Diabetes, Emergency

शुगर कम होना ( हाइपोग्लाइसीमिया , hypoglycemia )

सामान्यतः एक स्वस्थ व्यक्ति में ब्लड शुगर 60 से 140 mg/dl के बीच रहती है. यदि किसी कारण से यह 60 से नीचे पहुंच जाए तो इसे शुगर कम होना या हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं. हमारे भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेट और चिकनाई (fats) हमको कार्य करने के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं. हम किसी भी रूप में कार्बोहाइड्रेट अपने भोजन में ग्रहण करें (गेहूं, चावल, आलू, मक्का, गुड़, चीनी आदि) ये सभी पाचन क्रिया द्वारा ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाते हैं. यही ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश करके ऊर्जा उत्पन्न करने के काम में आता है. घी और तेल इत्यादि चिकनाई पाचन के बाद फैटी एसिड्स में परिवर्तित हो जाते हैं जोकि ऊर्जा उत्पन्न करने के काम में आते हैं. जो ग्लूकोस तुरंत शरीर के काम में नहीं आता है उसको हमारा शरीर ग्लाइकोजन के रूप में परिवर्तित करके लिवर और मांसपेशियों में स्टोर कर देता है. आवश्यकता पड़ने पर ग्लाइकोजन फिर से ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है. यदि हम लंबे समय तक भोजन न करें और हमारे ग्लाइकोजन के स्टोर भी खाली हो जाए तो प्रोटीन एवं फैटी एसिड के मेटाबॉलिज्म से ग्लूकोस का निर्माण होता है. इसको gluconeogenesis (नया ग्लूकोस बनना) कहते हैं. यह काम मुख्यत: लिवर में होता है.

हाइपोग्लाइसीमिया के कारण : 1. हाइपोग्लाइसीमिया  का सबसे कॉमन कारण है  भोजन के अनुपात में डायबिटीज की दवा  या इंसुलिन  की अधिक मात्रा. 2. शरीर को बहुत लंबे समय तक भोजन न मिलने पर भी ग्लूकोज की कमी हो सकती है. जिन लोगों को लिवर की बीमारी हो या जो व्यक्ति अत्यधिक शराब का सेवन करते हो उनमें हाइपोग्लाइसीमिया होने की संभावना अधिक होती है. 3. शरीर में अत्यधिक इन्फेक्शन हो (bacterial sepsis या falciparum malaria) तो भी शुगर कम हो सकती है. 4. कुछ कॉमन दवाएं भी हाइपोग्लाइसीमिया की संभावना को बढ़ाती हैं (जैसे ब्लड प्रेशर की दवाएं रेमिप्रिल, लोसार्टन व बीटा ब्लॉकर्स, एंटी बायोटिक ओफ्लोक्सासिन, सल्फा ड्रग्स व मलेरिया की दवाएं). 5. जब हम व्यायाम या अधिक शारीरिक श्रम करते हैं तो हमारी मांस पेशियाँ अधिक ग्लूकोस खर्च करती हैं. यदि डायबिटीज का मरीज़ किसी दिन अधिक व्यायाम कर लेता है (जो वह रोज़ नहीं करता है) तो भी उसकी शुगर कम हो सकती है.

बहुत से लोगों को यह अंधविश्वास होता है कि यदि वे चीनी न खाएं तो उनकी शुगर कम हो जाएगी. सच यह है कि हमारे अधिकतर खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट्स मौजूद होते हैं जिनसे हमको ग्लूकोस मिलता है. यदि हम जीवन भर चीनी ना खाएं (और सामान्य भोजन करते रहें) तब भी हमारी शुगर कम नहीं होगी.

शुगर की दवा एवं इंसुलिन के कारण होने वाला हाइपोग्लाइसीमिया : डायबिटीज के मरीजों में ब्लड शुगर की मात्रा तीन बातों पर निर्भर करती है. दवा की मात्रा, भोजन की मात्रा और व्यायाम. यदि कोई मरीज धोखे से अधिक मात्रा में दवा खा ले या इंसुलिन लगा ले तो शुगर कम हो जाती है. कुछ मरीज़ भूलवश दवा की डोज़ दोबारा खा लेते हैं, कभी कभी केमिस्ट धोखे से अधिक पॉवर वाली दवा दे देते हैं और कभी कोई मरीज़ शुगर कंट्रोल न होने पर किसी दूसरे मरीज़ की दवा खा कर देखते हैं (जोकि ज्यादा पॉवर की होती है). कभी कभी कुछ लोग जो डायबिटीज के मरीज़ नहीं होते वे धोखे से डायबिटीज की दवा खा लेते हैं. इसीलिए चिकित्सा विज्ञान में यह नियम बनाया गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति बेहोशी जैसी हालत में मिलता है तो उसकी शुगर अवश्य टैस्ट करते हैं चाहे वह किसी भी आयु का हो और पहले से डायबिटीज का मरीज़ हो या न हो.

