मिरगी का रोग मस्तिष्क की कोशिकाओं में असामान्य इलैक्ट्रिकल डिस्चार्ज के कारण होता है. सामान्यत: मस्तिष्क की कोशिकाओं की बनावट में कोई अनियमितता होने, इन्फैक्शन होने, रक्तस्राव होने या ट्यूमर इत्यादि होने से मिर्गी का दौरा हो सकता है. बहुत से मरीजों में जांच करने पर इनमे से कोई खराबी नहीं पाई जाती है लेकिन तब भी उन्हें मिरगी का रोग हो सकता है. यह रोग अनुवांशिक नहीं होता व किसी व्यक्ति को भी हो सकता है.
जब किसी व्यक्ति को पहली बार दौरा पड़ता है तो उसे शीघ्रातिशीघ्र डॉक्टर को दिखाना चाहिए. जिसने दौरा पड़ता हुआ देखा हो उस व्यक्ति द्वारा किया गया वर्णन डॉक्टर के लिए किसी भी जांच से अधिक महत्वपूर्ण है. सारी बात सुनकर व मरीज का परीक्षण करके डॉक्टर यह निश्चित करते हैं कि वास्तव में मरीज को मिरगी का दौरा पडा है कि नहीं. कभी कभी हिस्टीरिया के दौरे या चक्कर व बेहोशी के मरीजों में भी मिरगी का धोखा होता है. मिरगी का कारण जानने के लिए सामान्यत: मस्तिष्क का सीटी स्कैन या एम आर आई कराना आवश्यक होता है. कभी कभी ईईजी (EEG) नामक जांच भी करना होती है जिसमें मस्तिष्क की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी रिकॉर्ड करते हैं.
मिरगी की डायग्नोसिस निश्चित करने के बाद तुरंत ही उसका उपचार आरम्भ किया जाता है. कुछ मरीजों को अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक होता है. मिरगी की दवा आरम्भ करने के बाद उसका पूरा प्रभाव आने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है. इस बीच में दौरा पड़ने की संभावना होती है इसलिए कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए–
- आग के पास, सीढ़ियों पर, जहां पानी भरा हो या ट्रैफिक वाली सड़क पर मरीज को अकेला नहीं जाना चाहिए क्योंकि दौरा पड़ने की दशा में मरीज की जान का ख़तरा हो सकता है. दौरे नियंत्रित होने के बाद इन जगहों पर जाया जा सकता है.
इन सावधानियों के अतिरिक्त कुछ सावधानियां मिरगी के रोगियों को हमेशा बरतनी चाहिए
- कुछ मरीजों को जलती बुझती रोशनी देखने, टीवी, वीडियो गेम्स, अत्यधिक मानसिक तनाव आदि से भी मिरगी के दौरे पड़ सकते हैं, ऐसे लोगों को इन चीजों से बचना चाहिए.
- किसी भी प्रकार के नशे जैसे शराब, सिगरेट, तम्बाकू, भांग, अफीम, स्मैक आदि का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए.
- नींद पूरी न होने पर दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. नियमित दिनचर्या व प्रतिदिन लगभग सात घंटे की नींद आवश्यक है.
- मिरगी की दवाओं को कभी भी अचानक नहीं छोड़ना चाहिए. यदि कभी किसी आकस्मिक कारण से किसी अन्य डॉक्टर को दिखाना पड़े तो यह अवश्य बता देना चाहिए कि रोगी कौन सी दवा ले रहा है. यह ध्यान रखना चाहिए कि कुछ दवाएं मिरगी के दौरों को बढ़ा सकती हैं. जैसे साँस की दवा थियोफाइलिन, मानसिक रोगों की कुछ दवाएं, दर्द निवारक ट्रैमाडोन व पैथिडीन, सिप्रोफ्लोक्सासिन ग्रुप की एंटीबायोटिक्स इत्यादि.
- यदि कोई महिला रोगी मिरगी की दवाएं लेते हुए गर्भ धारण करना चाहती है तो उसे पहले से ही किसी विशेषज्ञ की सलाह लेना चाहिए व गर्भावस्था व प्रसव के दौरान भी विशेषज्ञ से परामर्श करते रहना चाहिए.
- कुछ बच्चों को बुखार होने पर मिर्गी के दौरे पड़ते हैं. इन्हें febrile seizures कहते हैं. इस प्रकार के बच्चों को किसी भी प्रकार का बुखार होने पर तुरंत पेरासिटामोल सिरप देना चाहिए और ठंडे पानी से स्पोंज करना चाहिए जिससे बुखार अधिक न बढ़े. आयु बढ़ने के साथ इनकी संभावना कम होती जाती है.
- विशेषज्ञ की देखरेख में यदि ठीक से उपचार किया जाय तो मिरगी से कोई ख़तरा नहीं होता और न ही जीवन के किसी क्रिया कलाप में कोई कमी आती है, इसलिए मिरगी के रोगी को कोई हीन भावना या मानसिक तनाव नहीं पालना चाहिए.
- मिरगी का इलाज अपने पारिवारिक चिकित्सक व विशेषज्ञ की देखरेख में ही कराना चाहिए इसके लिए अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन देने वाले ठगों के चक्कर में नहीं पढ़ना चाहिए.
डॉ० शरद अग्रवाल एम डी
मिर्गी के विषय में जानने के लिए एक उपयोगी video link https://www.youtube.com/watch?v=p_h6FdWjch4