देखने से ह्रदय की गति व शरीर का तापमान मालूम हो जाता है इत्यादि. यदि किसी ब्यक्ति का चेहरा देखने से यह मालूम होता है कि उसमे खून की कमी है तो ये लोग उसको खून की कमी के लक्षण गिनाना आरम्भ कर देते हैं जैसे आपको थकान रहती है, चलने में साँस फूलती है, शरीर में बहुत दर्द होता है, शरीर दबवाने का मन करता रहता है, पैरों में सूजन आ जाती है इत्यादि. मरीज सोंचता है कि हकीम जी ने केवल नब्ज देख कर इतनी सारी बातें बता दीं और वह उनके चमत्कार का कायल हो जाता है. इसके अतिरिक्त कुछ सामान्य लक्षण होते हैं जो बहुत लोगों में पाए जाते हैं. इस तरह की बातों को अस्पष्ट शब्दों में बोल कर भी ये लोग भ्रम का जाल फैलाते हैं. जैसे स्त्रियों को कहना कि तुम्हें ल्यूकोरिया होता है, किशोरों को बताना कि तुम्हें स्वप्नदोष होता है, वृद्ध ब्यक्तियों को बोलना कि तुम्हें नींद कम आती है, किसी से कहना कि तुम्हारे लिवर पर सूजन है, या तुम्हारे माइंड पर डिप्रेशन है इत्यादि. इस तरह के तुक्कों में से यदि बीस तीस प्रतिशत भी ठीक बैठ जाएं तो अन्धविश्वासी व्यक्ति उनका भक्त हो जाता है.
प्रश्न : तो बहुत से लोगों को इस इलाज से फायदा कैसे होता है?
उत्तर : मनुष्य की बीमारियों में बहुत सी बीमारियाँ ऐसी होती हैं जो अपने आप ही घटती बढ़ती हैं. कुछ बीमारियाँ अपने आप ही ठीक भी होती हैं. कुछ लोग केवल मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार होते हैं. वे यह सोचते हैं कि उन्हें कोई बहुत बड़ी बीमारी है जो पकड़ में नहीं आ रही है. उन्हें विश्वास हो जाए कि उनकी बीमारी अब पकड़ में आ गयी है तो वे ठीक हो जाते हैं. इन्हीं सब प्रकार के रोगियों को यह धोखा होता है कि वे इस इलाज से ठीक हुए हैं.
प्रश्न : यदि ये लोग वास्तव में ठग हैं तो इनकी असलियत पता लगाने का क्या उपाय है?
उत्तर : यदि इन्हें किसी ऐसी जगह पर आँखों पर पट्टी बाँध कर बिठाया जाए जहां आस पास इनके एजेंट न हों और इनसे यह कहा जाय कि अब वे मरीजों की नब्ज देखकर उनकी बीमारी बताएं तो फ़ौरन इनकी पोल खुल सकती है. हमारे देश में क़ानून व्यवस्था लचर होने के कारण कोई इस प्रकार के लफड़ों में पड़ना नहीं चाहता. हमारे यहाँ खोजी पत्रकारिता का भी एक दम अभाव है, इस लिए कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो इनकी असलियत लोगों को दिखाए. इन्हीं कारणों से इन लोगों के धंधे जोर शोर से चलते रहते हैं.