हमारे शरीर के विकास एवं रख रखाव के लिए प्रोटीन्स की आवश्यकता होती है जो हमें भोजन से प्राप्त होती हैं. जो प्रोटीन्स हमारे लिए उपयोगी नहीं होती उनके ब्रेक डाउन से यूरिक एसिड बनता है जिसको गुर्दे बाहर निकाल देते हैं. यदि यह यूरिक एसिड अधिक मात्रा में रक्त में इकठ्ठा हो जाए तो किन्हीं किन्हीं जोड़ों के अन्दर इसके बारीक क्रिस्टल बन जाते हैं. इन क्रिस्टलों के कारण जोड़ों में सूजन व अत्यधिक दर्द होता है. इस बीमारी को गाउट कहते हैं. पैर के अगूंठे का पहला जोड़ गाउट से सबसे अधिक प्रभावित होता है. बोलचाल की इंग्लिश भाषा में इसे Podagra कहते हैं. इसके अतिरिक्त पैरों के अन्य जोड़, घुटने, कलाई व कोहनी में गाउट का दर्द हो सकता है. सामान्यत: कंधे, कूल्हे व रीढ़ की हड्डी में गाउट का दर्द नहीं होता. एड़ी के नीचे भी गाउट का दर्द नहीं होता.
जोड़ों के अतिरिक्त यूरिक एसिड के क्रिस्टल गुर्दों में भी जमा हो सकते हैं. इससे गुर्दों में पथरी बनने का डर रहता है. अधिक समय तक यूरिक एसिड बढा हुआ रहने से गुर्दे खराब होने का भी ख़तरा रहता है. खाल के नीचे भी यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा हो सकते हैं जिससे खाल के नीचे गाठें (Tophi) बन जाती हैं.
कुछ लोगों में यूरिक एसिड बढ़ा हुआ रहता है पर उन्हें कोई परेशानी नहीं होती. लेकिन यह कुछ अन्य बीमारियों का सूचक हो सकता है. इस प्रकार के लोगों को यूरिक एसिड की दवाएं आरम्भ करने के स्थान पर अपनी कुछ आवश्यक जाचें जैसे ब्लड शुगर, रक्त में चर्बी (कोलेस्ट्राल, ट्राइग्लिसराइड्स) ब्लड यूरिया आदि की जांच करा लेना चाहिए, व्यायाम अवश्य करना चाहिए व अल्कोहल का सेवन बंद कर देना चाहिए. यदि रक्त में शुगर या चर्बी बढ़ी हो तो उसका इलाज कराना चाहिए. इस प्रकार के मरीजों में यूरिक एसिड की दवाओं की आवश्यकता सामान्यत: नहीं होती.
यूरिक एसिड के लिए परहेज: जो लोग मोटे हैं उन्हें मोटापा कम करने के लिए आवश्यक परहेज करना चाहिए. शराब का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए. कुछ दवाएं विशेषकर ब्लड प्रेशर व ह्रदय रोग में दी जाने वाली थाइज़ाइड दवाएं यूरिक एसिड को बढ़ा सकतीं हैं. इन के स्थान पर अन्य दवाएं प्रयोग करना चाहिए. खाने की वस्तुओं में मीट, लिवर (कलेजी), ब्रेन (भेजा), किडनी (गुर्दा), मीट का शोरबा व छोटी मछली (झींगा इत्यादि) बिलकुल नहीं लेना चाहिए. शराब पीने से यूरिक एसिड बढ़ने का खतरा होता है. कोकाकोला इत्यादि कोल्डड्रिंक भी यूरिक एसिड को बढ़ाते हैं. इन का भी सख्त परहेज करना चाहिए.
नॉनवेज में सामान्य मछली व चिकेन थोड़ी मात्रा में ले सकते हैं. पालक, मटर, सेम व दालें भी कम मात्रा में लेना चाहिए. लेकिन इनको बिलकुल बंद करना आवश्यक नहीं है. बहुत से लोग (यहाँ तक कि बहुत से डॉक्टर भी) यह समझते है कि प्रोटीन वाले सभी खाद्य पदार्थ बंद या कम कर देना चाहिए. यह सही नहीं है. दूध, पनीर, व अंडे अच्छी मात्रा में ले सकते हैं.
उपचार: यदि गाउट के दर्द का अटैक हो तो उसको पहले दर्द निवारक दवाओं से कंट्रोल करना होता है. इस प्रकार की दवाओं को डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए क्योंकि यह दवाएं ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग, गुर्दा रोग, जिगर के रोग व अल्सर में बहुत हानि पहुंचाती हैं. यूरिक एसिड के परहेज भी तुरंत आरम्भ कर देना चाहिए. काल्चिसिन नामक एक विशेष दवा केवल गाउट के दर्द को कम करती है लेकिन कुछ लोगों में इससे पेट खराब होने का डर होता है. यूरिक एसिड को कम करने की दवाएं दर्द कम होने के बाद आरम्भ करनी होती हैं व उनको लम्बे समय तक खाना होता है.
विशेष: यूरिक एसिड और गाउट साथ बहुत सी गलत धारणाएं जुड़ी हैं. बहुत से डॉक्टर्स को भी इसकी जानकारी नहीं होती है. कमर के दर्द का यूरिक एसिड से कोई सम्बन्ध नहीं होता. हाथों की उँगलियों में भी यूरिक एसिड के कारण दर्द नहीं होता. घुटनों का दर्द भी अधिकतर ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारण होता है. जिन डॉक्टर्स को इस प्रकार की जानकारी नहीं होती वे अनावश्यक रूप से मरीज़ का यूरिक एसिड टैस्ट कराते हैं और जरा सा बढ़ा हुआ निकल आने पर यूरिक एसिड कम करने की दवाएं आरम्भ कर देते हैं. इस से भी अधिक परेशानी की बात यह होती है कि वे मरीज़ को सभी प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ बंद करने के लिए बोल देते हैं.
डॉ. शरद अग्रवाल (एम डी)