हमारे रक्त में मुख्यत: तीन प्रकार के कण (कोशिकाएं,cells) होते हैं – लाल रक्त कण (red blood cells, RBC), सफेद रक्त कण (white blood cells, WBC) एवं प्लेटलेट्स (platelets).
लाल रक्त कण (RBC) का कार्य होता है फेफड़ों से ऑक्सीजन को लेकर शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाना, सफेद रक्त कण (WBC) हमारे शरीर के रोग प्रतिरोध तंत्र का हिस्सा होते हैं और प्लेटलेट्स का काम है कहीं चोट लगने पर खून को बहने से रोकना और रक्त का थक्का जमने में सहायता करना. यह तीनों प्रकार की कोशिकाएं बोन मैरो (रक्त मज्जा, bone marrow) में बनती हैं. रक्त में कुछ समय पूरा करने के पश्चात पुरानी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और नई कोशिकाएं उनका स्थान ले लेती हैं.
नई बनी हुई प्लेटलेट लगभग दस दिन तक रक्त में रहती हैं. कभी-कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में प्लेटलेट्स के खिलाफ एंटीबॉडीज बन जाती हैं जो कि उन्हें समय से पहले नष्ट कर देती हैं. सामान्यत: हमारे रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या डेढ़ लाख से चार लाख प्रति मिलीलीटर होती है. यदि किसी के रक्त में 50 हजार से डेढ़ लाख के बीच प्लेटलेट हों तब भी उसे कोई खतरा नहीं होता। 50 हजार प्रति मिलीलीटर से कम प्लेटलेट होने पर इस बात का खतरा होता है कि सर्जरी करने पर या अपने आप चोट लगने पर खून का थक्का ठीक से ना जमे और चोट की जगह से रक्त स्राव होता रहे. यदि प्लेटलेट्स 10 हजार प्रति मिलीलीटर से कम हो जाएं तो शरीर में किसी स्थान से अपने आप रक्त स्राव होने का खतरा होता है. यह रक्तस्राव त्वचा के अंदर हो सकता है (जिससे उसमें लाल चकत्ते दिखाई देते हैं), आमाशय या आंतों में पहले से बने अल्सर में रक्तस्राव हो सकता है, महिलाओं में माहवारी अत्यधिक हो सकती है, अथवा चोट लगने, सर्जरी करने या दांत उखाड़ने पर लंबे समय तक खून वह सकता है.
रक्त में प्लेटलेट कम होने के दो मुख्य कारण हैं – प्लेटलेट्स का कम बनना या प्लेटलेट्स का जल्दी नष्ट होना. यदि किसी कारण से बोनमैरो ठीक से काम न कर रही हो तो रक्त के कोई भी कण बनना कम हो सकते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि आयरन की कमी हो तो केवल लाल रक्त कण बनना कम होते हैं. यदि विटामिन बी12 एवं फोलिक एसिड की कमी हो तो तीनों प्रकार के कण बनना कम हो जाते हैं। आयरन व विटामिन्स की कमी पूरी करने से ये कण फिर से बनने लगते हैं. बोनमैरो की अपनी कुछ बीमारियों एवं कुछ प्रकार के कैंसर में भी बोन मैरो ठीक से काम नहीं करती है. तब भी सभी कणों का बनना कम हो जाता है. उस बीमारी का इलाज करने से सभी कणों की संख्या बढ़ जाती है.
प्लेटलेट्स कम होने का दूसरा मुख्य कारण है प्लेटलेट्स का जल्दी नष्ट होना. कुछ दवाएं प्लेटलेट्स को जल्दी नष्ट करती हैं या प्लेटलेट द्वारा थक्का बनने की प्रक्रिया में बाधा डालती हैं. कैंसर की लगभग सभी दवाएं बोन मैरो पर विपरीत प्रभाव डालती हैं.जो दवाएं विशेषकर प्लेटलेट्स की संख्या को कम कर सकती हैं उन में से कुछ कॉमन दवाएं हैं – एस्पिरिन व क्लोपिडोग्रेल, अधिकतर दर्द निवारक दवाएं, कुछ एंटीबायोटिक दवाएं (Ampicillin, Penicillin, Ciprofloxacin, Sulfa drugs, ceftriaxone, Piperacillin, Vancomycin), मिरगी की दवाएं (Phenytoin, Carbamazepine), मानसिक परेशानियों की दवाएं (Diazepam, Lorazepam, Mirtazipine), ब्लड प्रेशर की दवाएं (Amlodepine, Frusemide), मलेरिया की दवा Quinine व एसिडिटी की दवा Ranitidine आदि.
बहुत से इन्फेक्शंस में प्लेटलेट कुछ समय के लिए कम हो जाती हैं – जैसे डेंगू फीवर, मलेरिया, चिकनगुनिया, लेप्टोस्पाइरोसिस आदि. इनमें सबसे अधिक कमी डेंगू फीवर में होती है. मलेरिया में भी प्लेटलेट्स काफी कम हो सकती हैं लेकिन मलेरिया में प्लेटलेट्स कम होने से रक्तस्राव (bleeding) नहीं होता. डेंगू फीवर के चौथे पांचवें दिन जब बुखार उतरने का समय आता है तब रक्त में प्लेटलेट कम होने लगती हैं तथा 3 – 4 दिन तक लगातार प्लेटलेट कम होती हैं, उसके बाद अपने आप ही इन की संख्या बढ़ने लगती है और चार-पांच दिन में नॉर्मल तक पहुंच जाती है. यदि किसी मरीज में प्लेटलेट्स 10 हजार से कम हो जाएं तो रक्तस्राव का खतरा होता है जिस से बचने के लिए प्लेटलेट चढ़ाई जाती हैं.
अपने देश में अधिकतर लोगों को अंधविश्वास है की पपीते के पत्तों का रस, कीवी फल, बकरी का दूध, नारियल पानी और गिलोय प्लेटलेट को बढ़ाने में सहायता करते हैं. इसी प्रकार के अंध विश्वास अन्य पिछड़े देशों में भी अलग अलग चीज़ों को लेकर पाए जाते हैं. यह सब बिल्कुल गलत है. इन चीजों से एक परसेंट भी कोई फायदा नहीं है बल्कि नुकसान होने की संभावना होती है. सच यह है कि प्लेटलेट अपने आप बढ़ते हैं. इस बीच में मरीज जिस चीज़ का सेवन करता है उसको यह भ्रम होता है कि उस की वजह से प्लेटलेट्स बढ़ गए.
Idiopathic Thrombocytoprnic Purpura (ITP) नाम की एक बीमारी में प्लेटलेट्स के खिलाफ एंटीबॉडीज़ बन जाती हैं. इस बीमारी के इलाज में लंबे समय तक स्टीरॉयड दवाएं खानी होती हैं या तिल्ली को निकाल देना होता है. HIV इन्फेक्शन (AIDS, एड्स) एवं हेपेटाइटिस सी में भी प्लेटलेट्स के विरुद्ध इसी प्रकार की एंटीबॉडीज बन सकती हैं.
बहुत से स्वस्थ लोगों के रक्त में बिना किसी कारण के प्लेटलेट्स कुछ कम होती है. इससे उन्हें कोई हानि नहीं होती लेकिन वे इसके कारण अनावश्यक रुप से बहुत चिंतित रहते हैं. यदि प्लेटलेट्स की संख्या 50 हजार से ऊपर है तो इसके लिए चिंता नहीं करनी चाहिए. यदि ऐसा मरीज कोई इस प्रकार की दवा खा रहा हो जो प्लेटलेट्स को कम कर सकती है तो उसके बदले में कोई दूसरी दवा इस्तेमाल की जा सकती है.
डॉ. शरद अग्रवाल एम. डी.