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होम्योपैथी एवं अन्य इलाज ( homeopathy and other alternative health systems )

चिकित्सा के क्षेत्र में हमारा देश अभी बहुत पिछड़ा हुआ है। दुनिया के सभी विकसित देशों में इलाज के लिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति (modern medicine) का ही प्रयोग होता है। चिकित्सा की अन्य पद्धतियां जिनको कि हम वैकल्पिक चिकित्सा (alternative medicine) कहते हैं जैसे होम्योपैथी, आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा, चाइनीज़ एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मैगनेट थेरेपी, इलेक्ट्रो होम्योपैथी,  जादू टोना,  झाड़ फूंक,  पीलिया झाड़ना,  देसी दवाइयां, प्राकृतिक चिकित्सा आदि का  हमारे देश में बहुत अधिक प्रयोग होता है। प्राचीन समय में जब शरीर रचना शास्त्र (anatomy) एवं शरीर की कार्यप्रणाली (physiology) का अध्ययन नहीं हुआ था तब लोग अपने अपने हिसाब से रोगों के कारणों का अंदाज़ लगाया करते थे। उस समय आयुर्वेद से सम्बंधित लोगों ने अपनी कल्पना के अनुसार शरीर में वात पित्त और कफ  प्रणालियों  के होने का अनुमान लगाया था तथा वे मानते थे कि सभी बीमारियां इन्हीं में दोष होने के कारण  होती हैं. चीन में उस समय उनकी अपनी चिकित्सा पद्धति थी जिसमें वह यिन और यांग मेरीडियन द्वारा बीमारियां होना एक्सप्लेन करते थे और अधिकतर बीमारियों का इलाज एक्यूपंक्चर से करते थे.  यूनान की प्राचीन सभ्यता  में भी कुछ अलग प्रकार का चिकित्सा विज्ञान विकसित हुआ था जिसको मुस्लिम सभ्यताओं के हकीम भी प्रयोग करते थे। पश्चिम में तो उस समय मानव सभ्यता अपने आदिम युग में थी और चिकित्सा के नाम पर बड़े खतरनाक प्रयोग किए जाते थे।

दुर्भाग्यवश उस समय बर्बर इस्लामिक आक्रमण कारियों के कारण  सभी प्राचीन सभ्यताओं में चिकित्सा विज्ञान का विकास रुक गया जब कि  यूरोप के देशों में फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी जैसी बेसिक साइंसेस के विकास के साथ मनुष्य के शरीर की रचना, कार्यप्रणाली तथा कीटाणु एवं अन्य कारणों से शरीर में बीमारी का होना इन सब का  वैज्ञानिक विधि से अध्ययन हुआ। वहाँ के वैज्ञानिकों ने अपने कार्य को पब्लिश भी किया जिससे आने वाली पीढ़ियों को उस कार्य को आगे बढाने में मदद मिली. इसलिए उनके यहाँ चिकित्सा विज्ञान का विकास सही रास्ते पर आगे बढ़ने लगा।  लेकिन इतना सब होने के बाद भी उनके इलाज करने के आरंभिक तरीके (विशेषकर सर्जरी) काफी खतरनाक  थे और उससे मरीज को नुकसान होने की संभावना  भी काफी रहती थी।

ऐसे समय में जर्मनी में हैनीमैन नाम के एक शख्स ने होम्योपैथी नाम  की एक  चिकित्सा पद्धति की  कल्पना की।  उन्होंने यह  कल्पना की, कि  जब प्रकृति में मौजूद  किसी पदार्थ से हमारे शरीर में कोई लक्षण उत्पन्न होता है तो यदि हम उसी पदार्थ की बहुत थोड़ी सी मात्रा का सेवन करें तो वही लक्षण ठीक हो जाता है। इसको उन्होंने like cures like  सिद्धांत का नाम  दिया। जैसे अर्निका नाम के पौधे का रस पीने से हमारे शरीर में बहुत दर्द होता है।  तो इस सिद्धांत के अनुसार यदि हम अर्निका के रस को बहुत dilute करके पिएंगे तो हमारा  दर्द ठीक हो जाएगा। उन्होंने यह भी कल्पना की कि सोरा, सिफलिस और साइकोसिस  दोषों से शरीर और मस्तिष्क के सभी क्रॉनिक रोग होते हैं। उनका कहना था कि यदि हम किसी पदार्थ को dilute करते जाएं और जोर जोर से हिलाते जाएँ (succussion) तो एनर्जी ट्रान्सफर द्वारा उसकी पोटेंसी बढ़ती जाती है. यानि दवा की एक बूँद ले कर उसे सौ बूँद अल्कोहल या पानी में मिला कर जोर जोर से हिलाएँ तो एक पोटेंसी बनती है. फिर इस solution से एक बूँद ले कर उसे सौ बूँद अल्कोहल में मिला कर जोर जोर से हिलाएँ तो दो पोटेंसी बनती है. इस तरह हम जितना dilute करते जाएँगे उतनी पोटेंसी बढ़ती जाएगी. इसी प्रकार सूखी दवाओं को पाउडर में मिला कर बारीक पीसें (triturition) तो उनकी पोटेंसी बढ़ती जाएगी. फिजिक्स व केमिस्ट्री के नियमों के अनुसार होम्योपैथी की हाई पोटेंसी दवाओं में उस केमिकल का एक भी अणु (molecule) नहीं होता. इसको एक्सप्लेन करने के लिए होम्योपैथी में यह कहा गया है कि triturion या succussion के टाइम पर अणुओं में एनर्जी ट्रान्सफर हो जाता है.

