हमारे गले में सामने की ओर सांस नली के ऊपर थायराइड नाम की ग्रंथि (ग्लैंड) स्थित होती है। इसमें थायरोक्सिन हार्मोन T3 व T4 बनते हैं। यह हार्मोन शरीर के मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करते हैं। मेटाबॉलिज्म उन प्रक्रियाओं को कहते हैं जिनसे शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होती है व कोशिकाओं की सामान्य क्रियाओं और विकास को बढ़ावा मिलता है। थायरोक्सिन हार्मोन की कमी से शरीर की सभी क्रियाएं सुस्त हो जाती हैं। इस स्थिति को हाइपोथायराइडिज्म (hypothyroidism) कहते हैं। थायरोक्सिन की अधिकता से मेटाबोलिक क्रियाएं आवश्यकता से अधिक तेज हो जाने से हानि होने लगती है। इस अवस्था को हाइपरथायराइडिज्म (hyperthyroidism) कहते हैं।
थायरोक्सिन की अधिकता के लक्षण
- ह्रदय गति तेज हो जाती है, धड़कन होने लगती है, हृदय रोगियों को एंजाइना व सांस फूलने की शिकायत हो सकती है।
- घबराहट होती है व हाथ पैरों में कंपन होने लगता है।
- हथेलियों और तलवों में पसीना अधिक आता है।
- भूख अधिक लगती है, खुराक बढ़ जाती है पर वजन कम होने लगता है।
- दस्त हो सकते हैं।
- थायराइड ग्लैंड बढ़ी हुई दिख सकती है(goiter)।
- आंखें उभरी हुई हो सकती हैं।
- गर्मी सहन नहीं होती सर्दी कम लगती है।
- ह्रदय रोगियों को हार्ट फेलियर व धड़कन अत्यधिक बढ़ने से atrial fibrillation की शिकायत हो सकती है।
- महिलाओं में मासिक धर्म कम होने और अनियमित होने की शिकायत हो सकती है।
थायरोक्सिन की कमी के लक्षण
- शरीर सुस्त हो जाता है और भारी लगने लगता है। दिमाग की क्षमता कम हो जाती है।
- हृदय गति धीमी हो जाती है।
- आवाज भारी होने लगती है, खाल खुश्क हो जाती है।
- कब्ज हो जाती है।
- शरीर में सूजन आ जाती है व वजन बढ़ने लगता है।
- ठंड अधिक लगती है, गर्मी कम लगती है।
- महिलाओं में मासिक धर्म अधिक होने तथा मासिक के समय दर्द होने की शिकायत हो सकती है।
- कुछ लोगों को मांसपेशियों में क्रैम्प्स (cramps, बायोटा आना) की शिकायत हो सकती है.
थायरोक्सिन हार्मोन का नियंत्रण
मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी नाम की ग्रंथि थायराइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (T S H) नामक एक हार्मोन का स्राव करती है। यह हार्मोन थायराइड ग्लैंड को थायरोक्सिन बनाने के लिए प्रेरित करता है। यदि थायराइड ग्लैंड कम काम करती है तो रक्त में T3 व T4 हारमोंस की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे में थायराइड ग्लैंड को प्रेरित करने के लिए पिट्यूटरी ग्लैंड अधिक TSH बनाती है। इसके विपरीत थायराइड ग्लैंड के अधिक काम करने पर रक्त में T3 व T4 हारमोंस की मात्रा बढ़ जाती है इसलिए TSH कम हो जाता है। रक्त में T3 व T4 व T S H की जांच करके थायराइड ग्लैंड की स्थिति का काफी कुछ पता लगाया जा सकता है। जब भी कभी थायराइड हार्मोन की डोज़ को घटाते या बढ़ाते हैं तो रक्त में केवल TSH की जांच कराने से ही काम चल जाता है। डोज़ को बदलने के कम से कम 4 से 6 हफ्ते बाद जांच करानी चाहिए। जो लोग लंबे समय से थायराइड हार्मोन ले रहे हैं उन्हें साल में एक बार TSH टेस्ट करा लेना चाहिए।
हमारे भोजन में आयोडीन नमक तत्व होता है जोकि थायरोक्सिन बनने के लिए आवश्यक है। आयोडीन की कमी से घेंघा रोग हो जाता है जिसमें थायराइड ग्लैंड अत्यधिक बढ़ जाती है। आम जनता को आयोडीन की कमी न हो इसके लिए खाने के नमक में थोड़ा सा आयोडीन मिलाया जाता है।
थायराइड की कमी व अधिकता दोनों ही शरीर को हानि पहुंचाती हैं। बच्चों में विशेषकर थायराइड की कमी अधिक घातक होती है क्योंकि इससे बच्चों का शारीरिक व दिमागी विकास रुक जाता है (cretinism)। जन्म के समय प्रत्येक बच्चे के खून में थायराइड हार्मोन की जांच होनी चाहिए। अन्य मरीजों जिनमें थायराइड की कमी का संदेह होता है उनमें भी हार्मोन की जांच द्वारा इस को पक्का करना होता है।
थायराइड की कमी वाले सभी मरीजों को थायरोक्सिन हार्मोन की गोलियां दी जाती हैं। इसकी डोज़ पहले कम से आरंभ करके धीरे-धीरे बढ़ाई जाती है। फिर लक्षणों और हार्मोन की रिपोर्ट के आधार पर एक डोज़ तय कर दी जाती है जो कि मरीज को हमेशा खानी होती है। एक बार डोज़ तय होने के बाद भी यदि कभी कोई असामान्य लक्षण महसूस हो तो थाइराइड की जाँच करा लेनी चाहिए। यदि कोई परेशानी न हो तब भी साल में एक बार TSH टेस्ट करा लेना चाहिए। बिना डॉक्टर की सलाह के थायराइड हार्मोन कभी छोड़ना नहीं चाहिए। इसकी गोली को दिन में एक बार सुबह खाली पेट पर खाना होता है।
यदि कोई बच्चा पढ़ाई व खेलकूद में सुस्त है, उसकी लंबाई नहीं बढ़ रही है या उसमें किशोरावस्था के लक्षण नहीं आ रहे हैं तो थाइराइड की कमी की सम्भावना को ध्यान में रख कर उसका थायराइड टेस्ट करा लेना चाहिए। जिन लोगों का वजन अधिक है और खाने का परहेज व व्यायाम करने के बाद भी कम नहीं हो रहा है उन्हें भी थायराइड टेस्ट करा लेना चाहिए।
अन्य कोई बीमारी होने पर यदि और कोई दवा खानी पड़े या कोई ऑपरेशन इत्यादि कराना पड़े तो उस बीच में थायराइड की गोली को छोड़ना नहीं चाहिए। गर्भावस्था में थायराइड हार्मोन की डोज़ बढ़ानी पड़ सकती है। गर्भावस्था में इसकी डोज़ निश्चित करने के लिए प्रत्येक 3 महीने में TSH व एक अतिरिक्त टेस्ट freeT4 कराना होता है।
थायराइड की थोड़ी सी कमी बहुत लोगों में पाई जाती है. उनमें से सभी लोगों को तुरंत इलाज की आवश्यकता नहीं होती. यदि TSH, 5 से अधिक पर 10 से कम हो, T3 व T4 ठीक हों और बीमारी के कोई विशेष लक्षण न हो तो थाइरोक्सिन हॉर्मोन तुरंत आरम्भ न कर के एक महीने बाद दोबारा जांच करा के देखते हैं. बहुत से मोटे लोग यह समझते हैं कि यदि उनका TSH थोड़ा सा भी बढ़ा हुआ है तो उनका वजन केवल इसी कारण से बढ़ रहा है. सच यह है कि यदि TSH थोड़ा सा बढ़ा हुआ हो तो वज़न बढ़ाने में उसका योगदान बहुत कम होता है. ऐसे लोगों को खाने पीने के परहेज़ एवं व्यायाम पर पूरा ध्यान देना चाहिए.
थायराइड हॉर्मोन अधिक बनने के बहुत से कारण होते हैं । इसके उपचार के तीन मुख्य तरीके हैं –
- एंटी थायराइड दवाओं द्वारा हार्मोन बनना कम करना
- ऑपरेशन द्वारा थायराइड ग्लैंड के अधिकतर भाग को निकाल देना
- रेडियो एक्टिव आयोडीन द्वारा ग्लैंड के कुछ भाग को नष्ट कर देना
किस मरीज में कौन सी विधि अच्छी रहेगी यह कई फैक्टर्स को ध्यान में रखकर तय किया जाता है।
थायराइड की अधिकता (hyperthyroid) वाले मरीजों में यह पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता कि उन्हें कब तक दवा खानी है। कुछ मरीजों में यह बीमारी सालों तक चलती है, अन्य में कुछ महीने या साल दवा खाने के बाद ठीक भी हो सकती है, कुछ मरीजों में बाद में थायराइड की कमी हो जाती है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए थायराइड की अधिकता वाले मरीजों को समय-समय पर अपने चिकित्सक से परामर्श करते रहना चाहिए।थाइराइड की अधिकता के लिए दी जाने वाली दवाओं (carbimazole, propylthiouracil) को दिन में एक से चार बार खाना खाने के बाद खाना होता है। थायराइड के ऑपरेशन या रेडियो एक्टिव आयोडीन द्वारा इलाज किए जाने के बाद बहुत से मरीजों में कुछ दिनों बाद थायराइड की कमी हो जाती है और उनको जीवन भर थाइरोक्सिन की गोलियां खानी पड़ती हैं.
सामान्यत: हमारी थायराइड ग्लैंड काफी अधिक मात्र में T3 व T4 हॉर्मोन बना कर इकठ्ठा कर के रखती है. इस में से शरीर की आवश्यकता के अनुसार बहुत थोड़ी थोड़ी मात्रा में T3 व T4 हॉर्मोन निकलते हैं. यदि किसी कारण से ग्लैंड में सूजन आ जाए या उसका कुछ भाग डैमेज हो जाए तो हॉर्मोन अधिक मात्रा में निकलने लगते हैं और थायराइड की अधिकता के लक्षण उत्पन्न करते हैं. इस प्रकार के मरीजों को हॉर्मोन बनना कम करने वाली दवाओं, थायराइड के ऑपरेशन व रेडियोएक्टिव आयोडीन से लाभ नहीं होता.
बुजुर्ग लोगों में थायराइड की अधिकता से हृदय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। उनमें इस रोग के लक्षण भी ऊपर लिखे लक्षणों से अलग हो सकते हैं। इसलिए यदि थाइराइडकी बीमारी का थोड़ा सा भी संदेह हो तो उसकी जांच अवश्य करा लेना चाहिए।
थायराइड की कमी वाले मरीजों को वज़न बढाने वाले खाद्य पदार्थों (घी, तेल, मक्खन, चीनी आदि) का प्रयोग कम करना चाहिए. बंद गोभी, ब्रोकली व सोया प्रोडक्ट्स अधिक मात्रा में खाने से थायराइड हॉर्मोन में कमी हो सकती है इसलिए इनका सेवन कम करना चाहिए.
थायराइड की अधिकता वाले मरीजों को अधिक मात्रा में चाय, कॉफ़ी, कोला ड्रिंक्स, तम्बाखू, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए.