सामान्यत: जब हम सांस लेते हैं तो हमें इसका एहसास नहीं होता. हम अवचेतन (subconscious) रूप से सांस लेते रहते हैं. जब हमें सांस लेने में थोड़ा कठिनाई का एहसास होने लगता है तो उसको सांस फूलना (breathlessness) कहते हैं. सांस लेने में कठिनाई के बहुत से कारण होते हैं –
- फेफड़ों की बीमारी (Diseases of Lungs) – फेफड़ों का मुख्य काम है सांस लेना. फेफड़ों में कोई भी कमी होने से हमको सांस लेने में परेशानी होने लगती है. यदि सांस की नली में सिकुड़न और सूजन हो (जैसा कि दमा या ब्रोंकाइटिस में होता है) तो सांस को अंदर खींचने और बाहर निकालने में हमको अधिक मेहनत करनी पड़ती है और ऐसा महसूस होता है कि हमारी सांस फूल रही है. यदि फेफड़े के किसी भाग में न्यूमोनिया का असर हो जाए या पानी भर जाए या फेफड़े के पंचर हो जाने से फेफड़े की झिल्ली में हवा इकट्ठी हो जाए तो भी हमारी सांस फूलती है. फेफड़े के इनफेक्शंस (टीबी आदि) से यदि फेफड़े का काफी हिस्सा डैमेज हो जाए तो भी सांस फूलती है. फेफड़े की किसी भी बीमारी से जिन लोगों की सांस फूलती है उन को सांस के साथ अक्सर खांसी की शिकायत भी होती है एवं चलने या मेहनत करने से उनकी सांस अधिक फूलती है. दमे के मरीजों को सांस लेने में सांय सांय या चिड़ियाँ बोलने जैसी आवाज़ भी हो सकती है. न्यूमोनिया और फेफड़े की झिल्ली में पानी या हवा भरने से सांस के साथ दर्द की शिकायत भी होती है. ब्रोंकाइटिस, टीबी और न्यूमोनिया के मरीजों को खांसी के साथ बलगम भी आता है और कभी कभी थूक में खून भी आ सकता है. धूम्रपान करने वाले लोगों को फेफड़ों की बीमारियाँ अधिक होती हैं. सीने के एक्सरे व् स्पाईरोमेट्री जांच से फेफड़ों की अधिकतर बीमारियों को डायग्नोस किया जा सकता है.
- हृदय रोग (Heart diseases) – हृदय का काम है शरीर के ऑक्सीजन रहित रक्त को पंप करके फेफड़ों में भेजना और फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त रक्त को लेकर शरीर में पंप करना. यदि किसी कारण से हृदय की पंप करने की क्षमता कम हो जाती है तो फेफड़ों में पानी इकट्ठा होने लगता है और सांस फूलने लगती है. हृदय के किसी वॉल्व में सिकुड़न या लीकेज होने से भी यही परेशानी होती है. रक्त की बहुत कमी होने, ब्लड प्रेशर अधिक बढ़ने या थायराइड की परेशानी होने से भी हृदय की पंप करने की क्षमता कम हो जाती है. हृदय रोग के कुछ मरीजों को चलने से छाती में दर्द होना या दिल की धड़कन मालूम होना जैसे लक्षण भी हो सकते हैं. हृदय रोगियों की सांस चलने से अधिक फूलती है एवं बहुत से लोगों को लेटने से सांस फूलती है तथा बैठने से आराम मिलता है. कुछ लोगों को पैरों में सूजन भी होती है. ECG व ईकोकर्डियोग्राफी द्वारा ह्रदय की अधिकतर बीमारियों को डायग्नोस किया जा सकता है.
- इओसिनोफिलिया (Eosiniphilia) – पेट में पाए जाने वाले कीड़े एस्केरिस या हुक वर्म जब लारवा अवस्था में रक्त में संचार करते हुए फेफड़ों में से गुजरते हैं तो फेफड़ों में सूजन पैदा कर सकते हैं, जिससे बहुत से लोगों को सांस फूलने की परेशानी हो सकती है. इस समय पर रक्त में इयोसिनोफिल (eosinophils) नाम की कोशिकाएं बढ़ जाती हैं. इस प्रकार के मरीजों को अक्सर खांसी की शिकायत भी होती है. खून की सामान्य जांच TLC, DLC द्वारा इसे डायग्नोस किया जा सकता है. दमे के मरीजों के रक्त में भी एओसिनोफिल्स बढ़ जाती हैं, पर ये 10 – 15 % से अधिक नहीं होतीं जबकि एओसिनोफिलिया की बीमारी में ये 50% से भी अधिक हो सकती हैं.
- बहुत से मरीजों को ऐसा लगता है कि उन्हें सांस पूरी अंदर नहीं आ रही है. इससे उन्हें बहुत घबराहट होने लगती है. वह मुंह खोलकर जोर से सांस लेते हैं या जम्हाई लेने की कोशिश करते हैं. फिर भी उन्हें लगता है कि सांस पूरी नहीं आ रही है. घबराहट के कारण उनके हाथ पैरों और होठों में झनझनाहट होने लगती है और हाथ पैर ठंडे होने लगते हैं. दो बड़े सामान्य कारण हैं जिससे किसी व्यक्ति को ऐसा लगना शुरु होता है कि उसे पूरी सांस नहीं आ रही है. पहला कारण है आमाशय में सूजन जोकि सामान्यत: एसिडिटी के कारण होती है और दूसरा है सांस की नलियों में हल्की सिकुड़न या सूजन जो कि प्रदूषण व एलर्जी के कारण बहुत से लोगों को हो रही है. पल्स ऑक्सीमीटर नाम के छोटे से इंस्ट्रूमेंट से यह मालूम हो जाता है कि मरीज़ के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा पूरी है, अर्थात उसे सांस को बीमारी नहीं है. पीक फ्लो मीटर नाम के साधारण से इंस्ट्रूमेंट से यह तुरंत पता लगाया जा सकता है कि मरीज की सांस की नलियों में सिकुड़न है या नहीं.