Diabetes, Women Health

गर्भावस्था जन्य डायबिटीज ( जेस्टेशनल डायबिटीज, Gestational Diabetes )

यदि किसी महिला को गर्भावस्था के दौरान पहली बार डायबिटीज की बीमारी होती है तो इसे गर्भावस्था जन्य डायबिटीज (जेस्टेशनल डायबिटीज, Gestational Diabetes)  कहते हैं. इनमें से कुछ महिलाओं को प्रसव होने के बाद डायबिटीज खत्म हो जाती है और कुछ में स्थाई रूप से हो जाती है. जिन महिलाओं में प्रसव के बाद डायबिटीज खत्म हो जाती है उनमें से भी अधिकतर में दोबारा गर्भधारण करने पर डायबिटीज होने की संभावना बहुत अधिक होती है और अधिकतर महिलाओं में  कुछ साल बाद टाइप टू डायबिटीज स्थाई रूप से हो जाती है.

जेस्टेशनल डायबिटीज में दो समस्याएं बहुत गंभीर होती हैं एक तो यह कि इसके कारण गर्भस्थ शिशु के लिए काफी खतरा हो सकता है और दूसरी यह कि गर्भावस्था में डायबिटीज के लिए प्रयोग होने वाली अधिकतर खाने की दवाएं सुरक्षित नहीं मानी जाती हैं. गर्भावस्था में शुगर कम करने के लिए खाने की केवल एक दवा मेटफार्मिन ही प्रयोग करते हैं और इससे शुगर कंट्रोल न होने पर इंसुलिन का प्रयोग करते हैं. गर्भावस्था में यह भी आवश्यक है की शुगर को पूरी तरह से कंट्रोल किया जाए अन्यथा गर्भ के दौरान और प्रसव के समय कॉम्प्लिकेशंस होने का डर होता है.
डायग्नोसिस : जिन महिलाओं के परिवार में किसी को डायबिटीज की बीमारी है, उनको गर्भधारण से पहले ही शुगर टेस्ट करा लेना चाहिए. यदि पहले टेस्ट न कराया हो तो गर्भधारण करते ही एक बार शुगर टेस्ट करा लेना चाहिए. आयु बढ़ने के साथ-साथ क्योंकि डायबिटीज की संभावना बढ़ती जाती है इसलिए 30 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं को विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है. जो महिलाएं अधिक वजन या मोटापे की शिकार हैं उनको भी अधिक सावधानी रखना चाहिए.

जेस्टेशनल डायबिटीज की डायग्नोसिस के लिए सभी महिलाओं (जिन महिलाओं की शुगर शुरू में नार्मल थी उनको भी) गर्भावस्था के 24 सप्ताह बीतने के बाद ग्लूकोस पी कर शुगर टेस्ट करा लेना चाहिए. इसको Glucose Tolerance Test (GTT) कहते हैं. इस टेस्ट के लिए सुबह खाली पेट शुगर टेस्ट करते हैं  और फिर 75 ग्राम ग्लूकोस खिलाकर उसके 1 घंटे और 2 घंटे बाद शुगर टेस्ट करते हैं. यदि खाली पेट वाली ब्लड शुगर 92 से अधिक, ग्लूकोस के 1 घंटे बाद वाली 180 से अधिक एवं 2 घंटे बाद वाली 153 से अधिक आती है तो इसको ग्लूकोस इनटोलरेंस कहते हैं और इन महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज मानते हुए उनका इलाज आरंभ कर देते हैं.
उपचार : जिन महिलाओं में थोड़ी सी ही शुगर बढ़ी होती है उनमें परहेज, व्यायाम एवं मेटफार्मिन नामक दवा द्वारा शुगर कंट्रोल करने का प्रयास करते हैं. यदि इनसे शुगर कंट्रोल न हो तो इंसुलिन लगाना आरंभ करते हैं. विश्व में अधिकतर डायबिटीज विशेषज्ञ इन दो दवाओं के अतिरिक्त डायबिटीज की किसी अन्य दवा को गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित नहीं मानते. कुछ अध्ययनों के अनुसार Glibenclamide नाम की दवा भी गर्भावस्था में सुरक्षित है.

जेस्टेशनल डायबिटीज से होने वाले संभावित खतरे : गर्भवती महिलाओं में यदि डायबिटीज हो जाए तो ब्लड प्रेशर बढ़ने एवं गर्भावस्था से संबंधित विशेष बीमारी प्रीएकलैंपशिया होने का खतरा अधिक होता है. इस के अतिरिक्त समय से पहले प्रसव होना, शिशु का वज़न अधिक होना, सिजेरियन ऑपरेशन की आवश्यकता होना, प्रसव के पहले या तुरंत बाद शिशु की मृत्यु होना आदि परेशानियाँ हो सकती हैं. नवजात शिशु में हाइपोग्लाइसीमिया अर्थात शुगर लेवल कम होना (जिसमें दौरे भी पड़ सकते हैं) एवं सांस की परेशानी होना (Respiratory distress syndrome, जिसके लिए इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती करने की आवश्यकता हो सकती है) की संभावना होती है. इन बच्चों में बड़े होने पर मोटापे एवं डायबिटीज का खतरा अधिक होता है.

बचाव (Prevention) : गर्भधारण करने की  इच्छा रखने वाली सभी महिलाओं को चाहिए कि संतुलित एवं पोषक भोजन करें एवं अपना वजन न बढ़ने दें. नियमित व्यायाम अवश्य करें. सिगरेट तंबाकू एवं शराब का सेवन न करें. ब्लड शुगर की जांच नियमित रूप से कराती रहें एवं थोड़ी सी भी शुगर बढ़ने पर उसका तुरंत उचित उपचार करें. 

डॉ. शरद अग्रवाल एम. डी.

 

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