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विज्ञान और आयुर्वेद ( Scientific facts about Ayurveda )

आयुर्वेद के विषय में हमारे देश में बहुत सी भ्रांतियां व्याप्त हैं. ऐसा प्रचारित किया जाता है कि इस को देवताओं द्वारा वेदों में लिखा गया है व इसके द्वारा सभी बीमारियों का इलाज संभव है. लोग समझते हैं कि जड़ी बूटियों द्वारा बनी दवाओं से बहुत से चमत्कार संभव हैं. इनसे बीमारियाँ जड़ से ठीक हो जाती है व इन से कोई साइड इफेक्ट नहीं होते. ऐसी ही भ्रांतियां होम्योपैथिक, यूनानी, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर व प्राकृतिक चिकित्सा इत्यादि के विषय में पाई जाती हैं.

सच यह है कि विज्ञान के विकास के पहले सभी चिकित्सा पद्धतियों का विकास तुक्कों के आधार पर हुआ है. पुराने समय में जब लोगों को शरीर की रचना व कार्य प्रणाली (एनाटॉमी और फिजियोलॉजी) का ज्ञान नहीं था तथा रोग के मुख्य कारणों जैसे कीटाणुओं द्वारा इंफेक्शन, हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर इत्यादि के विषय में जानकारी नहीं थी तब वे बीमारी के विषय में भांति भांति के अनुमान लगाते थे. जैसे अप्रैल के महीने में यदि दस्त हो तो नए गेहूं के कारण, छोटे बच्चे को दस्त हो तो दांत निकलने के कारण, जाड़ों में हो तो सर्दी के कारण गर्मी में हो तो लू के कारण इत्यादि इत्यादि. अफ्रीका के लोग समझते थे की दलदल में पाई जाने वाली मार्श गैस से मलेरिया होता है.

इन्हीं के साथ खाने-पीने की चीजों के विषय में भी बहुत से अंधविश्वास पाए जाते रहे हैं – जैसे दूध से बलगम बनता है, चावल और उड़द की दाल बादी होते हैं, अंडा गर्मी करता है, लौकी ठंडी होती है, जूस पीने से और बादाम खाने से ताकत आती है इत्यादि. उस समय यदि कोई व्यक्ति बीमार हुआ तो उस पर लोग तरह-तरह की दवाएं और टोटके आजमाते थे. यदि मरीज ठीक हो गया तो यह मान लिया जाता था कि वह उस इलाज से ठीक हुआ है. यह जानने का कोई साधन नहीं था कि बीमारी किस कारण से हुई थी और मरीज़ किस दवा से ठीक हुआ या अपने आप ही ठीक हो गया.

उस समय अलग-अलग देशों में जो भी चिकित्सा पद्धति विकसित हुई उन सभी का विकास ऐसे ही हुआ. उस काल में विज्ञान की सभी शाखाओं जैसे गणित. खगोल शास्त्र, रसायन विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, वास्तुशास्त्र आदि में भारतीय वैज्ञानिक पश्चिमी देशों से बहुत आगे थे. चरक और सुश्रुत जैसे उस समय के महान चिकित्सकों ने आयुर्वेद को वैज्ञानिक रूप देने का काफी कुछ प्रयास भी किया लेकिन दुर्भाग्यवश बाहरी असभ्य आक्रमणकारियों का गुलाम बन जाने के कारण देश में सभी प्रकार का विकास रुक गया. आयुर्वेद के विकास में एक बहुत बड़ी बाधा यह भी रही कि यदि किसी को कोई कारगर दवा मिल गई तो उसने उसे अपने तक ही सीमित रखने का प्रयास किया. पश्चिमी देशों में आरंभिक चिकित्सकों ने अपने अनुभवों को प्रकाशित किया व उनमें विज्ञान की अन्य शाखाओं जैसे फिजिक्स केमिस्ट्री और बायोलॉजी का समावेश करके चिकित्सा विज्ञान का ठीक प्रकार से विकास किया. लाखों लोगों द्वारा सैकड़ों वर्षों तक किए गए अनवरत परिश्रम से यह आज संपूर्ण चिकित्सा विज्ञान का रूप ले पाया है.