जो लोग इन्सुलिन लगा रहे होते हैं उन में शुगर कम होने का डर और अधिक होता है. आँख की रोशनी कम होने के कारण कई बार मरीज़ सिरिंज या इन्सुलिन पेन में ठीक से यूनिट्स नहीं पढ़ पाते हैं और इन्सुलिन की गलत डोज़ लगा लेते हैं. इन्सुलिन की सिरिंज दो प्रकार की आती हैं, 100 unit/ml एवं 40 unit/ml. इसी तरह इन्सुलिन भी इन्हीं दो प्रकार की होती हैं. कभी कभी इन्सुलिन लगाने वाले मरीज़ इस से भ्रम में पड़ जाते हैं और इन्सुलिन की गलत डोज़ लगा लेते हैं. इन्सुलिन को यदि ठीक से फ्रिज में न रखा गया हो तो उसकी पोटेंसी कम हो जाती है. यदि किसी मरीज़ की शुगर इस प्रकार के कम पोटेंसी वाले इन्सुलिन पर कंट्रोल है तो जब भी कभी वह सही पोटेंसी वाली इन्सुलिन की उतनी ही डोज़ लगाएगा, उसकी शुगर कम हो जाएगी.

डायबिटीज के मरीज़ ने यदि दवा खाई हुई हो या इन्सुलिन लगाईं हुई हो और वह समय से खाना न खाए या कम खाना खाए तो उस की शुगर कम हो सकती है. यदि मरीज़ ने खाना समय से खाया हो पर उसे उल्टी या दस्त हो जाएं तो भी शुगर कम होने की बहुत अधिक संभावना होती है (क्योंकि खाने का पाचन हो कर जो ग्लूकोस बनना चाहिए था वह नहीं बना). यदि मरीज़ ने उस दिन डायबिटीज की दवा न खाई हो तो भी उल्टी या दस्त होने पर उसकी शुगर कम हो सकती है क्योंकि पहले खाई हुई दवा का असर एक दो दिन बाद तक रह सकता है.

हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण :  शुगर कम होने पर एकदम घबराहट होने लगना, चक्कर महसूस होना, तेज भूख लगना, हाथ पैर काँपना, ठन्डे पसीने आना, सरदर्द होना, धड़कन तेज होना, धुंधला दिखाई देना, चिड़चिड़ाहट होना, चेहरा व शरीर पीला पड़ जाना, ब्लडप्रेशर बढ़ना आदि लक्षण हो सकते हैं. और अधिक शुगर कम होने पर रोगी को बेहोशी आने लगती है या वह असामान्य व्यवहार करने लगता है. किसी किसी मरीज़ को मिर्गी का दौरा भी पड़ सकता है और किसी मरीज़ को पैरालिसिस जैसे लक्षण हो सकते हैं जोकि शुगर नार्मल होने पर ठीक हो सकते हैं .शुगर अधिक कम होने पर मरीज़ गहरी बेहोशी की हालत में आ जाता है.

हाइपोग्लाइसीमिया का उपचार : ऐसे में रोगी को चीनी या ग्लूकोज़ देना चाहिए व शुगर टैस्ट अवश्य करा लेनी चाहिए. यदि डायबिटीज़ का कोई रोगी बेहोशी की सी हालत में मिले तो उसे फ़ौरन हास्पिटल पहुंचाना चाहिए. बेहोश व्यक्ति के मुँह में कभी भी पानी या ग्लूकोज़ आदि नहीं डालना चाहिए बल्कि ड्रिप द्वारा ग्लूकोज़ देना चाहिए. जिन लोगों की शुगर अधिक दवा खा लेने के कारण कम हुई हो उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि गोली का असर 36 या 48 घंटे तक रह सकता है, इसलिए उन्हें इतने समय तक सावधानी रखनी चाहिए.

विशेष : जब किसी मरीज़ की शुगर कम होती है तो शरीर में ऐसे कुछ हॉर्मोन निकलते हैं जो इन्सुलिन के प्रभाव को कम करके शुगर को बढाने का कार्य करते हैं (ग्लूकागॉन, एड्रेनैलिन, थाइरोक्सिन, ग्रोथ हॉर्मोन आदि). इन हारमोंस के प्रभाव (तथा चीनी, ग्लूकोज़ आदि लेने के कारण) से बहुत से मरीजों में शुगर बहुत बढ़ जाती है. कुछ मरीजों की शुगर रात में सोते समय कम हो जाती है जिसका उन्हें अहसास नहीं होता (कुछ लोगों को डरावने सपने आते हैं). फिर उपरोक्त हारमोंस के कारण सुबह तक उन की शुगर बहुत बढ़ जाती है. एक वैज्ञानिक के नाम पर इसको सोमोगी प्रभाव (Somogy effect) कहते हैं. जिन डॉक्टर्स को इसका ज्ञान नहीं होता वे शुगर बढ़ी हुई देख कर दवा या इन्सुलिन की डोज़ बढ़ा देते हैं जिससे मरीज़ को नुकसान होता है.

बचाव : शुगर अधिक कम हो जाना किसी भी मरीज़ के लिए एक डरावना अनुभव होता है. अधिक समय तक शुगर कम होने से मरीज़ को काफी नुकसान हो सकता है और दुर्भाग्यवश किसी मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है. इससे बचने के लिए डायबिटीज के मरीजों को चाहिए की दवा एवं इन्सुलिन की डोज़ लेते समय पूरी सावधानी रखें, भोजन का समय  और मात्रा निश्चित होना चाहिए तथा तीनों समय के भोजन में प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ जैसे दालें, चना, मटर, दूध की चीजें, अंडा, मांस मछली आदि में से कोई चीज़ अवश्य होना चाहिए (प्रोटीन की चीज़ें देर से पचती हैं इसलिए शुगर कम होने की संभावना कम होती है). व्यायाम भी निश्चित मात्रा में करना चाहिए. कभी बहुत अधिक व्यायाम करना पड़ जाए तो भोजन की मात्रा बढ़ा लेना चाहिए.          

   डॉ. शरद अग्रवाल एम डी

 

 

 

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