जिस समय होम्योपैथी का आविष्कार हुआ उस समय उस के लोकप्रिय होने के दो कारण रहे होंगे. एक तो यह कि जो बीमारियाँ अपने आप ठीक होती हैं उन्हें ठीक करने का दावा सभी पैथियों के लोग करते थे. उन सभी दावेदारों में होम्योपैथिक दवा शायद सबसे आसान और सस्ती होने के कारण सबसे सशक्त दावेदार रही होगी. दूसरे यह कि उस समय एलोपैथिक इलाज के तरीके इतने खतरनाक थे (विशेषकर सर्जरी) कि उनसे मरीज ठीक कम होते थे और मरते अधिक थे. मरने वालों में ऐसे बहुत से मरीज भी होते थे जिनका कोई इलाज न किया जाता तो वे शायद अपने आप ठीक हो जाते या कुछ दिन और चल जाते. इसी प्रकार के मरीजों ने यदि होम्योपैथिक दवा खाई तो वे यह समझे कि वे उससे ठीक हो गए हैं. अब जहां एक तरफ कष्टप्रद एलोपैथिक इलाज और मौत हो और दूसरी तरफ मीठी गोलियां और ज़िन्दगी तो ज़ाहिर सी बात है कि आदमी उसी को चुनेगा.

लेकिन अब स्थिति इससे उलट है. अब मॉडर्न मेडिकल साइंस (तथाकथित एलोपैथी) पूर्णतया वैज्ञानिक, सुरक्षित और प्रामाणिक (evidence based) विज्ञान है जबकि अन्य पैथियां अभी भी उन्हीं आदिम सोच पर आधारित तुक्कापन्ती (trial & error) पर चल रही हैं. इन पैथियों के चक्कर में क्यों नहीं पड़ना चाहिए इसके बहुत से कारण हैं-

