रूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis)
हमारे शरीर को बाहरी कीटाणुओं से बचाने के लिए हमारे अंदर एक रोग प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम, immune system) होता है. इसकी कोशिकाएं शरीर में प्रवेश करने वाले बाहरी कीटाणुओं को नष्ट या निष्क्रिय करने का काम करती हैं. कभी-कभी कुछ कारणों से यह कोशिकाएं शरीर के अंगों (organs), ऊतकों (tissues) या कोशिकाओं (cells) को नुकसान पहुंचाने लगती हैं. इस प्रक्रिया में शरीर का कोई भी अंग प्रभावित हो सकता है. इस प्रकार से होने वाली बीमारियों को ऑटोइम्यून डिजीज़ (autoimmune diseases) कहते हैं.
इन बीमारियों में से एक रूमेटाइड आर्थराइटिस है जिसमें हाथों के जोड़ सर्वाधिक प्रभावित होते हैं. इस के अतिरिक्त पैरों के जोड़, घुटने, गर्दन की रीढ़ के जोड़, फेफड़े, हृदय की झिल्ली, आंखें और लार ग्रंथियां भी इससे प्रभावित हो सकते हैं. यह बीमारी महिलाओं में अधिक होती है.
लक्षण : आमतौर पर रोग की शुरुआत दोनों हाथों में दर्द व अकड़न के साथ होती है. सुबह सो कर उठने पर यह दर्द व अकड़न सबसे अधिक होते हैं और मरीज को मुट्ठी बांधने में परेशानी होती है जोकि एक घंटे से अधिक समय तक रहती है. इसके साथ ही पैर के पंजों में भी दर्द एवं अकड़न हो सकती है. इसके अतिरिक्त मांसपेशियों के टेंडन में दर्द हो सकता है व गांठे बन सकती हैं. बहुत से मरीजों को कमजोरी, थकान, हल्का बुखार व खून की कमी हो सकती है. आमतौर पर अन्य जोड़ों एवं अंगों पर बीमारी का प्रभाव बाद में दिखाई देता है.
जांचें : अधिकतर मरीजों में खून की जांचों द्वारा इस बीमारी को डायग्नोस किया जा सकता है. आवश्यकता होने पर जोड़ों का एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड या एम आर आई, फेफड़ों का एक्स-रे या सीटी स्कैन एवं आंखों तथा अन्य प्रभावित अंगों की जांच की जा सकती है.
उपचार : रूमेटाइड आर्थराइटिस का उपचार जितनी जल्दी आरंभ किया जाए उतना ही अच्छा रहता है. जल्दी उपचार आरंभ करने से जोड़ों में डिफॉरमिटी कम से कम होती हैं. इस बीमारी का इलाज किसी गठिया के विशेषज्ञ (रयूमटोलॉजिस्ट, rheumatologist) या किसी ऐसे फिजिशियन से कराना चाहिए जो इसके इलाज की बारीकियों को जानता हो. यदि जोड़ टेढ़े मेढ़े हो जाएं एवं उनमें सर्जरी की आवश्यकता हो तो ऑर्थोपेडिक सर्जन की सहायता लेनी होती है. आज के समय में यदि बीमारी का शुरू से ही उचित इलाज किया जाए तो ऐसी नौबत नहीं आती है.
रूमेटाइड आर्थराइटिस के इलाज के लिए बहुत सी दवाएं उपलब्ध हैं जिनका चयन रोग की स्टेज के अनुसार किया जाता है. बहुत से मरीजों को दर्द कम करने के लिए दर्द निवारक दवाओं की भी आवश्यकता होती है एवं कुछ मरीजों को कम डोज़ में स्टेरॉयड दवाएं भी देना होती हैं. इसके अतिरिक्त कैल्शियम एवं विटामिन डी, खून की कमी दूर करने की दवाएं एवं ऑस्टियोपोरोसिस से बचने की दवाएं भी लेना पड़ सकती हैं. अधिक दर्द होने पर मरीज को ठंडी या गर्म सिकाई से भी आराम मिलता है. इसके अतिरिक्त नियमित रूप से प्रभावित जोड़ों का व्यायाम करना भी आवश्यक होता है. इसकी दवाओं से बोन मैरो या लीवर पर प्रभाव पड़ सकता है इसलिए समय-समय पर उनकी जांच कराना भी आवश्यक होता है.
रूमेटाइड आर्थराइटिस की विभिन्न स्टेजेज़