हमारे रक्त में कोलेस्ट्रॉल एवं ट्राइग्लिसराइड नाम के पदार्थ पाए जाते हैं जिनको हम वसा (fats) के नाम से जानते हैं। इनमें से ट्राइग्लिसराइड सभी चिकनाई युक्त पदार्थों में पाया जाता है (सभी प्रकार के खाद्य तेल, घी, मक्खन, मलाई, क्रीम, बिना मक्खन निकाला दूध, दही व पनीर, मेवे, चर्बी, मीट, मछली, अंडे की जर्दी आदि), जबकि कोलेस्ट्रॉल केवल पशुओं से प्राप्त होने वाले चिकने पदार्थों (खाद्य तेल और मेवों को छोड़कर उपरोक्त सभी पदार्थ) में पाया जाता है (वनस्पति घी, पाम ऑइल, नारियल तेल और सूखे मेवों में सैचुरेटेड फैट होते हैं पर कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है)। उचित मात्रा में यह दोनों पदार्थ हमारे शरीर के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक है लेकिन अधिक मात्रा में होने पर यह हम को हानि पहुंचाते हैं। कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता हमारी कोशिकाओं की दीवार के निर्माण में, मस्तिष्क की कोशिकाओं के निर्माण में एवं कुछ महत्वपूर्ण हॉर्मोन्स के बनने में है जबकि ट्राइग्लिसराइड हमारे शरीर को विशेषकर मांसपेशियों को कार्य करने की ऊर्जा प्रदान करते हैं। हमारे शरीर को जितने कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता है उस का कुछ भाग हमारे लिवर में बनता है और कुछ उपरोक्त खाद्य पदार्थों से मिलता है। हमारे भोजन में उपस्थित घी, तेल व चर्बी आदि से हमें ट्राइग्लिसराइड्स मिलते हैं। इसके अतिरिक्त यदि हम आवश्यकता से अधिक कार्बोहाइड्रेट्स (गेहूं, चावल, चीनी आदि) खाते हैं तो वे भी लिवर (Liver) द्वारा ट्राइग्लिसराइड में परिवर्तित कर दिए जाते हैं। ट्राइग्लिसराइड बढ़ने से हृदय रोग की संभावना बढ़ती है या नहीं यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता लेकिन ट्राइग्लिसराइड की मात्रा बहुत अधिक हो जाने पर जिगर में चर्बी जमा होने लगती है एवं पेनक्रिएटाइटिस नामक एक खतरनाक बीमारी हो सकती है। रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने से वह रक्त की धमनियों में जमा होने लगता है। इससे एंजाइना, हार्ट अटैक और पैरालिसिस का खतरा बढ़ जाता है। इस खतरे को बढ़ाने वाले अन्य रिस्क फैक्टर्स (risk factors) हैं – डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, धूम्रपान व तंबाकू का प्रयोग, व्यायाम न करना एवं परिवार के अन्य लोगों को हृदय रोग होना (family history of heart disease)। जिस व्यक्ति में जितने अधिक रिस्क फैक्टर्स हों उस में ये रोग होने की उतनी ही अधिक सम्भावना होती है.
रक्त में मुख्यतः दो प्रकार का कोलेस्ट्रॉल पाया जाता है – LDL एवं HDL. इनमे से LDL धमनियों में जमा हो कर नुकसान पहुँचाता है (bad cholesterol) जबकि HDL धमनियों में जमा कोलेस्ट्रॉल को वहाँ से हटाता है (good cholesterol).
कोलेस्ट्रॉल व ट्राइग्लिसराइड की नार्मल वैल्यूज़ : LDL कोलेस्ट्रॉल 100 mg/dl से कम हो तो अच्छा है, 100 से 129 हो तो काम चलाऊ, 130 से 159 हो तो थोड़ा अधिक, 160 से 189 हो तो काफी अधिक और 190 से ऊपर हो तो बहुत अधिक माना जाता है. जिन लोगों को हृदय रोग या फालिज़ है अथवा जिन लोगों में कई सारे रिस्क फैक्टर्स हैं उन में LDL को 70 mg/dl से नीचे रखने का प्रयास करना चाहिए.
