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सारे शरीर की जाँच ( whole body test )

हम सभी लोग यह चाहते हैं कि हम गंभीर बीमारियों से दूर रहें और स्वस्थ रहें लेकिन इसके लिए हम डॉक्टरों द्वारा सुझाए गए रास्ते पर चलना नहीं चाहते. हम व्यायाम करना नहीं चाहते, हम परहेज करना नहीं चाहते और जो भी नशा हम करते हैं (चाय, सिगरेट, तम्बाखू, पान मसाला, शराब आदि) उसे छोड़ना भी नहीं चाहते. अधिकतर लोग तो लंबे समय तक दवा भी खाना नहीं चाहते. स्वस्थ रहने के लिए हम में से अधिकतर लोग आसान सा शॉर्टकट ढूंढते हैं. हम यह चाहते हैं कि हमें जल्दी से यह मालूम पड़ जाए कि हमें कोई बीमारी तो नहीं है और हम जल्दी से उसका इलाज कर लें।

अधिकतर शराब पीने वाले बार-बार खून की जांच करा कर यह देखते रहते हैं कि उनके लिवर में कोई खराबी तो नहीं आई है लेकिन वे शराब छोड़ना नहीं चाहते. वे यह नहीं समझते कि यदि वे शराब पीते रहेंगे तो कभी ना कभी लिवर खराब होगा ही. बहुत से लोग हार्ट की जांच करा कर देखना चाहते हैं कि उन्हें हार्ट की परेशानी तो नहीं है पर वे यह समझने को तैयार नहीं होते कि यदि वे सिगरेट, तंबाकू का इस्तेमाल बंद नहीं करेंगे, चिकनाई खाना कम नहीं करेंगे और व्यायाम नहीं करेंगे तो उन्हें आज नहीं तो कल हार्ट की बीमारी हो ही जाएगी.

हमारे अन्दर जो बीमारी का डर समाया होता है उसका फायदा उठाने के लिए बहुत सी कॉर्पोरेट लैब्स (corporate labs) ने तरह तरह के पैकेज निकाल दिए हैं. आम जनता के बीच इन पैकेज को ‘सारे शरीर की जांच’ कह कर प्रचारित किया जाता है. बहुत से स्वस्थ लोग बीमारियों के डर के कारण इन भ्रामक प्रचारों में फंस जाते हैं और ये पैथोलॉजी के पैकेज वाली जांचें करा लेते हैं. इसके अतिरिक्त डॉक्टर किसी मरीज़ को एकाध जाँच कराने के लिए बोलते हैं तो ये लैब वाले उन्हें सारे शरीर की जाँच कराने के लिए प्रेरित कर के उन्हें पैकेज के लिए राजी कर लेते हैं. उनमे से अधिकतर जांचें मरीज़ के किसी काम की नहीं होतीं, मरीज़ का पैसा फ़ालतू खर्च होता है, मरीज़ उन रिपोर्टों को देख कर भ्रमित होता है और अनावश्यक टेंशन में आ जाता है. इन फ़ालतू रिपोर्टों को देखने और मरीज़ की अनावश्यक चिंताओं को दूर करने में डॉक्टर्स का भी बहुत समय खराब होता है. जिन मरीजों की पैथोलॉजी जांचें ठीक आती हैं वे यह सोचते हैं कि उन्हें कोई बीमारी नहीं है, और निश्चिन्त हो जाते हैं. वे परहेज व व्यायाम नहीं करते और अन्य कुछ जांचें जो वाकई में आवश्यक हैं उन्हें नहीं कराते जिससे उन्हें बीमारियाँ होने का डर अधिक हो जाता है.

किस समय कौन सी जांचें कराना चाहिए – (कोई भी पैथोलॉजी जांच कराने से पहले डॉक्टर को दिखाना आवश्यक होता है. बिना डॉक्टर की सलाह के पैकेज वाली जांचें नहीं करानी चाहिए.)

  1. जन्म के समय – सभी नवजात शिशुओं (newborns) की चार बीमारियों के लिए जांच होनी चाहिए – थाइरॉइड की बीमारी, फिनाइलकीटोन्यूरिया, गैलेक्टोसीमिया, सिकिल सैल बीमारी.
  2. बढ़ते बच्चों को बीमारी से बचाव के लिए समय से टीके लगवाते रहना चाहिए और उन्हें पौष्टिक आहार के अलावा विटामिन ए, डी एवं आयरन की अतिरिक्त मात्रा देना चाहिए. बच्चे शारीरिक खेल कूद या व्यायाम अवश्य करें. यदि बच्चे की बढ़वार (growth) संतोषजनक न हो तो डॉक्टर को दिखा कर उसकी आवश्यक जांचें करा लेनी चाहिए.
  3. बीस साल की आयु में एक बार ब्लड प्रेशर अवश्य नपवा लेना चाहिए एवं ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रोल, हीमोग्लोबिन तथा थाइरॉइड की जांच करा लेनी चाहिए. सभी लोगों का वज़न का नाप ले कर BMI कैलकुलेट करना चाहिए. (BMI = weight / height2). जिन लोगों का BMI अधिक है उन्हें मोटापा कम करने की सलाह देना चाहिए.
  4. तीस साल की अवस्था में एक बार फिर से यही जांचें करा लेना चाहिए. जिन लोगों के माता पिता में से किसी को ब्लडप्रेशर या डायबिटीज की बीमारी है उन्हें तीस वर्ष की आयु के बाद हर साल इन की जांच कराना चाहिए. जिन के माता पिता को कोलेस्ट्रोल अधिक होने की या थाइरॉइड की बीमारी है उन को हर तीन साल में एक बार उसकी जांच करा लेनी चाहिए.
  5. महिलाओं को तीस साल की आयु के बाद अपने स्तनों की जांच स्वयं करते रहना चाहिए. जिन की माता या बहनों को स्तन कैंसर हुआ हो उन्हें हर तीन साल पर मैमोग्राफी (mammography) करा लेनी चाहिए.
  6. चालीस साल की आयु के बाद महिलाओं को हर साल मैमोग्राफी कराना चाहिए और PAP smear नामक जांच जिससे गर्भाशय ग्रीवा (uterine cervix) के कैंसर का पता चलता है, कराना चाहिए. इसी आयु में पेट का अल्ट्रासाउंड भी करा लेना चाहिए और फिर हर तीन से पांच साल पर कराते रहना चाहिए.
  7. चालीस साल की आयु में महिलाओं और पुरुषों दोनों को निम्न जांचें करा लेनी चाहिए-
    • फिजीशियन द्वारा बीमारियों से सम्बंधित हिस्ट्री एवं शारीरिक जांच. (यह सबसे महत्वपूर्ण है).
    • Blood Sugar (fasting & PP), यदि परिवार में किसी को शुगर हो तो Hb A1C भी कराना चाहिए. इसके बाद साल में एक बार कराते रहें.
    • Lipid profile (खून में चर्बी की जाँच). इसके बाद तीन साल में एक बार.
    • SGPT एवं Hepatitis C की जांच (लिवर के लिए)
    • Serum creatinine (गुर्दे के लिए)
    • Serum Uric acid (गठिया के लिए)
    • Serum Calcium तथा Vitamin D
    • Hb, General blood picture, ESR (खून की कमी व इन्फेक्शन के लिए)
    • TSH ( थाइरॉइड के लिए)
    • यदि खांसी, सांस सम्बंधित कोई लक्षण हो तो सीने का एक्सरे.
    • Urine R & M (पेशाब की जांच)
    • Stool test routine & occult blood. (मल की जाँच)
    • यदि परिवार में किसी को हृदय रोग हो तो ECG तथा TMT भी करा लेना चाहिए.   
    • यदि परिवार में किसी को बड़ी आंत में कैंसर हुआ हो तो दूरबीन द्वारा Colonoscopy जाँच.  
    • आँख की जांच जिस में दृष्टि जांच (vision test) के अलावा आँख के प्रेशर (intra ocular tension) और आँख के पर्दे की जांच (fundoscopy) शामिल है.
    • व्यक्ति द्वारा खुद त्वचा की नियमित जांच. यदि कोई नया मस्सा अथवा घाव बनता दिखाई दे या पुराने तिल मस्से में अचानक बदलाव आने लगे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
  8. पचास वर्ष की आयु में ऊपर लिखी सभी जांचें दुबारा करा लेना चाहिए. पुरुषों को प्रोस्टेट कैंसर से सम्बंधित PSA नामक खून की जाँच भी करा लेना चाहिए और कोई खराबी न आने पर हर पांच साल में एक बार कराते रहना चाहिए. जिन लोगों को ओस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा हो उन्हें BMD (बोन मिनरल डेंसिटी) की जांच भी करा लेना चाहिए. मीनोपॉज़ के बाद महिलाओं में हड्डियाँ कमज़ोर होने और फ्रैक्चर होने का खतरा आयु के साथ बढ़ता जाता है. महिलाओं या पुरुषों में यदि कैल्शियम व विटामिन डी की कमी हो, थाइरॉइड की बीमारी हो, स्तन कैंसर या प्रोस्टेट कैंसर की दवा चलती हो, स्टीरॉयड दवाएं चलती हों या हाल में कोई फ्रैक्चर हुआ हो तो उन में ओस्टियोपोरोसिस का खतरा मानते हैं.

डॉ. शरद अग्रवाल  एम डी

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