Mental Health, Miscellaneous, Superstitions

बीमारी का डर ( disease phobia )

शंका : हमें बहुत सी परेशानियाँ हैं, लगता है हमें कोई गंभीर बीमारी है जो पकड़ में नहीं आ रही है.

समाधान : चिकित्सकों के पास ऐसे बहुत से मरीज आते हैं जिन्हें कुछ अस्पष्ट (vague) सी परेशानियां होती हैं। वे अपने लक्षणों को बहुत जोर देकर बताते हैं। उनके हिसाब से उन्हें बहुत परेशानी होती है। इस प्रकार के एक मरीज ने बताया कि उसने बहुत से डॉक्टर्स को दिखाया है पर जैसे ही वह बोलना शुरू करता है, डॉक्टर उसकी बात ठीक से बिना सुने ही इधर-उधर देखने लगते हैं, और फिर कुछ दवा लिखकर दे देते हैं। कोई भी डॉक्टर उसकी परेशानी को गंभीरता से नहीं लेता।
इस प्रकार की परेशानियों में वास्तविकता क्या होती है इसको समझने की कोशिश कीजिए। हमारे शरीर का नर्वस सिस्टम हर समय शरीर के अंदर और बाहर के वातावरण से संवेदनाएं (sensory inputs) ग्रहण करता रहता है (जैसे आँखें देखती हैं, कान सुनते रहते हैं, त्वचा स्पर्श महसूस करती है, हड्डियों, जोड़ों, मांसपेशियों और आंतरिक अंगों से भी लगातार कुछ sensory signals दिमाग तक पहुँचते हैं). इस प्रकार हमारे मस्तिष्क तक हर सेकंड में हजारों संवेदनाऐं पहुँचती हैं जिन में से अधिकतर को हमारा अवचेतन मस्तिष्क ही डील कर लेता है और चेतन मस्तिष्क महसूस नहीं करता है।  संवेदनाएं ग्रहण करने के अतिरिक्त चेतन और अवचेतन मस्तिष्क ( conscious aur subconscious mind)  शरीर के विभिन्न अंगों को अपना अपना  काम करने व आपस में सामंजस्य बिठाने (coordinate करने) के लिए निर्देश (directions) भी देते रहते हैं। यह सारा तंत्र (system) इतना जटिल (complex) है कि हम इस की कल्पना भी नहीं कर सकते।

कभी कभी कुछ लोगों को इन में से कुछ छोटे छोटे (insignificant) सिग्नल्स  से अजीब सी परेशानियाँ महसूस होने लगती हैं – जैसे दिल में धड़कन, शरीर में कहीं भी झनझनाहट, शरीर में कभी कहीं कभी कहीं दर्द होना,सर में दर्द, कहीं भी सुन्न पन, पेट में आंतों का चलना या पेट में पानी का हिलना महसूस होना, कभी ऐसा लगना कि सांस पूरी तरह से अंदर नहीं जा रही है, गैस का ठीक से पास न होना और ऐसा लगना कि सारे शरीर में कहीं भी गैस अटैक कर रही है, कानों में सांय सांय की आवाज आना, कहीं भी मांस फड़कना, सर में झक झक होना, सीने में तीर चुभने जैसा दर्द होना, शरीर के किसी हिस्से में चींटियां चलती मालूम होना, सीने में बाईं तरफ दर्द या भारीपन होना आदि आदि। (मरीज अपनी परेशानी बताने के लिए इतना उतावला होता है कि डॉक्टर का हाथ पकड़ कर अपने पेट और सीने पर जगह जगह रख कर बताता है कि यहाँ दर्द है)।
ये कुछ ऐसे ख़ास (stereotyped) लक्षण हैं जो केवल ये दिखाते हैं कि यह व्यक्ति महत्त्व हीन सिग्नल्स के लिए अधिक संवेदनशील (over sensitive) है। ऐसा मरीज जैसे ही बोलना शुरु करता है उसकी बातों से और बोलने के ढंग (presentation) से अनुभवी डॉक्टर फौरन उसकी परेशानी समझ जाते हैं। ऐसे मरीजों की परेशानियों की लिस्ट बहुत लंबी होती है और मरीज के हिसाब से उसे बहुत सारी बीमारियां होती हैं, जबकि डॉक्टर जानता है कि उन सब का कारण केवल एक ही है। ऐसे मरीजों को दवा से अधिक समझाने (counciling) की आवश्यकता होती है, जिसमें बहुत समय लगता है। मरीज हर लक्षण को अलग-अलग बीमारी समझता है  और उस के लिए अलग अलग पूछता है कि ऐसा क्यों हो रहा है, वैसा क्यों हो रहा है। बहुत से मरीज फ़ालतू की जांचें करा लाते हैं और डॉक्टर से अलग अलग जांच के विषय में पूछते हैं। कुछ मरीज़ रिपोर्टों के बारे में इन्टरनेट पर पढ़ने की कोशिश करते हैं और अनावश्यक टेंशन पाल लेते हैं.

डॉक्टर को मालूम होता है कि बीमारी एक ही है, इसलिए वह इन छोटी-छोटी डिटेल्स को ध्यान से नहीं सुनता है। डॉक्टर एक लक्षण के विषय में समझाने की कोशिश करता है कि ऐसा इसलिए हो रहा है तो मरीज पलट के पूछता है कि फिर वैसा क्यों हो रहा है? मरीज को मेडिकल साइंस का बिल्कुल ज्ञान नहीं होता इसलिए उसके लिए कुछ भी समझ पाना संभव नहीं होता, लेकिन वह बहस करता रहता है। अंत में डॉक्टर हार कर दवा लिखकर दे देता है। इस प्रकार के लक्षणों में आमतौर पर डिप्रेशन और घबराहट वाली दवाएं दी जाती हैं। अब मरीज केमिस्ट के पास जाकर पूछता है कि यह दवा किस चीज की है? केमिस्ट को भी मेडिकल साइंस का कोई ज्ञान नहीं होता। वह मरीज को बताता है कि यह नींद की दवा है। मरीज को लगता है डॉक्टर ने उसकी बात ध्यान से सुनी ही नहीं, बीमारी का कोई कारण भी नहीं बताया और नींद की दवा दे दी। इस प्रकार के मरीज़ किसी डॉक्टर से संतुष्ट नहीं हो पाते और बिना किसी गंभीर बीमारी के परेशानी उठाते रहते हैं। बहुत से लोग देसी दवाओं, होम्योपैथी, झाड़ फूँक, बाबाओं और नब्ज़ देख कर मर्ज़ बताने वाले ठगों के चक्कर में पड़ जाते हैं।

इस प्रकार के मरीजों को जब तक यह विश्वास न हो जाए कि उन्हें कोई कोई गंभीर शारीरिक बीमारी नहीं है, तब तक वे ठीक नहीं हो सकते.

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