चिकित्सकों के पास ऐसे बहुत से मरीज आते हैं जिन्हे बहुत घबराहट होती है. इनमें से अधिकतर लोगों को कोई विशेष शारीरिक रोग नहीं होता. इस प्रकार के मरीज समझते हैं कि उन्हें कोई बहुत बड़ी बीमारी है जो पकड़ में नहीं आ रही है. इस डर के कारण वे अलग अलग डॉक्टरों को दिखाते रहते हैं और तरह-तरह की जांचे कराते रहते हैं. बहुत से लोग झाड़ फूंक करने वालों या नब्ज देख कर बीमारी बताने वाले ठगों के चक्कर में पड़कर स्वास्थ्य बर्बाद कर लेते हैं.
चिंता और घबराहट मनुष्य की स्वभावगत कमजोरियां हैं. आज के तनावग्रस्त जीवन में हर व्यक्ति तरह तरह की समस्याओं व चिंताओं से घिरा हुआ है जिससे उसके अंदर असुरक्षा की भावना बनी रहती है. इसके अतिरिक्त हर व्यक्ति के मन में बचपन से ही बीमारी संबंधी डर बैठे होते हैं. यदि हम किसी गंभीर रोग के मरीज को देखते हैं तो हमारे मन में यह डर बैठ जाता है कि कहीं हमें भी यह बीमारी ना हो जाए. विशेषकर हार्ट अटैक, सांस की बीमारी, पैरालिसिस और कैंसर का डर तो हम सभी के अवचेतन मस्तिष्क में बैठा होता है. बीमारियों के विषय में हमारे मन में बहुत सी गलत धारणाएं भी होती है जो इस डर को और बढ़ाती हैं. समाचार पत्रों और इंटरनेट पर बीमारियों के बारे में पढ़कर जो अधूरी जानकारी हम इकट्ठी करते हैं उससे भी हमारे मन में डर बैठता है.
कोई बीमारी होने पर उसके विषय में घबराहट होना तो स्वाभाविक हैं. लेकिन कुछ लोगों को बिना बीमारी हुए ही बहुत अधिक घबराहट होती है या थोड़ी सी बीमारी में ही बहुत घबराहट होती है. वास्तव में घबराहट भी अपने आप में एक बीमारी है जिसके अजीब-अजीब लक्षण होते हैं. कई बार डॉक्टर के लिए यह जानना कठिन हो जाता है कि रोगी को कौन सा लक्षण असल बीमारी के कारण हो रहा है और कौन सा केवल घबराहट के कारण हो रहा है. घबराहट के मुख्य लक्षण हैं – दिल में धड़कन होना व दिल डूबना, हाथ पैरों, होठों व दातों में झनझनाहट होना या चीटियां चलती मालूम होना, ऐसा लगना की सांस पूरी नहीं आ रही है, बहुत अधिक बेचैनी होना, अजीब सा डर लगना व ऐसा लगना कि अब हम नहीं बचेंगे. जब इस प्रकार के लक्षण होते हैं तो मरीज और डर जाता है. उसकी समझ में नहीं आता कि यह सब क्यों हो रहा है. वह समझता है कि वह किसी बड़ी बीमारी का शिकार हो रहा है. इससे उसकी घबराहट और बढ़ जाती है. अधिक घबराहट होने से यह सारे लक्षण और बढ़ जाते हैं जिससे घबराहट और बढ़ती जाती है. अंततः मरीज नर्वस ब्रेकडाउन की स्थिति में पहुंच जाता है. मरीज के साथ साथ घर के अन्य लोग भी बहुत अधिक घबरा जाते हैं.
बहुत से मरीजों में घबराहट और डिप्रेशन दोनों के लक्षण मिलते हैं. इन दोनों ही बीमारियों का संबंध दिमाग में पाए जाने वाले कुछ केमिकल न्यूरोट्रांसमीटर्स से होता है. इन दोनों ही बीमारियों में नींद ना आने की समस्या भी हो सकती है. दवाओं से इन दोनों बीमारियों में लाभ होता है.
घबराहट की बीमारी के इलाज में सबसे अधिक आवश्यकता होती है विश्वास की. योग्य चिकित्सक इस बात को तुरंत डायग्नोस कर लेते हैं के रोगी को कोई शारीरिक बीमारी ना होकर केवल घबराहट की बीमारी है. यदि किसी बीमारी का संदेह होता है तो उसके बारे में जांच करवा कर देख लेते हैं. लेकिन कई बार रोगी को यह विश्वास दिलाना बहुत कठिन होता है कि उसे कोई गंभीर रोग नहीं है. सच तो यह है कि जब तक रोगी के मन में यह विश्वास ना बैठ जाए तब तक वह ठीक नहीं हो सकता. इस बीमारी में बहुत कम दवाओं की आवश्यकता होती है. कुछ दवाएं लगातार थोड़े समय तक खानी पड़ती है व कुछ दवाएं जब घबराहट हो तब खाने के लिए दी जाती हैं.
डॉ. शरद अग्रवाल (एम. डी.)