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बच्चों में बिस्तर गीला करने की समस्या

सोते समय बिस्तर गीला करना बच्चों की एक आम बीमारी है। दो-तीन वर्ष की आयु तक सभी बच्चे बिस्तर  गीला करते हैं। फिर अधिकतर बच्चे इस विषय में जागरूक होने लगते हैं। वे पेशाब लगने पर जाग जाते हैं।  कुछ बच्चों में यह कमजोरी 5 से 6 वर्ष या 10 से 12 वर्ष या कभी-कभी उससे भी अधिक अधिक आयु तक चलती रहती है। कुछ बच्चे एक बार ठीक होने के बाद 5 वर्ष की आयु में दोबारा बिस्तर गीला करने लगते हैं।  ऐसा अधिकतरतब होता है जब बच्चा बहुत अधिक मानसिक तनाव में हो,  जैसे परिवार में एक और बच्चे का जन्म होने से उस पर कम ध्यान दिया जाना या माता-पिता में परस्पर कलह होना इत्यादि।

बच्चों के बिस्तर गीला करने की स्थिति में बहुत समझदारी व धैर्य से काम लेना चाहिए।  अधिकतर लोग ऐसी अवस्था में बच्चे को डांटते हैं जैसे कि वह जानबूझकर ऐसा कर रहा हो।  घर के अन्य बालक भी उसकी हंसी उड़ाते हैं।  यह बिल्कुल गलत है।  इस प्रकार के व्यवहार से बच्चे के अंदर अधिक हीनभावना और चिंता उत्पन्न होती है, जिससे उसकी बीमारी और बढ़ जाती है।

ऐसे में क्या करें

  1.  बच्चे के साथ सहानुभूति पूर्ण रवैया अपनाएं।उससे कहें कि वह घबराए नहीं। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है।  उसे भरोसा दिलाएं यह परेशानी देर सवेर ठीक तो हो ही जानी है।

2.परिवार के अन्य सदस्यों विशेषकर अन्य बच्चों को भी इस विषय में समझाएं औरबच्चे की हंसी न  उड़ाने दें।

  1.  बाहरी लोगों व मेहमानों के सामने कभी इस समस्या का उल्लेख ना करें।
  2. दिन के समय बच्चे को अधिक पानी व अन्य तरल पदार्थ पीने चाहिए और पेशाब लगने पर जितनी देर हो सके रोकना चाहिए।इससे मूत्राशय की क्षमता बढ़ती है।
  3.  शाम 7 बजे के बाद पानी व अन्य तरल पदार्थ जैसे दूध चाय कोल्डड्रिंक आदि ना दें।

6. बच्चे को समय से सुला दें।माता-पिता जब सोने जाएं तो बच्चे को पूरी तरह जगा कर बाथरुम जाने के लिए कहें।  नींद की अवस्था में गोद में लेकर ना जाएं।

  1.  यदि बच्चा थोड़ा बड़ा हो तो उससे कहें कि वह रात में एक बार अलार्म लगा कर उठे और बाथरूम जाए।
  2. जाड़े के मौसम व बरसात में विशेष ध्यान रखें।
  3. यदि इन सब सावधानियों के बाद भी बच्चा बिस्तर गीला करता है तो  इस विषय में डॉक्टर की सलाह लें।  डॉक्टर बच्चे का परीक्षण करके यह निश्चित करते हैं कि उसे कोई मूत्राशय या न्यूरोलॉजी संबंधी रोग तो नहीं है।  यदि ऐसा कोई रोग ना हो तो कुछ ऐसी दवाएं दी जा सकती हैं जिनसे यह परेशानी कम हो सकती है।  इस प्रकार की दवाएं जब तक खाई जाती हैं तभी तक उनका असर रहता है।  दवा छोड़ने पर दोबारा वही परेशानी शुरू हो सकती है।  लेकिन फिर भी इन दवाओं से यह लाभ होता है कि बच्चे के मन में आत्मविश्वास पैदा होता है।  कुछ विशेष परिस्थितियों में इन दवाओं का प्रयोग कुछ समय के लिए करने  से बच्चे को हंसी का पात्र बनने से बचाया जा सकता है-  जैसे कहीं घूमने के लिए बाहर जाना हो या  घर में कोई खास मेहमान आने वाला हो तो।

डॉ. शरद अग्रवाल एम डी

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