हमारे शरीर की बढ़वार (growth) और सुचारु रूप से कार्य करने के लिए भोजन में बहुत से पदार्थ आवश्यक हैं – जैसे विभिन्न प्रकार की प्रोटीन, चर्बी, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फोस्फोरस एवं अन्य बहुत से मिनरल्स तथा विटामिन्स. इनमें से कार्बोहाइड्रेट ( carbohydrate,जैसे गेहूं, चावल, आलू, चीनी आदि) एवं चर्बी (fat,जैसे घी, तेल, मक्खन, क्रीम आदि) हमारे लिए ऊर्जा उत्पन्न करने का काम भी करते हैं. इनकी आवश्यकता हमको उसी प्रकार से है जैसे गाड़ी को चलाने के लिए पेट्रोल या डीज़ल चाहिए होता है. प्रोटीन, कैल्शियम, फोस्फोरस और आयरन मुख्यत: शरीर को बनाने का कार्य करते हैं. इनकी आवश्यकता हमको उसी प्रकार से है जैसे मकान बनाने के लिए हमें ईंटें, सीमेंट, रेता व सरिया आदि चाहिए होते हैं. शरीर के अंगों को बनाने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता प्रोटीन की होती है. शरीर के ऊतकों (tissues) में छोटी-मोटी टूट-फूट को ठीक करने एवं शरीर के मेंटेनेंस में भी सबसे अधिक आवश्यकता प्रोटीन की होती है. औसतन एक वयस्क व्यक्ति को अपने शरीर के प्रति किग्रा वज़न के लिए 0.8 ग्राम प्रोटीन (कुल लगभग 50 से 60 ग्राम) प्रतिदिन की आवश्यकता होती है. बढ़ते बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं बीमारी से ठीक हो रहे लोगों को प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है (शरीर के प्रति किग्रा वज़न के लिए 1.0 ग्राम या उससे अधिक).
भोजन में प्रोटीन के स्रोत (sources) : शाकाहारी (vegetarian) भोजन में प्रोटीन के मुख्य स्रोत हैं दूध व दूध से बनी चीजें (दही, मट्ठा, छेना, पनीर, खोया इत्यादि) तथा दालें, चना, मटर, सोयाबीन, राजमा व लोबिया इत्यादि. दालों से बनने वाली बड़ियां, बड़े व पापड़, सोयाबीन से बनने वाली न्यूट्री नगेट, टोफू एवं सोया मिल्क तथा बेसन से बनने वाली चीजें भी प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. अन्य अनाजों (जैसे गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा आदि) में प्रोटीन बहुत कम मात्रा में होता है. गेहूं के आटे में यदि चने का आटा, बेसन या पिसा हुआ सोयाबीन मिला दिया जाए तो उसमें प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है. फलों तथा सब्जियों में प्रोटीन नहीं के बराबर होता है. शाकाहारी भोजन में दूध में सबसे अधिक मात्रा में और सबसे अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन पाया जाता है. मांसाहारी भोजन में सभी खाद्य पदार्थों में प्रोटीन अच्छी मात्रा में होता है लेकिन अंडे की सफेदी में सबसे अधिक मात्रा में और सबसे अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन पाया जाता है. इसको पचाना भी सबसे आसान होता है तथा इसमें चर्बी व कोलेस्ट्रॉल भी नहीं होता. मछली में पाया जाने वाला प्रोटीन भी अच्छी क्वालिटी का होता है तथा इसमें चर्बी कम होती है. मुर्गे (chicken) व अन्य पशुओं से प्राप्त होने वाले मीट (mutton, beef & pork) में चर्बी व कोलेस्ट्रॉल अधिक मात्रा में होते हैं.
जब हम प्रोटीन की क्वालिटी की बात करते हैं तो हमें यह समझना आवश्यक है कि सभी प्रोटीन अमीनो एसिड्स से बने होते हैं. दूध और अंडे की प्रोटीन में वे अमीनो एसिड अधिकतम मात्रा में होते हैं जिनसे हमारा शरीर बना है. इसलिए हमारा शरीर इन से मिलने वाले प्रोटीन का अधिकतम उपयोग कर पाता है. जो अमीनो एसिड शरीर के लिए उपयोगी नहीं होते हैं उनका ब्रेक डाउन हो कर यूरिया, क्रिएटिनिन व यूरिक एसिड जैसे वेस्ट प्रोडक्ट बन जाते हैं जिनको हमारे गुर्दे शरीर से बाहर निकालते हैं. यदि गुर्दे ठीक से काम न कर रहे हों तो ये वेस्ट प्रोडक्ट हमारे रक्त में इकट्ठे होने लगते हैं और शरीर को हानि पहुंचाते हैं. इसीलिए गुर्दे के मरीजों को कम प्रोटीन युक्त भोजन करने की सलाह दी जाती है. प्रोटीन के ब्रेकडाउन से पहले अमोनिया बनता है जो कि शरीर के लिए बहुत हानिकारक है (विशेषकर मस्तिष्क के लिए). लिवर इस अमोनिया को यूरिया में कन्वर्ट करता है जो कि गुर्दों द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है. यदि लिवर ठीक से काम नहीं कर रहा हो तो यह अमोनिया शरीर में इकट्ठा होकर खतरा पैदा करता है. इसलिए लिवर के मरीजों को भी प्रोटीन कम खाने की सलाह दी जाती है (विशेषकर मांसाहारी प्रोटीन).
भोजन में प्रोटीन की कमी से होने वाले रोग :
- गर्भवती महिला को यदि भोजन में पर्याप्त प्रोटीन न मिले तो गर्भस्थ शिशु कमजोर हो जाता है और प्रसव में कॉन्प्लिकेशन होने की संभावना बढ़ जाती है.
- नवजात शिशुओं और बढ़ते बच्चों को यदि पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन न मिले तो उनकी बढ़वार कम हो जाती है, उनके मस्तिष्क का विकास नहीं हो पाता तथा उनमें तरह-तरह के इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है. जिन बच्चों के भोजन में प्रोटीन बहुत कम पर कार्बोहाइड्रेट पूरी मात्रा में हो, उन्हें शरीर में सूजन की बीमारी (kwashiorkar) हो जाती है. जिन बच्चों के भोजन में प्रोटीन व् कार्बोहाइड्रेट दोनों बहुत कम होते हैं उनके शरीर सूख जाते हैं (marasmus). ये दोनों अवस्थाएं आम तौर पर कुपोषण से ग्रस्त बच्चों में देखने को मिलती हैं. पुराने जमाने में लोग यह मानते थे कि घी व मक्खन में बहुत ताकत होती है. वे छोटे बच्चों को खूब घी खिलाते थे और दाल, दूध व अंडा इत्यादि खिलाना आवश्यक नहीं समझते थे. ऐसे बच्चों को लिवर में चर्बी की बीमारी (fatty liver) हो जाया करती थी.
- वयस्क लोगों को यदि पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन न मिले तो उनमें वज़न कम होना, मांसपेशियों में कमी होना (muscle wasting), खून की कमी, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी (lack of immunity), थकान रहना, शरीर में दर्द होना, सूजन आना, बाल झड़ना, चोट या घाव का जल्दी न भरना आदि लक्षण हो सकते हैं.
स्वस्थ रहने के लिए हमें संतुलित आहार की आवश्यकता होती है जिसमें भोजन के सभी आवश्यक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए. प्रोटीन या कोई भी चीज़ अधिक मात्रा में पहुँचे तो भी नुकसान करती है. उचित मात्रा में प्रोटीन लेने के लिए हमें अपने भोजन की प्लानिंग इस प्रकार करना चाहिए –
(क) नाश्ते में दूध, मट्ठा, लस्सी, पनीर, अंडा, दाल, चना या बेसन की कोई चीज़ अवश्य होना चाहिए.
(ख) दोपहर खाने में दाल, कढ़ी, नगेट, पनीर, राजमा, लोबिया सोयाबीन, दही, एगकरी या नॉन वेज में से कोई चीज़ अवश्य होना चाहिए.
(ग) शाम के खाने में भी दोपहर के खाने के समान ही प्रोटीन वाली कोई चीज़ अवश्य होना चाहिए.
(घ) जिन लोगों को अधिक प्रोटीन की आवश्यकता है वे शाम को 5 – 6 बजे या रात को सोते समय अतिरिक्त दूध या मट्ठा ले सकते हैं.
भोजन में जो भी प्रोटीन के प्राकृतिक स्रोत हैं उनसे हमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन मिल जाता है. सामान्य लोगों को प्रोटीन के किसी सप्लीमेंट की आवश्यकता नहीं होती. प्रोटीन सप्लीमेंट बनाने वाली कम्पनियाँ आम तौर पर भ्रामक प्रचार करती हैं कि उनके प्रोडक्ट में whey protein या कोई और विशेष प्रोटीन है जो कि शरीर के लिए बहुत लाभकारी है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सब से कोई अतिरिक्त लाभ नहीं होता. जो लोग बीमारी के कारण पूरी मात्रा में भोजन नहीं कर सकते केवल उन्हें ही प्रोटीन सप्लीमेंट लेना चाहिए. प्रोटीन की मात्रा पूरी करने के लिए नॉन वेज खाना आवश्यक नहीं है. जो लोग शाकाहारी हैं उन्हें दूध व दूध से बनी चीज़ों एवं दालों से (दालों में सभी दालें, चना, राजमा, लोबिया, सोयाबीन, मटर भी आते हैं) पूरी मात्रा में प्रोटीन मिल सकता है. बेसन भी प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत है. गेहूँ के आटे में बेसन मिलाने से उसमें प्रोटीन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है. शरीर की ग्रोथ एवं मेंटेनेंस के लिए उचित मात्रा में प्रोटीन एवं संतुलित आहार लेने के साथ नियमित व्यायाम करना भी आवश्यक है.
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी