Brain & Nervous System

फालिज़ (पैरालिसिस, Paralysis )

फालिज़ (पैरालिसिस, Paralysis )

हम सभी जानते हैं कि पैरालिसिस अर्थात फालिज़ का अर्थ है शरीर के किसी हिस्से पर कमजोरी आ जाना। आम तौर पर एक ओर के हाथ व पैर में कमजोरी आती है. यह कमजोरी थोड़ी सी भी हो सकती है या हाथ और पैर पूरी तरह काम करना बंद भी कर सकते हैं। कुछ लोगों में इसके साथ बोलने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है।

फालिज़ के कारण :

सेरिब्रल थ्रोम्बोसिस : फालिज़ का सबसे कॉमन कारण होता है दिमाग (मस्तिष्क, brain) में रक्त ले जाने वाली धमनियों (arteries, नाड़ियों) में खून का जम जाना। कभी-कभी कुछ देर के लिए आधे चेहरे पर, एक हाथ या पैर में, या बोली में कमजोरी महसूस होती है और फिर वह ठीक हो जाती है। इसको चिकित्सा की भाषा में Transient Ischemic Attack कहते हैं। एक प्रकार से यह फालिज़ के खतरे का सिग्नल होता है। इस प्रकार के मरीजों में कुछ समय बाद फालिज़ होने की काफ़ी संभावना होती है। कभी-कभी कुछ मरीजों को हाथ व पैर में फालिज़ नहीं होती केवल बोलने में फर्क आ सकता है। कुछ लोगों को केवल सोचने समझने की क्षमता और याददाश्त पर असर हो सकता है।

हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर की सारी क्रियाओं को कंट्रोल करता है। इसके लिए मस्तिष्क में अलग-अलग केंद्र बने होते
हैं। हरेक केंद्र को अलग-अलग धमनी (artery) ब्लड सप्लाई करती है। आयु बढ़ने के साथ-साथ शरीर की सभी
धमनियों में चर्बी (कोलेस्ट्रॉल)  के जमा होने से उनके संकरा होने का खतरा बढ़ जाता है। संकरी हो चुकी धमनी में यदि खून
जम जाए तो वह एकदम से बंद हो जाती है और जिस हिस्से को वह सप्लाई करती थी उसको खून मिलना बंद हो जाता है। यदि कुछ ही समय के अंदर ब्लड सप्लाई दोबारा चालू ना हो तो उस हिस्से की कोशिकाएं मृत हो जाती हैं। जो कोशिकाएं मृत हो जाती हैं वे दोबारा लौटकर नहीं आ सकतीं। उन कोशिकाओं के चारों ओर कुछ कोशिकाएं ऐसी होती हैं जो ब्लड सप्लाई कम होने के कारण कुछ समय के लिए काम करना बंद कर देती हैं पर बाद में धीरे-धीरे काम करना शुरू कर सकती हैं।

कभी कभी कभी ऐसा भी होता है कि खून जमने से कुछ कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं पर यदि जमा हुआ खून अपने आप घुल जाए या दवाओं द्वारा घोल दिया जाए तो वही कोशिकाएं दोबारा काम करना शुरु कर देती हैं। इसके अलावा मस्तिष्क के सभी हिस्सों में आपसी कनेक्शंस भी होते हैं जिनके द्वारा यदि एक हिस्से में फालिज़ का असर होता है तो दूसरे हिस्से उसको सपोर्ट कर सकते हैं।

ब्रेन हेमरेज :  जिन लोगों का ब्लड प्रेशर हाई रहता है उनकी दिमाग की धमनियों की दीवारें कमजोर हो जाती हैं और उनके फटने से उनमें से रक्तस्राव हो सकता है। धमनी से निकला हुआ रक्त एक बड़ा सा थक्का बना लेता है जोकि अपने चारों ओर की कोशिकाओं पर दबाव डालता है। इस दवाब के कारण बहुत सी कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं और फालिज़ का असर हो जाता है। यदि खून का थक्का अधिक बड़ा हो तो दबाव के कारण सांस लेने और हृदय की धड़कन को कंट्रोल करने वाले दिमाग के सेंटर काम करना बंद कर सकते हैं और मरीज की मृत्यु हो सकती है। जो थक्के  इतने बड़े नहीं होते उनका रक्त नेचुरल प्रोसेस द्वारा धीरे-धीरे एब्ज़ोर्ब होने लगता है और बहुत सी कोशिकाएं दोबारा काम करने लगती हैं व फालिस का असर काफी कम हो जाता है।

इन दोनों मुख्य कारणों के अतिरिक्त फालिज़ के और भी बहुत से कारण होते हैं जैसे कहीं और बने हुए थक्के का दिमाग में पहुंचना (embolism), दिमाग में ट्यूमर, इन्फेक्शन, चोट लगने से दिमाग में रक्तस्राव होना आदि।

फालिज़ का इलाज : फालिज़ का अटैक होने पर सबसे पहले आवश्यक होता है सीटी स्कैन करा कर यह तय करना कि किस कारण से फालिज़ हुई है क्योंकि हरेक का इलाज एकदम अलग है। यदि रक्त स्राव होने से फालिज़  का असर हुआ है और मरीज का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है तो ब्लड प्रेशर कम करने की दवा देते हैं एवं दिमाग में सूजन कम करने  की दवा देते हैं। यदि मरीज बेहोश है तो उसे ग्लूकोस की बोतल आदि लगाते हैं। यदि धमनी के अंदर खून जमने से फालिज़ का असर हुआ है तो खून जमने से रोकने वाली दवाई देते हैं। ऐसे में यदि मरीज का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है तो उसे फौरन कम नहीं करते हैं। यदि फालिस का मरीज अटैक शुरू होने के 3 घंटे के अंदर  विशेषज्ञ  न्यूरोलॉजिस्ट  के पास पहुंच जाता है तो उसे इस प्रकार के इंजेक्शन दिये जा सकते हैं जिनसे जमा हुआ खून घुल जाए और मस्तिष्क की कोशिकाएं  दोबारा काम करना शुरु कर दें। रक्त जमने से होने वाली फालिज़ के मरीजों को जीवन भर रक्त जमना रोकने वाली दवाएं खानी होती हैं (बोलचाल की भाषा में इन्हें खून पतला करने वाली दवाएं कहते हैं)। यदि मरीज को हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या कोलेस्ट्रॉल बढ़ा होने की शिकायत है तो उसकी दवाएं भी हमेशा खानी होती हैं। किसी अन्य कारण से फालिज़ हो तो उसका इलाज कारण के अनुसार किया जाता है।

ऊपर लिखे वर्णन से हम सभी को इतना तो समझ आ ही गया होगा कि किस मरीज़ में फालिज़ का अटैक कितना तगड़ा होगा एवं इलाज करने से उसमें कितना फायदा होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। यदि हम कोई इलाज ना करें तो भी बहुत से मरीज अपने आप ठीक हो सकते हैं और बहुत से मरीजों में हो सकता है कि इलाज करने के बाद भी कोई फायदा ना हो। कुछ लोगों को शुरुआती फालिज़ के बाद फिजियोथेरेपी करने पर अच्छा खासा फायदा हो जाता है और कुछ में बहुत कम फायदा होता है। यह केवल चांस की बात होती है की छोटी धमनी में खून जमे जिससे कि मस्तिष्क का छोटा हिस्सा ही काम करना बंद करे और हलकी फालिज़ हो, या फिर बड़ी धमनी में खून जमे और फालिज़ का तगड़ा और जानलेवा अटैक पड़े। यह भी कहना संभव नहीं होता कि किस मरीज में जमा हुआ खून फिर से घुल जाएगा और मस्तिष्क की कोशिकाएं फिर से काम करने लगेंगी।

फालिज़ के इलाज को लेकर हमारे समाज में  बहुत से भ्रम पाए जाते हैं। बहुत से लोग फालिज़ द्वारा कमजोर हुए हाथ और पैर पर तरह तरह के तेल या कबूतर के खून की मालिश करते हैं। इससे कोई फायदा नहीं होता है। इसको हम सरल भाषा में इस प्रकार समझ सकते हैं  कि यदि हमारे स्विच बोर्ड में  कुछ खराबी आ जाए तो हमारे पंखे और ट्यूब लाइट जलना बंद हो जाएंगे। अब यदि हम पंखे और ट्यूबलाइट में तेल लगाते रहे तो वे ठीक नहीं हो सकते। वे तभी ठीक होंगे जब हम स्विच बोर्ड की खराबी को ठीक करेंगे। बहुत से लोग फालिज़ ठीक करने के लिए देसी दवाइयां भी खाते हैं। ये सब दवाएं शरीर के विभिन्न हिस्सों को बहुत हानि पहुंचा सकती हैं। जिन मरीजों को अपने आप फायदा होता है उनको यह भ्रम होता है कि उन्हें इन देसी दवाइयों या मालिश से फायदा हुआ है। लेकिन इन चक्करों में पड़ कर मरीजों का एक बहुत बड़ा वर्ग जिसको सही समय पर सही इलाज मिलने से फायदा हो सकता था वह सही इलाज से वंचित हो जाता है और बहुत नुकसान उठाता है।

फालिज़ के इलाज में व्यायाम (फिजियोथिरेपी) का बहुत महत्व है। शरीर के जिस हिस्से में फालिज़ हुई हो उसके प्रत्येक जोड़ का पूरी रेंज में मूवमेंट कराना चाहिए। फालिज़ वाले हिस्से की मांसपेशियां जितना मूवमेंट खुद कर पाएँ उतना करने की पूरी कोशिश करना चाहिए। बाकी मूवमेंट दूसरे हाथ से पकड़ कर स्वयं मरीज़ को करना चाहिए अथवा दूसरे लोगों को उसमें सहायता करना चाहिए। बहुत सी मांसपेशियां ऐसी होती हैं जो फालिज़ के अटैक के आरम्भ में काम करना बंद कर देती हैं परन्तु कुछ हफ्ते बाद काम करने लगती हैं। इस दौरान यदि आवश्यक व्यायाम न किया जाए तो हाथ व पैर के जोड़ अकड़ जाते हैं और उनमें मूवमेंट नहीं आ पाता है।

फालिज़ से बचने के लिए हम को उन सभी चीज़ों से बचना चाहिए जोकि एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में चर्बी जमने) को बढ़ावा देते हैं जैसे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, कोलेस्ट्रोल का बढ़ा हुआ होना व तंबाकू का सेवन आदि। जो लोग बिल्कुल व्यायाम नहीं करते हैं उनको भी पैरालिसिस की संभावना अधिक होती है इसलिए हम सभी को नियमित व्यायाम अवश्य करना चाहिए। इन सभी रिस्क फैक्टर्स को कंट्रोल करने से फालिज़ के अतिरिक्त हार्ट अटैक एवं पैरों की गैंग्रीन (gangrene) का खतरा भी कम हो जाता है।

डॉ. शरद अग्रवाल एम डी

 

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