सामान्य बुखारों के बिषय में जानने योग्य कुछ तथ्य
बुखार अर्थात शरीर का तापमान बढ़ जाना अपने आप में कोई बीमारी नहीं है. यह बहुत सी बीमारियों का एक लक्षण है. अधिकांश बुखार किसी वाइरस या कीटाणु द्वारा इन्फैक्शन होने से होते हैं. जैसे वाइरल फीवर, चिकेन पाक्स, खसरा, डेंगू , पीलिया, वायरल इन्सेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) आदि विभिन्न प्रकार के वाइरस द्वारा होने वाले संक्रामक रोग हैं. मलेरिया का बुखार मलेरिया कीटाणु द्वारा फैलता है. टी.बी., टाइफायड, न्युमोनिया, गुर्दे का इन्फैक्शन, उल्टी दस्त, टान्सिलाइटिस, फोड़े फुंसी आदि भिन्न भिन्न प्रकार के बैक्टेरिया द्वारा होने वाले इन्फैक्शन हैं.
बुखार के बहुत सारे कारण होते हैं एवं प्रत्येक प्रकार का बुखार बहुत से लक्षण पैदा कर सकता है. जैसे मलेरिया में किसी को अधिक ठण्ड लग कर तीसरे दिन बुखार आता है जबकि किसी को मामूली ठण्ड लग कर लगातार रोज ही बुखार रहता है. खून की जांच में भी मलेरिया कीटाणु अक्सर दिखाई नहीं देते. टी.बी. में किसी को बहुत खांसी आती है किसी को बिलकुल नहीं आती. वाइरल फीवर बहुत से वाइरसों के कारण से हो सकता है. इन सबके लक्षण भी अलग अलग होते हैं. खून की जांचे इन में कोई विशेष सहायता नहीं करती हैं. टायफाइड भी कभी लगातार तेज बुखार के रूप में व कभी बीच बीच में आने बाले बुखार के रूप में होता है. टायफायड में खून की जांच सात आठ दिन बाद पाजिटिव आती है (वह भी आवश्यक नहीं है) और अक्सर टाइफाइड न होने पर भी पॉजिटिव आती है. बहुत से लक्षण कई बुखारों में पाए जाते हैं जैसे ठण्ड लगकर बुखार, मलेरिया, वाइरल फीवर, गुर्दे का इन्फैक्शन, न्युमोनिया, टान्सिलाइटिस, व अन्य बहुत से इन्फैक्शन में आ सकता है इसलिए ठण्ड लग कर आने वाले हर बुखार में बिना समझे मलेरिया की दवा खा लेना ठीक नहीं है. सर, कमर व पैरों में दर्द लगभग हर बुखार में होता है, लेकिन जहां तक हो सके बुखार में तेज दर्द निवारक दवाएं जैसे काम्बिफ्लाम व डिस्प्रिन आदि नहीं खानी चाहिए. इनसे एसिडिटी होकर कभी कभी खून की उल्टियां भी हो सकती हैं. एसिडिटी से बचने के लिए बुखार में चाय, जूस, मसाले व बी-कॉम्प्लेक्स कैप्सूल आदि नहीं लेने चाहिए.
बुखार के बहुत सारे कारण होते हैं व बहुत तरह के लक्षण होते हैं. इस कारण पहले दो तीन दिन में बुखार की निश्चित डायग्नोसिस कभी कभी संभव नहीं होती. ऐसे में डाक्टर अपने अनुभव द्वारा सम्भावनाएँ सोच कर इलाज आरम्भ कर देते हैं व समय समय पर आवश्यक जांचे करा कर डायग्नोसिस कायम करते हैं. कभी कभी दो या तीन इन्फैक्शन एक साथ हो जाते हैं जिससे मिश्रित लक्षण उत्पन्न होते हैं. कभी दवाओं के कारण बुखार के लक्षण दब जाते हैं, कभी दवाओं के साइड इफैक्ट्स से नए लक्षण पैदा हो जाते हैं व कभी कभी कोई इन्फैक्शन होते हुए जांचों में कुछ नहीं आता है. ये सब ऐसे कारण हैं जो बुखार के इलाज में जटिल समस्याएँ पैदा कर सकते हैं. इस तरह के रोगियों को ठीक होने में कुछ समय लगता है. बुखार को जल्दी उतारने के चक्कर में तेज दवाएं खाने से हानि हो सकती है. इस लिए यदि बुखार उतरने में समय लगे तो धैर्य से काम लेना चाहिए. बार बार बुखार के कारणों व संभावनाओं की चर्चा करने में केवल समय नष्ट होता है, इससे रोगी को कोई लाभ नहीं होता है.
इन्फैक्शन से बचाव के लिए पानी उबाल कर या फ़िल्टर कर के पीना चाहिए व बाहर की चीजें खाने से बचना चाहिए. मच्छरों से मलेरिया, डेंगू बुखार व चिकनगुनिया आदि फैलते हैं इसलिए मच्छरों से बचाव के हर संभव उपाय करना चाहिए. बुखार के मरीजों को यथा सम्भव अलग रखना चाहिए. बुखार होने पर डाक्टर की सलाह ले कर ही दवा खानी चाहिए. जब तक डॉक्टर उपलब्ध न हो तब तक केवल पेरासिटामोल 500 मिलीग्राम की गोली हर चार घंटे पर लेना चाहिए. अपने आप से एंटीबायोटिक दवाएँ नहीं लेना चाहिए क्योंकि हर इन्फेक्शन में अलग अलग एंटीबायोटिक काम करती हैं.
डा. शरद अग्रवाल एम डी