पुरुषों में मूत्राशय (urinary bladder) के नीचे प्रोस्टेट ग्लैंड नामक एक ग्रंथि होती है. मूत्र नली
(urethra ) का आरंभिक भाग इस में से होकर निकलता है. प्रोस्टेट ग्लैंड में एक विशेष प्रकार का तरल पदार्थ (prostatic fluid) बनता है जोकि वीर्य में मिल जाता है.
40 – 45 वर्ष की आयु के बाद प्रोस्टेट का आकार बढ़ने लगता है. आकार बढ़ने पर यह अपने भीतर से हो कर जाने वाली मूत्र नली पर दबाव डालती है. इससे मूत्र सम्बन्धी निम्न परेशानियां हो सकती हैं –
- बार बार पेशाब आना. रात में कई बार पेशाब के लिए उठना.
- जोर से पेशाब लगना पर रुक रुक कर पेशाब आना.
- जल्दी टायलेट न जा पाने पर थोड़ी पेशाब निकल जाना.
- पेशाब का बिलकुल रुक जाना.
- पेशाब में रूकावट के कारण बार इन्फैक्शन होना या गुर्दों में सूजन (हाइड्रोनेफ्रोसिस) होना.
आयु बढ़ने के साथ अधिकतर पुरुषों में प्रोस्टेट की परेशानी हो सकती है. जिन लोगों में इस प्रकार के लक्षण पाए जाते हैं उन का अल्ट्रा साउन्ड करा के देखा जाता है. अल्ट्रा साउन्ड से मालूम होता है कि प्रोस्टेट का आकार कितना है व उस में कैंसर की संभावना तो नहीं है. मूत्राशय या गुर्दों में कोई अन्य खराबी हो तो वह भी मालूम हो जाती है. अल्ट्रा साउन्ड में प्रोस्टेट बढ़ी हुई आने पर एक खून की जांच (serum PSA) कराते हैं. यदि यह बढ़ा हुआ हो तो कैंसर की संभावना होती है. कैंसर के बिना प्रोस्टेट बढ़ी हुई होने (benign prostatic hyperplasia, BPH) की दशा में अधिकांश मरीजों में दवाओं द्वारा इलाज किया जा सकता है. जिन मरीजों में पेशाब बिलकुल रुक जाता है, पेशाब में खून आता है, बार बार इन्फैक्शन होते हैं या मूत्राशय में पथरी होती है, उन में आपरेशन द्वारा प्रोस्टेट को निकालना पड़ता है. आजकल अधिकतर आपरेशन दूरबीन बिधि द्वारा किये जाते हैं. जिन मरीजों में कैंसर की संभावना होती है उन में बायोप्सी इत्यादि जांचे कर के उस को पक्का करते हैं व स्टेज के अनुसार उस का इलाज करते हैं. जिन मरीजों में है कैंसर की संभाबना नहीं होती और पेशाब जल्दी जल्दी आने की शिकायत होती है उन को आम तौर पर दवाओं से ही लाभ हो जाता है. इन में से कुछ दवाएं बढ़ी हुई प्रोस्टेट का साइज भी कम करती हैं. दवाओं को लम्बे समय तक लेना होता है. कुछ दवाएं प्रोस्टेट की परेशानी को कम करने के साथ ब्लड प्रेशर को कम करती हैं. जिन लोगों को प्रोस्टेट के साथ ब्लड प्रेशर की बीमारी भी हो उन में यह दवाएं प्रयोग की जा सकती हैं.
डा. शरद अग्रवाल एम डी