HDL कोलेस्ट्रॉल 40 mg/dl से कम हो तो कम माना जाता है, 40 से 60 हो तो कामचलाऊ और 60 से अधिक हो तो अच्छा माना जाता है.
ट्राइग्लिसराइड यदि 150 mg/dl से कम तो तो नार्मल, 150 से 199 थोड़ा अधिक, 200 से 499 तक काफ़ी अधिक और 500 से ऊपर बहुत अधिक माना जाता है.
क्योंकि रक्त में LDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से गंभीर रोगों का खतरा होता है इसलिए जिन लोगों के रक्त में LDLकोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ हो उन्हें नियमित व्यायाम व परहेज़ द्वारा उसे कम करने का प्रयास करना चाहिए. पहले ऐसा माना जाता था कि भोजन में कोलेस्ट्रॉल वाले खाद्य पदार्थ बिलकुल नहीं खाने चाहिए पर हाल के अध्ययनों (studies) से यह ज्ञात हुआ है कि भोजन में मौजूद कोलेस्ट्रॉल से रक्त कोलेस्ट्रॉल में विशेष वृद्धि नहीं होती. लेकिन अधिकतर यह देखा गया है की जिन खाद्य पदार्थों में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होती है उनमें नमक या चीनी व कैलोरीज़ या सैचुरेटेड फैट भी अधिक होते हैं इसलिए इन खाद्य पदार्थों से बचना ही अच्छा है..
LDL कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए परहेज़ से भी अधिक महत्व व्यायाम का है. एरोबिक व्यायाम (जैसे तेज चल कर टहलना, साइकिल चलाना, जॉगिंग करना, डांस करना, दौड़ भाग वाले खेल खेलना, तैरना आदि) करने से LDL कोलेस्ट्रॉल कम होता है और HDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है. यदि परहेज़ व व्यायाम से कोलेस्ट्रॉल कम न हो तो इसके लिए दवाओं का प्रयोग करना चाहिए. जिन लोगों को हृदय रोग या फालिज का असर हो उन्हें कोलेस्ट्रॉल नॉर्मल होने पर भी कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवाएं खानी चाहिए.
केमिकल स्ट्रक्चर के अनुसार भोजन में पाई जाने वाली फैट्स मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं – सैचुरेटेड एवं अनसैचुरेटेड. सैचुरेटेड फैट पशुओं से प्राप्त होने वाली फैट्स (दूध, घी, मक्खन, मीट, मछली व अंडे की ज़र्दी) एवं नारियल तेल व पाम ऑइल में पाई जाती हैं. ये LDL कोलेस्ट्रोल को बढ़ाती हैं और HDL को कम करती हैं इसलिए इनका सेवन कम करना चाहिए. अनसैचुरेटेड फैट तीन प्रकार की होती हैं – मोनो अनसैचुरेटेड, पौली अनसैचुरेटेड और ट्रांस फैट. इन में से ट्रांस फैट हानिकारक होती हैं. ये थोड़ी मात्रा में दूध, घी एवं मीट में पाई जाती हैं. इसके अतिरिक्त जब हम वनस्पति तेलों (सरसों का तेल, ओलिव ऑइल एवं सभी रिफाइंड ऑइल) में कोई चीज़ तलते हैं तो उस की कुछ अनसैचुरेटेड फैट ट्रांस फैट में बदल जाती हैं. इसलिए रिफाइंड तेल आदि में कोई चीज़ बार बार नहीं तलना चाहिए. मोनो अनसैचुरेटेड व पौली अनसैचुरेटेड फैट अलग अलग तेलों में अलग अलग अनुपात (ratio) में पाई जाती हैं.
हम सभी लोगों को अपने भोजन में फैट्स का प्रयोग कम करना चाहिए क्योंकि इनसे वज़न बढ़ता है तथा LDL कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढती है. जितना भी फैट हम लेते हैं उस में सैचुरेटेड फैट की मात्रा विशेष रूप से कम होनी चाहिए (घी, मक्खन, मीट, मछली, अंडे की ज़र्दी) और हमें किसी एक प्रकार का तेल न खा कर अलग अलग प्रकार के तेल प्रयोग करना चाहिए (सरसों, सोया, तिल, ओलिव, सोयाबीन, मूंगफली, राइस ब्रान, रेप सीड आदि).