हम अपने भोजन में जो भी चिकनाई (fats) खाते हैं वे पाचन के बाद लिवर में पहुंचती हैं और वहां से मांसपेशियों व चर्बी इकट्ठा करने वाले स्थानों (adipose tissues) में पहुंचती है जहां उनका स्टोरेज होता है. इंसुलिन हार्मोन इसमें सहायता करता है व अल्कोहल इस में रुकावट डालता है. जो लोग अधिक शराब पीते हैं उन में चिकनाई लिवर से बाहर न जा कर चर्बी के रूप में लिवर में जमा होने लगती है. अधिक चर्बी जमा होने से लिवर की कोशिकाओं में सूजन होने लगती है और लिवर की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं. इस स्टेज पर यदि शराब पीना बंद न किया जाए तो अधिक कोशिकाएं नष्ट होने से सिरोसिस लिवर नाम की खतरनाक बीमारी हो जाती है जिससे धीरे धीरे पूरा लिवर खराब हो जाता है और मरीज की मृत्यु हो जाती है.
डायबिटीज के मरीज जिनमें इंसुलिन की कमी होती है उनमें भी यदि खान-पान में चिकनाई अधिक हो तो लिवर में चिकनाई इकट्ठे होने लगती है और लिवर की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं. इस स्टेज पर यदि ठीक से इलाज ना किया जाए तो इसमें भी लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर होने का डर होता है.
बहुत से लोगों में इंसुलिन की मात्रा तो पूरी होती है पर उनमें कुछ कारणों से इंसुलिन ठीक से काम नहीं कर रहा होता है. इस अवस्था को इंसुलिन रेजिस्टेंस कहते हैं. इन लोगों में भी लिवर में चर्बी इकट्ठा होने की संभावना होती है. इनमें से बहुत से लोग मोटापे के शिकार होते हैं अथार्त उनके शरीर में भी चर्बी की मात्रा अधिक होती है. इनमें से बहुत से लोगो को बाद में डायबिटीज भी हो जाती है. बहुत से लोगों में ब्लड प्रेशर अधिक होना एवं खून में ट्राइग्लिसराइड नाम की चर्बी व यूरिक एसिड ज्यादा होने की बीमारी भी साथ में होती है. आधुनिक युग में अधिक भोजन, अनियमित भोजन, चिकनाई नमक व मीठा अधिक खाना और व्यायाम बिल्कुल न करना यह इन सब परेशानियों का मुख्य कारण है. यदि किसी व्यक्ति को इनमें से कई परेशानियां एक साथ होती हैं तो इसे मेटाबोलिक सिंड्रोम कहते हैं. मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में ह्रदय रोग, डायबिटीज, लिवर के रोग, गठिया एवं महिलाओं में हार्मोन संबंधित रोग अधिक होने की संभावना होती है.
कुछ दवाएं भी लिवर में चर्बी इकट्ठा होने की संभावना को बढ़ाती हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं स्टेरॉयड दवाएं जैसे डेकाड्रान, बैटनीसाल आदि. हमारे देश में झोलाछाप डॉक्टर इन दवाओं का अत्यधिक प्रयोग करते हैं क्योंकि यह दर्द, बुखार व दमा आदि में तुरंत आराम पहुंचाती हैं. बहुत से हकीम और वैद्य अपनी पुड़ियों में यह दवाएं पीस कर डाल देते हैं और लोग यह समझ कर कि देसी दवाएं नुकसान नहीं करती हैं इन पुड़ियों को लंबे समय तक खाते रहते हैं. इन लोगों में भी स्टोराइड दवाओं के बहुत से साइड इफेक्ट के साथ लिवर में चर्बी होने की बीमारी भी हो सकती है.
डायग्नोसिस
लिवर में चर्बी होना एक बहुत कॉमन बीमारी है. बहुत से लोगों को इसके कारण कोई परेशानी महसूस नहीं होती. किसी अन्य कारण से उनकी जाँच करने पर लिवर में चर्बी दिखाई दे जाती है. कभी-कभी सामान्य जांचें कराने पर लिवर के एंजाइम एसजीपीटी व एसजीओटी थोड़े बढ़े हुए मिलने से इसका शक होता है जो कि अल्ट्रासाउंड से कंफर्म किया जा सकता है. कुछ लोगों को पेट में दाहिनी और लिवर के ऊपर भारीपन महसूस होना व भूख कम लगने जैसे लक्षण हो सकते हैं. इसकी पक्की डायग्नोसिस लिवर बायोप्सी (सुई द्वारा लिवर का रेशा निकालकर उसकी जांच) कराने से की जा सकती पर आम तौर इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती है.
उपचार
लिवर में जमा चर्बी को किसी दवा द्वारा नहीं निकाला जा सकता है. जो लोग शराब पीते हैं उन्हें शराब पीना बिल्कुल बंद कर देना चाहिए. खाने में भी सभी प्रकार की चिकनाई घी, मक्खन, तेल, रिफाइंड, क्रीम आदि खाना बंद कर देना चाहिए. डायबिटीज को पूर्णतया कंट्रोल करना चाहिए. जो लोग डायबिटीक नहीं हैं उन्हें भी चीनी का प्रयोग नहीं करना चाहिए. मोटे लोगों को सख्त परहेज व व्यायाम द्वारा वजन कम करना चाहिए. जो लोग मोटे नहीं हैं उन्हें भी नियमित एरोबिक व्यायाम जैसे तेज चलना, दौड़ लगाना, जोगिंग करना, साइकिल चलाना, खेलना, तैरना, डांस करना आदि व्यायाम करने चाहिए. योग से इसमें कोई विशेष लाभ नहीं होता. लंबे समय तक इतना सब करने से लिवर में से चर्बी कम हो जाती है और लिवर खराब होने का खतरा बहुत कम हो जाता है. लंबे समय तक परहेज व व्यायाम करने से मेटाबोलिक सिंड्रोम के अन्य लक्षणों को भी फायदा होता है, अथार्त डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, मोटापा, खून में चर्बी आदि को कंट्रोल करने में भी मदद मिलती है
लिवर में चर्बी इकट्ठा होना एक खतरनाक बीमारी है जिसका इलाज बहुत गंभीरता पूर्वक करना चाहिए. इसके लिए कुछ दवाई दी जाती हैं पर दवाएं इसमें विशेष सहायता नहीं करतीं. इस के इलाज के लिए परहेज व व्यायाम पर पूरा ध्यान देना चाहिए. देसी दवाएं व Liv 52 आदि इसमें बिलकुल लाभ नहीं करती बल्कि नुकसान पहुंचा सकती हैं.
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी