डेंगू बुखार एक विशेष प्रकार का वायरल बुखार है जो कि दुनिया के अधिकतर देशों में पाया जाता है और प्रतिवर्ष लगभग दस करोड़ से अधिक लोग इससे प्रभावित होते हैं. हमारे देश में इस का प्रकोप हर वर्ष विशेष रूप से अगस्त से नवंबर तक देखने को मिलता है. जैसा कि सभी लोग जानते हैं यह बुखार एक विशेष वायरस द्वारा होता है जो कि एडीज मच्छर के काटने से फैलता है. एडीज मच्छर घरों के आसपास रहता है व साफ पानी में ब्रीड करता है. क्योंकि अभी डेंगू बुखार की कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है इसलिए डेंगू से बचने का एकमात्र उपाय मच्छरों पर नियंत्रण करना ही है.
मच्छरों पर नियंत्रण के लिए बरसात के मौसम में कूलरों में से पानी निकाल कर उन्हें सुखा देना चाहिए, छतों और पिछवाड़ों में फालतू पड़े बर्तनों, गमलों, डिब्बों इत्यादि में से पानी निकाल देना चाहिए, पानी के टैंकों को ठीक से ढकना चाहिए, गुलदस्तों इत्यादि में सप्ताह में दो बार पानी बदलना चाहिए, जो टॉयलेट रोज काम ना आते हो उन्हें भी रोज फ्लश करना चाहिए और ढक देना चाहिए.
मच्छरों के काटने से बचने के लिए घरों में जाली के दरवाजे लगवाने चाहिए. ओडोमॉस, गुड नाईट, व घरेलू कीटनाशक स्प्रे का प्रयोग कर सकते हैं. सरकारी कीटनाशक स्प्रे व फौगिंग से इस मच्छर पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता. इसके लिए आवश्यक है कि नागरिक स्वयं ही जागरुक होकर अपने-अपने घरों से इस मच्छर का सफाया करें. बुखार के फैलने के बाद उस पर नियंत्रण करना बहुत कठिन होता है. इसके लिए अगस्त महीने के शुरू से ही मच्छरों पर नियंत्रण के प्रयास किए जाने चाहिए.
डेंगू के मौसम में यदि किसी को तेज शरीर दर्द, सिर दर्द, बेचैनी व मुंह में कड़वाहट के साथ बुखार हो तो डेंगू की संभावना को ध्यान में रखकर हल्की दवाएं विशेषकर पेरासिटामोल हर 4 से 6 घंटे पर लेना चाहिए. एस्प्रिन व अन्य तेज दर्द निवारक दवाएं नहीं लेना चाहिए क्योंकि इनसे रक्तस्राव (bleeding) होने की संभावना बढ़ जाती है. डेंगू बुखार में भी अक्सर ठंड लगती है इसलिए हर बुखार में बिना जांच कराए अनावश्यक रूप से मलेरिया की दवाएं एवं तेज एंटीबायोटिक नहीं खानी चाहिए. डेंगू बुखार में यदि कहीं से भी रक्तस्राव हो, ब्लड प्रेशर कम हो, अत्यधिक उल्टियां व बेचैनी हो, या रक्त में प्लेटलेट कम हों तो तुरंत अस्पताल में भर्ती होकर उपचार कराना चाहिए. शीघ्र उपचार से इसके खतरे को बहुत कम किया जा सकता है. छोटे बच्चों, महिलाओं एवं अधिक वजन वाले लोगों में कॉन्प्लिकेशन की संभावना अधिक होती है. कुपोषण के शिकार लोगों में डेंगू के कॉन्प्लिकेशन कम होते हैं.
डेंगू से डरने की बजाय निम्न बातों पर ध्यान दें : डेंगू एक प्रकार का वायरल फीवर है जोकि चार-पांच दिन का समय लेकर अपने आप ही उतरता है. बुखार उतरने के समय हाथ पैरों व शरीर पर लाल चकत्ते हो सकते हैं जिनमें खुजली भी हो सकती है. इसी समय रक्त में प्लेटलेट कम होने की संभावना होती है जिससे खाल, नाक, मसूड़े, पेशाब, लैटरीन या उलटी में खून आने का खतरा होता है. अधिकतर मरीजों में लिवर व पित्त की थैली पर सूजन व खून की जांच में एसजीपीटी नामक एंजाइम बढ़ा हुआ मिलता है. कुछ मरीजों में पेट में पानी व फेफड़ों में पानी की शिकायत भी हो सकती है. किसी किसी मरीज में इस समय पर ब्लड प्रेशर बहुत कम हो कर डेंगू शॉक सिंड्रोम नाम की खतरनाक अवस्था पैदा हो सकती है पर ऐसा बहुत कम होता है.