  1. इन दवाओं की गुणवत्ता (quality) बिलकुल विश्वसनीय नहीं है. जहाँ एक ओर एलोपैथिक दवाएं स्ट्रिक्ट क्वालिटी कंट्रोल से गुजरती हैं और कभी भी लैब में टैस्ट की जा सकती हैं वहीँ इन दवाओं में क्या घटक (ingredients) हैं इनका कोई टैस्ट संभव नहीं होता. होम्योपैथी की हाई पोटेंसी दवाओं में तो उस साल्ट (chemical salt) का एक अणु (molecule)भी नहीं होता.
  2. किसी समय में आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाएं बहुत सस्ती हुआ करती थीं. इन के प्रैक्टिशनर्स कोई कंसल्टेशन फीस भी नहीं लेते थे. अब इन लोगों की फीस भी बहुत अधिक है और दवाएं भी अनाप शनाप महँगी हैं जबकि उनकी गुणवत्ता का कोई भरोसा नहीं है.
  3. आम तौर पर लोग समझते हैं कि इन दवाओं से कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होते. होम्योपैथी के विषय में तो कुछ हद तक यह ठीक है, क्योंकि उसमें कोई दवा होती ही नहीं है. लिहाजा उस से न नुकसान है और न फायदा. जो मरीज़ अपने आप  ठीक हो जाते हैं वे समझते हैं कि वे होम्योपैथी से ठीक हुए हैं. आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं से बहुत से खतरनाक इफेक्ट्स हो सकते हैं. एक्यूपंक्चर से आर्टरीज़, वेन्स और नर्व्स डैमेज हो सकती हैं और हेपेटाइटिस व एड्स जैसे खतरनाक इन्फेक्शन हो सकते हैं.
  4. होम्योपैथी इत्यादि के चक्कर में पड़ कर लोग शुरू में बीमारी का सही इलाज नहीं करते हैं. इससे बहुत सी बीमारियाँ बढ़ कर खतरनाक या लाइलाज स्टेज में पहुँच जाती हैं.
  5. कुत्ते काटे के मरीज़, पीलिया के मरीज़, मिर्गी के मरीज़, हिस्टीरिया के मरीज़, फालिज़ के मरीज़, पथरी के मरीज़ और यहाँ तक कि कुछ कैंसर के मरीज़ शुरुआत का कीमती समय झाड़ फूँक, देसी दवाओं एवं होम्योपैथी आदि में नष्ट कर देते हैं.
  6. आयुर्वेद व होमियोपैथी के ओरिजिनल सिस्टम्स में खून पेशाब की जांचों व एक्स रे अल्ट्रासाउंड आदि का कोई रोल नहीं था, पर अब ये लोग खूब जांचें कराने लगे हैं. क्योंकि इन लोगों को पैथोलॉजी व रेडियोलोजी का ज्ञान बिलकुल नहीं होता इसलिए वे फालतू जांचें करा के मरीज़ का पैसा बर्बाद करते हैं.
  7. अन्य पैथियों की डिग्री लेने वाले अधिकतर लोग मौका मिलने पर ऐलोपैथिक दवाएं प्रयोग करने से नहीं चूकते. कुछ लोग तो केवल एलोपैथी की ही प्रैक्टिस करते हैं. कुछ लोग देसी या होम्योपैथिक दवाओं के नाम पर स्टेरॉयड एवं तेज दर्द निवारक दवाएं मिला कर देते हैं.
  8. सामान्य बीमारियों में से लगभग तीस प्रतिशत बीमारियाँ अपने आप ठीक होती हैं. इस प्रकार के मरीज़ यदि देसी इलाज, होम्योपैथिक दवा, जादू टोना, झाड़ फूँक या एलोपैथिक दवा कुछ भी कर रहे हों, तो वे समझते हैं कि वे उस से ठीक हुए हैं. जिन सत्तर प्रतिशत लोगों को लाभ नहीं होता वे किसी से नहीं कहते कि उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ या नुकसान हुआ और उनके साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है. जिन तीस प्रतिशत को फायदा होता है वे जगह जगह कहते घूमते हैं कि उन्हें फलाने इलाज से बहुत फायदा हुआ जबकि वह फायदा अपने आप होता है. इस तरह समाज में केवल गलत सन्देश सर्कुलेट होता है.
  9. बहुत से गंभीर मरीज़ शुरू में एलोपैथिक इलाज करते हैं. जब खतरे वाली स्टेज पार हो चुकी होती है तब वे यह कह कर कि दवाएं बहुत गर्मी कर रही हैं और उन्हें बहुत कमजोरी है, अंत में होम्योपैथिक या देसी इलाज शुरू कर देते हैं. ऐसे मरीज़ ठीक हो चुके होते हैं पर वे सारा क्रेडिट बाद के इलाज को देते हैं.
  10. बहुत से मरीजों को कोई विशेष बीमारी न हो कर केवल अत्यधिक घबराहट होती है. वे समझते हैं कि उन्हें कोई बहुत सीरियस बीमारी है जिसका पता नहीं चल रहा है. ऐसे मरीजों का जहाँ विश्वास जम जाए वहाँ उन्हें फायदा होता है, चाहे वह होम्योपैथी हो या झाड़ फूँक, देसी दवा हो या टोना, ज्योतिष हो या नब्ज़ देख कर बीमारी बताने वाली ठग विद्या.

उपरोक्त वर्णन से यह बात समझ में आनी चाहिए कि आधुनिक वैज्ञानिक युग में हमें केवल प्रामाणिक चिकित्सा पद्धति पर ही विश्वास करना चाहिए और कोरी गप्पों पर आधरित अधकचरी पैथियों के चक्कर में पड़ कर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए.

 

https://www.theguardian.com/commentisfree/2015/mar/12/no-scientific-case-homeopathy-remedies-pharmacists-placebos

https://www.ftc.gov/system/files/documents/public_statements/996984/p114505_otc_homeopathic_drug_enforcement_policy_statement.pdf.

https://en.wikipedia.org/wiki/Homeopathy

  1. Bevanger, Lars (January 18, 2012). “UK universities drop alternative medicine degree programs”. Deutsche Welle. Retrieved February 5, 2012.
  2. Jump up^ NHS plans to scrap homeopathy treatments’: NHS England has announced plans to stop doctors prescribing homeopathy, herbal and other “low value” treatments”BBC News. July 21, 2017. Retrieved July 31, 2017.
  3. Jump up^ Davis, Nicola; Campbell, Denis (July 21, 2017). A misuse of scarce funds’: NHS to end prescription of homeopathic remedies”The Guardian. Retrieved July 30,2017.

डॉ. शरद अग्रवाल एम डी

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