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जिसको गलती से लोग एलोपैथी कहते हैं, में बीमारियों के कारणों का बहुत बारीकी से अध्ययन किया जाता है. दवाऐं कैसे काम करती हैं एवं उनके क्या-क्या साइड इफेक्ट्स हैं, इनका पहले जानवरों पर वह फिर मनुष्यों पर लंबा अध्ययन किया जाता है. कोई एक दवा किसी एकाध मरीज में चमत्कार कर गई यह न देख कर उसको हजारों मरीजों में देकर उन आंकड़ों की गहन समीक्षा की जाती है. तब जाकर उस दवा को मनुष्यों में प्रयोग करने की अनुमति दी जाती है.

आधुनिक चिकित्सा पद्धति इस बात पर जोर देती है कि रोग की सही पहचान के लिए पहले रोगी द्वारा रोग का वर्णन एवं चिकित्सक द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न (history), फिर रोगी का शारीरिक परीक्षण (examination) व फिर आवश्यकतानुसार जांचे (investigations) इस प्रकार से बीमारी की विधिवत डायग्नोसिस की जानी चाहिए. पुरानी चमत्कार प्रधान पद्धतियों में नब्ज़ देख कर सारी बीमारी बताने पर जोर दिया जाता है. इसके लिए हकीम और वैद्य लोग तरह-तरह के नाटक करते हैं. आश्चर्य इस बात का है कि आज के वैज्ञानिक युग में पढ़े लिखे लोग भी इन ठगों के चक्कर में फंस जाते हैं.

यह सही है कि प्रकृति में पाए जाने वाले पेड़ पौधों व खनिजों से बहुत सी दवाएं बनी है व और बन भी सकती है पर उन पर रिसर्च की आवश्यकता है. मलेरिया के इलाज में प्रयोग होने वाली कुनैन सिनकोना नामक पेड़ की छाल से निकलती है. ह्रदय रोगों में प्रयोग होने वाली डिजिटैलिस फॉक्सग्लव नाम के पौधे की पत्तियों से बनाई जाती है. जब यह दवाएं क्रूड फॉर्म में प्रयोग होती थी तब इन से बहुत साइड इफेक्ट होते थे. विज्ञान के विकास के साथ इन में उपस्थित मुख्य दवा की पहचान कर उन्हें अलग किया गया व उनका पूरा अध्ययन करके खुराक तय की गई तो वे साइड इफेक्ट्स कम हुए. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बहुत से भयानक विष भी पेड़-पौधों से ही निकलते हैं. तंबाकू, भांग, अफीम, धतूरा, कुचला, कुरारे आदि विष पेड़-पौधों से ही प्राप्त होते हैं. संखिया (arsenic), तूतिया (कॉपर सल्फेट), पारद लवण (mercurial)  इत्यादि खनिज भी प्रकृति से प्राप्त होते हैं. यह भी आयुर्वेद में प्रयोग किए जाते हैं. स्वर्ण भस्म गुर्दों व बोन मैरो को अत्यधिक हानि पहुंचा सकती है. कनेर के तीन-चार बीज खाने से मनुष्य की मृत्यु हो सकती है. कहने का अर्थ यह है जड़ी बूटी व खनिजों से खतरे होने की संभावना है इसलिए इनका  विधिवत अध्ययन करके ही  इनका प्रयोग करना चाहिए जब तक यह कार्य ना हो  तब तक उन्हें  खतरनाक  और एक्सपेरिमेंटल  दवाओं की श्रेणी में रखना चाहिए.