डेंगू के मौसम में यदि ये सारे लक्षण किसी मरीज में मिलते हैं तो डेंगू की डायग्नोसिस लगभग निश्चित होती है. बुखार की शुरुआत में डेंगू की डायग्नोसिस में एन एस वन एंटीजन (NS1 antigen) टेस्ट से सहायता मिल सकती है. छह-सात दिन बाद डेंगू आईजीएम एंटीबॉडी (IgM antibody) पॉजिटिव आने लगती है.
स्वस्थ व्यक्ति में रक्त में प्लेटलेट की संख्या डेढ़ से चार लाख तक होती है. डेंगू में बुखार उतरने के समय प्लेटलेट्स को नष्ट करने वाली एंटीबॉडीज बन जाती हैं जोकि प्लेटलेट को कम कर देती हैं. बुखार के आरंभ में प्लेटलेट की जांच कराने से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि उस समय प्लेटलेट थोड़ी सी ही कम होती हैं. इसकी जांच बुखार उतरने के टाइम पर ही करानी चाहिए. सामान्यतः प्लेटलेट्स बीस हजार प्रति मिलीलीटर से कम होने पर ही चढ़ाने की आवश्यकता होती है. यदि प्लेटलेट्स डेढ़ लाख से कम पर बीस हजार से अधिक हों तो सुबह शाम जांच कराकर देखते रहना चाहिए. यदि किसी मरीज को कहीं से खून आ रहा हो तो बीस हजार से अधिक पर भी प्लेटलेट चढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है. सामान्यतः तीन-चार दिन में ही प्लेटलेट स्वयं ही बढ़कर 20 हजार से ऊपर आ जाती है.
प्लेटलेट्स को बढ़ाने के लिए बेटनेसोल, सोल्यू मेड्रॉल आदि स्टेरॉयड दवाएं एवं कुछ अत्यधिक महंगे व अनावश्यक इंजेक्शंस का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे नुकसान हो सकता है. प्लेटलेट चढ़ाने का उद्देश्य भी उनकी संख्या को नॉर्मल डेढ़ लाख तक पहुंचाना नहीं बल्कि रक्त स्राव के खतरे को कम करना है जोकि प्लेटलेट के 25 से 30 हजार पहुंचने से ही कम हो जाता है. यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि अनावश्यक प्लेटलेट्स चढ़ाने से भी मरीज को नुकसान पहुंच सकता है क्योंकि इसके साथ कुछ टॉक्सिंस (toxins) व इंफेक्शन (infections) मरीज के शरीर में पहुंच सकते हैं. इसके अतिरिक्त अनावश्यक प्रयोग के कारण डेंगू के मौसम में सभी ब्लड बैंकों में प्लेटलेट्स की शॉर्टेज हो जाती है जिससे वास्तविक आवश्यकता वाले मरीजों को प्लेटलेट नहीं मिल पातीं.
जब प्लेटलेट कम होना शुरू होती हैं तो फौरन प्लेटलेट्स नहीं चढ़ानी चाहिए क्योंकि उस समय जितनी भी प्लेटलेट चढ़ाएं सब नष्ट हो जानी हैं. प्लेटलेट्स की असली आवश्यकता दो-तीन दिन बाद होती है जब प्लेटलेट 20 से 30 हजार के आसपास पहुंचती हैं. यदि सारे खून देने वाले रिश्तेदार शुरू में ही खून दे चुके होते हैं तो असली जरूरत के समय खून देने वाले ही नहीं मिलते.
प्लेटलेट बढ़ाने के लिए पपीते के पत्ते का रस, बकरी का दूध, कीवी फल, नारियल पानी एवं गिलोय आदि से कोई लाभ नहीं होता. इस प्रकार के अंधविश्वास समाज में जाने कहां से पैदा होते हैं और बड़ी तेजी से फैलते हैं. कुछ अवसरवादी कंपनियों ने भी अंधविश्वास का फायदा उठाने के लिए पपीते के पत्ते और गिलोय के रस के सिरप व गोलियां बनानी शुरू कर दी हैं. बहुत दुःख का विषय है कि अत्यंत सस्ते में बनने वाले इन अनावश्यक प्रोडक्ट्स को ये कम्पनियाँ बहुत महंगा बेच कर लोगों को लूट रही हैं.इन सब घटिया प्रोडक्ट से कोई लाभ होना तो बहुत दूर की बात नुकसान होने की बहुत अधिक संभावना है. डेंगू में दर्द व बुखार कम करने के लिए केवल पेरासिटामोल का प्रयोग करना चाहिए, पानी अधिक पीना चाहिए, तेज दर्द निवारक दवाएं व अनावश्यक एंटीबायोटिक्स नहीं लेना चाहिए. एसिडिटी की दवाएं, उल्टी रोकने की दवाएं एवं नमक चीनी का घोल या ओआरएस लेने से लाभ होता है.
हृदय रोग व फालिज़ के बहुत से मरीज एस्प्रिन या क्लोपिडोग्रिल नाम की दवाएं ले रहे होते हैं. इसी प्रकार ब्लड प्रेशर के मरीज थायज़ाइड दवा ले रहे होते हैं. डेंगू होने पर ये दवाएं बंद कर देनी चाहिए क्योंकि ये प्लेटलेट्स को कम कर सकती हैं. ब्लड प्रेशर की अन्य दवाएं भी ब्लड प्रेशर देखकर उसके अनुसार ही लेनी चाहिए क्योंकि डेंगू में ब्लड प्रेशर कम होने की संभावना होती है. डेंगू में अनावश्यक एंटीबायोटिक नहीं लेनी चाहिए क्योंकि कुछ एंटीबायोटिक्स भी प्लेटलेट्स को कम कर सकती हैं. (अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – प्लेटलेट्स )
डेंगू के मौसम में मलेरिया का प्रकोप भी अधिक होता है मलेरिया में भी ठंड लगकर बुखार आता है और प्लेटलेट कम हो सकती हैं इसलिए कई बार मलेरिया व डेंगू में अंतर करना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा कुछ सामान्य इन्फेक्शन जैसे टॉन्सिलाइटिस, निमोनिया, टाइफाइड, गुर्दे का इंफेक्शन आदि भी इस मौसम में अधिक होते हैं. कुछ अनकॉमन इंफेक्शन जैसे लैप्टोस्पाईरोसिस, टाइफस, ब्रुसेलोसिस आदि में भी डेंगू जैसे लक्षण हो सकते हैं, इसलिए बुखार का इलाज योग्य चिकित्सकों से ही कराना चाहिए.
डेंगू के मौसम में अधिकतर स्थानों पर भय व अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो जाता है इससे बचने का प्रयास किया जाना चाहिए. यदि उचित इलाज हो तो डेंगू में खतरा 1% से भी कम होता है. डेंगू के अधिकतर मरीजों का इलाज घर पर रह कर ही किया जा सकता है. यदि जी मिचलाने व उल्टियों के कारण शरीर में पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पहुंच पा रहा हो या प्लेटलेट कम होने से रक्त स्राव का खतरा हो तो अस्पताल में भर्ती करके इलाज करवाना चाहिए. डेंगू में केवल सपोर्टिव ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है जो कि बहुत महंगा नहीं होता. मेडिकल एसोसिएशन व सरकार को चाहिए कि इसके इलाज के लिए गाइड लाइंस जारी करें जिससे जनता कुछ अस्पतालों में किए जा रहे अनावश्यक महंगे इलाज व फालतू प्लेटलेट चढ़ाने से बच सके. डेंगू से बचाव के लिए एडीज़ मच्छरों पर नियंत्रण करना आवश्यक है. एडीज़ मच्छरों पर नियंत्रण से चिकनगुनिया नामक बीमारी के खतरे को भी कम किया जा सकता है. इस बीमारी में बुखार के साथ जोड़ों में भयानक दर्द होता है. यह बीमारी अब बहुत तेजी से हमारे क्षेत्र में पांव पसार रही है. एक और वायरल इंफेक्शन जीका वायरस भी एडीज़ मच्छरों से फैलता है. इसके भी हमारे देश में फैलने का बहुत खतरा है.
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी