आयु बढ़ने के साथ लगभग सभी लोगों को घुटनों में दर्द की शिकायत होती है। इसका सबसे मुख्य कारण एक विशेष प्रकार का गठिया होता है जिसे ऑस्टियोआर्थराइटिस कहते हैं। घुटने की हड्डियों की सतह पर कार्टिलेज नाम का एक टिश्यू होता है जो कि शॉक एब्ज़ोर्बर (झटके झेलने) का काम करता है। उम्र बढ़ने के साथ कार्टिलेज घिसने लगता है एवं जोड़ के भीतर पाया जाने वाला तरल पदार्थ (साइनोवियल फ्लूड) कम होने लगता है। कार्टिलेज के घिसने से हड्डियां आपस में टकराने और घिसने लगती हैं, उनमें नोकें बन जाती हैं और दर्द होने लगता है। इसके साथ ही जोड़ का आवरण (joint capsule) और हड्डियों को आपस में जोड़ने वाले टेंडन और लिगामेंट कमजोर हो जाते हैं। दर्द के कारण व्यक्ति का चलना फिरना और व्यायाम करना कम हो जाता है जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इन सब कारणों से जोड़ की टिके रहने की क्षमता (stability) कम हो जाती है और रोगी को उठने-बैठने, सीढ़ी चढ़ने व कार में बैठने आदि में खासतौर पर परेशानी होती है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस क्यों होती है : जिस प्रकार पुरानी होती जाने पर हर मशीन के कलपुर्जे घिसते हैं उसी प्रकार आयु बढ़ने के साथ हमारे शरीर के जोड़ भी घिसते हैं। यदि हमारा वजन ज्यादा होता है तो ऑस्टियोआर्थराइटिस अधिक परेशान करती है। यदि घुटनों में बार बार चोट लगती है तो भी ऑस्टियोआर्थराइटिस जल्दी होती है। इसके अलावा कुछ विशेष बीमारियों में ऑस्टियोआर्थराइटिस अधिक होती है। एक बार घुटनों के जोड़ कमजोर होना शुरू हो जाए तो उकडूं बैठने, पालथी मारकर बैठने व सीढ़ियां चढ़ने से उनको और अधिक नुकसान होता है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस की डायग्नोसिस: इस बीमारी में घुटनों के अलावा हाथों, कमर, गर्दन व कूल्हों में भी दर्द हो सकता है। घुटनों का दर्द चलने फिरने से बढ़ता है व आराम करने से कम होता है। घुटनों में सूजन हो सकती है। एक्सरे व एम आर आई से बीमारी की डायग्नोसिस करने में सहायता मिलती है।
उपचार : ऑस्टियोआर्थराइटिस का मुख्य कारण क्योंकि जोड़ का घिसना है इसलिए इसमें जो भी बदलाव आते हैं वे वापस ठीक नहीं हो सकते। इलाज के मुख्य उद्देश्य होते हैं दर्द को कम करना व बीमारी को बढ़ने से रोकना। इसके लिए निम्न बातों पर ध्यान दें-
1 . जिन लोगों का वजन अधिक है उन्हें वजन कम करना चाहिए। अधिक वजन घुटनों को अधिक डैमेज करता है।
2 . उकडूं नहीं बैठना चाहिए, पालथी मारकर नहीं बैठना चाहिए व सीढ़ियां कम से कम चढना चाहिए। टॉयलेट के लिए वेस्टर्न कमोड (कुर्सी वाली सीट) का उपयोग करना चाहिए एवं नहाने या पूजा आदि करने के लिए स्टूल या ऊंची चौकी पर बैठना चाहिए।
3 . सामान्य व्यायाम करने के लिए टहलने, जोगिंग करने या दौड़ने के स्थान पर साइकिल चलाना, तैरना व लेट कर या बैठकर व्यायाम करना अधिक फायदा पहुंचाते हैं। रस्सी कूदने (skipping) से नुकसान हो सकता है.
4 . कुछ विशेष व्यायाम ऑस्टियोआर्थराइटिस में लाभ पहुंचाते हैं – (देखें health videos में, घुटनों का व्यायाम)
(क) सीधे बैठ कर पैर को बिल्कुल सीधा फैलाएं। पैर के पंजे को आगे पीछे करें। एक साथ दोनों पैरों से या दोनों पैरों में बारी-बारी से इस व्यायाम को कर सकते हैं। दिन में कम से कम 100 बार इस व्यायाम को करें।
(ख) लेट कर पैरों को साइकिल की भांति चलाएं।
(ग) यदि हाथों में भी दर्द व सूजन हो तो मुट्ठियां कसकर बंद करना और पूरा हाथ खोलना इस प्रकार व्यायाम करें। घुटनों व हाथों की सिकाई से भी लाभ होता है।
(घ) अधिक परेशानी होने पर कुछ दिनों के लिए फिजियोथेरेपी करा सकते हैं।
दर्द होने पर हल्की दर्द निवारक दवाई ले सकते हैं। पेरासिटामोल एक अत्यंत सुरक्षित दवा है जिसे दिन में दो या तीन बार लिया जा सकता है। अधिक दर्द होने पर पैरासीटामाल व ट्रामाडोल के कंबीनेशन ले सकते हैं। बहुत तेज दर्द या अधिक सूजन होने पर तेज दर्द निवारक दवाएं थोड़े समय के लिए ले सकते हैं। दर्द की तेज दवाएं अधिक समय तक खाने से हृदय व गुर्दों को नुकसान पहुंचता है व पेट में अल्सर हो सकता है।
कुछ दवाओं के विषय में यह संभावना व्यक्त की जाती है कि उनसे ऑस्टियोआर्थराइटिस का बढ़ना कुछ कम किया है सकता है। जिन लोगों को ऑस्टियोआर्थराइटिस की शुरुआत हुई हो वे अपने डॉक्टर से सलाह ले कर इस प्रकार की दवा का ट्रायल कर सकते हैं।
कुछ लोगों को आर्थोस्कोपी (दूरबीन द्वारा जोड़ के अंदर देखना) करके जोड़ के भीतर की छोटी-मोटी खराबियों को ठीक करने से दर्द में बहुत लाभ होता है।
घुटनों में दर्द बहुत अधिक बढ़ जाए या जोड़ की स्थिरता कम होने से गिरने का डर होने लगे तो उसका सही इलाज है घुटनों का बदलना (घुटना प्रत्यारोपण, knee transplant)। लेकिन घुटने के ऑपरेशन से पहले वजन कम करना व मांसपेशियों को मजबूत बनाने वाले व्यायाम करना आवश्यक है। ऑपरेशन के बाद भी लगातार व्यायाम करना आवश्यक होता है।
विशेष : कुछ डॉक्टर घुटनों का दर्द कम करने के लिए स्टीरॉयड दवाई प्रयोग करते हैं। दर्द की दवाएं बेचने वाले अधिकतर हकीम अपनी पुड़ियों में देसी दवाओं के नाम पर तेज दर्द निवारक दवाएं और स्टीरॉयड डाल कर देते हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में स्टेरॉयड दवाओं का कोई रोल नहीं है। यह दवाई शुरू में दर्द और सूजन को फौरन कम करती हैं पर अपना आदी बनाती हैं और लंबे समय में बहुत नुकसान पहुंचाती हैं।
यदि जोड़ में बहुत अधिक दर्द हो तो जोड़ के अंदर स्टीरॉयड का इंजेक्शन लगाने से दर्द को तुरंत कम किया जा सकता है। पर कुछ समय बाद दर्द फिर से शुरू हो जाता है। जोड़ में इंजेक्शन लगाने से इंफेक्शन का डर भी रहता है। स्टीरॉयड इंजेक्शन से दर्द कम होने के बाद यदि घुटनों को अधिक इस्तेमाल किया जाए (अधिक सीढ़ी चढ़ना, उकडू बैठना आदि) तो जोड़ के ज्यादा तेजी से डैमेज होने का डर होता है। एक दूसरा इंजेक्शन Sodium Hyaluronate घुटनों के जोड़ में होने वाले डैमेज को कुछ कम कर सकता है. इस में स्टीरॉयड जैसे नुकसान भी नहीं होते.
डॉ. शरद अग्रवाल (एम. डी.)