इन सबसे अलग एक समस्या और भी है. कुछ गिनी-चुनी स्तरीय कंपनियों को छोड़कर आज का बाजार आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली घटिया प्रोपेगंडा कंपनियों के माल से अटा पड़ा है. इन दवाओं को बनाने में लागत बहुत कम आती है इसलिए इनमे मार्जिन बहुत है. इनकी गुणवत्ता जानने का कोई तरीका नहीं होता  एवं जो औषधियां लिखी हैं वह इनमें है भी या नहीं  यह जानने का भी कोई उपाय नहीं है इस कारण से  इनमें ड्रग कंट्रोल कानूनों में फसने का भी कोई डर नहीं होता. कुछ डॉक्टर विशेष कारणों से इन दवाओं को लिखते हैं. कुछ केमिस्ट काउंटर सेल में इन दवाओं को भिड़ा कर मोटा मुनाफा कमाते हैं. इस पूरे रैकेट का शिकार बेचारा गरीब मरीज ही बनता है. हर्बल दवाओं में बड़े मार्केट की संभावनाओं को देखकर बहुत सी अच्छी कंपनी भी अब इस मैदान में आ गई हैं और उन्होंने एलोपैथिक नामों से हर्बल दवाएं बनाना आरंभ कर दिया है. इस प्रकार की दवाएं केवल उन बीमारियों के लिए बनाई जाती है जो अपने आप घटती बढ़ती हैं या ठीक हो जाती है जैसे पीलिया,  मासिक धर्म की अनियमितता, बवासीर, यौन शक्ति कम होना,  याददाश्त कम होना,  भूख कम लगना  इत्यादि.

आयुर्वेद और यूनानी के संबंध में एक और समस्या इन सबसे अधिक चिंता जनक है. बहुत से हकीम और वैद्य सांस की दवाओं और दर्द की दवाओं की पुड़िया बेचते हैं. ये सब ठग लोग अपने पुडियों में बैट्नीसोलl आदि स्टेरॉयड दवाऐं मिला देते है. ये दवाएं बहुत सस्ती होती हैं व शुरू में एकदम फायदा करती हैं.  बाद में इनके भयानक साइड इफेक्ट सामने आते हैं.  बहुत से लोग इन ठगों के चक्कर में पड़कर नुकसान उठाते हैं.

कहने का तात्पर्य यह है  की आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अतिरिक्त  जो भी दवाएं उपलब्ध हैं  वह सब खतरनाक साबित हो सकती हैं इसलिए बिना अपने फैमिली डॉक्टर की सलाह लिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए. समय के साथ हमारे शरीर  और हमारे वातावरण में  बहुत बदलाव आया है.  यदि कोई दवा  सैकड़ों साल पहले  कारगर रही भी होगी तो वह आज भी असर करे यह बहुत मुश्किल है. हमें वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करके अंधविश्वासों से बाहर निकलना चाहिए. यदि हमें विश्वास है की अन्य पैथियों मे कुछ अच्छी दवाएं हैं तो हमें उन्हें विज्ञान की कसौटी पर कस के उनमें से उपयोगी दवाएं ढूंढनी चाहिए.

https://link.springer.com/article/10.1007/s12664-018-0820-6

https://link.springer.com/article/10.1007/s12664-017-0815-8

Ayurvedic and herbal medicine use in Kerala causing severe liver damage and mortality

In a study conducted by liver specialist Dr Abby Philips, senior gastroenterologist Dr Philip Augustine, liver pathologist Dr Rajaguru, with the partnership of Sophisticated Testing and Instrumentation Centre of the Cochin University of Science and Technology and Envirodesigns Ecolabs, at a tertiary level hospital at Kochi, in Kerala, it was found that about two percent of patients who came for treatment in the liver department had liver damage due to intake of Ayurveda and herbal medicines. Ayurveda and herbal medicines that were taken by these patients were from two sources – practicing Ayurveda and Homeopathy doctors and from traditional healers without proper training or medical degree in alternative medicine (parambarya vaidyanmar). Most patients took Ayurveda for abdominal symptoms like loss of appetite, bloating, gas formation while other took for control of diabetes, weight loss, joint problems. In all the patients, severe jaundice was noted, while in 30 percent of patients, severe liver damage leading to brain failure and accumulation of fluid in abdomen were seen. Around 19 percent of patients died due to severe liver damage. The study team also performed liver biopsy in 27 patients. The biopsies showed various levels of injury ranging from severe fat accumulation in liver cells (mostly in patients who took ‘lehyam’, homeopathy medicines rich in alcohol and oil/fat based herbal mixtures) to complete loss of liver cells (in patients who took multiple Ayurveda medications, especially tablets and unknown powder mixtures from traditional healers). The various Ayurveda and herbal medicines retrieved from the patients and found associated with liver damage and the companies that manufacture them are shown below.

Yog Sallaki by Legend Pharma, Bonsil by Ballan Pharma, Ostina Forte by Ayurchem, Swarna Guggulu by Dabur, Bitana Forte by HV Pharma, Bacfo Joint Care by Bacfo Pharma, Ikshwadi by Balakishna Pharma, Sankara Bati by Vyas Pharma, Hriden Plus by Traditional healer, Vasaguluchyadi by Everest Co, Prameoushadi by Oushadi, Orthoherb by Pankaja Kasturi, Livomyn by Charak, Ayamodaka Sathaal by Ayamodakam, Kaisoragulu Vatika by Raja Health, Najati Powder by Faiz Unani, Vilwadi Gulika by Kottakal, Testes Siccati by Reckeweg, Oleum Jeconis by Reckeweg, Arethaki Lehyam by Nagarjuna Pharma, Drakshati Kath by Kerala Ayurveda, G H Evandam by Athreya, Gasna Syrup by Das Classic, Noni by Apollo, Rasna Sallaki by DC Pharma,
Ginseng by Reckeweg, Multiple Medicines by Traditional healers

In the next step in their study, the researchers analysed Ayurveda and herbal medicine samples retrieved from the patients for potential toxins, poisons, heavy metals and alcohols. They found that most of the Ayurveda and herbal medicines contained heavy metals such as lead, mercury, arsenic, cadmium, and antimony up to 10000 times more than the normal levels. They also found highly poisonous and toxic chemicals, called volatile organic compounds in these Ayurveda and herbal medications. Most of these heavy metals and toxins were found in medicines prescribed by traditional healers or ‘parambarya vaidyanmar’ who advertise their fake treatments through social media and by word of mouth. However, even some of the Ayurveda and herbal medicines made by proper Ayush companies were also found to have high heavy metal and toxin levels. The majority of patients who died of severe drug related liver injury due to Ayurveda and herbals medicines had consumed medicines prescribed by traditional healers while only few died after using medicines prescribed by Ayush practitioners. The researchers took about ten different samples of modern medicines prescribed for liver patients and analysed them also for toxins and heavy metals and found that none of them contained these poisonous substances. Fake media advertisements, social media networking, television shows on Ayurveda and herbal medicines and claim by Ayush doctors that their treatments can cure cirrhosis and other liver disease must be taken with caution. These Ayush medicines in the current era are not scientifically proven or tested in animals and humans and have not undergone proper clinical trials. This is proven with this new breakthrough study from Kerala, that show high levels of toxins and heavy chemicals in Ayush medicines. The researchers were also surprised to find that many patients still took treatment from Homeopaths in Kerala, when homeopathy practice has been found to be without effect in European and American healthcare system. The United States Federal Trade Commission has ordered Homeopathic practitioners to label their treatments/medications as ‘not effective’. This detailed information on the useless effects of Homeopathy practice can be seen in databases as simple as Wikipedia and also at the official public statement issued by the US Government at the following link:

https://www.ftc.gov/system/files/documents/public_statements/996984/p114505_otc_homeopathic_drug_enforcement_policy_statement.pdf.

उपरोक्त कुछ उदाहरण यहाँ इस लिए दिए गए हैं जिससे हम किसी पैथी पर अंधविश्वास न कर के अपने विवेक का प्रयोग कर के केवल तर्क संगत उपचार पद्धतियों को ही प्रयोग करना सीखें.

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