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सीने का दर्द

डॉक्टर्स के क्लीनिक में दिखाने आने वाले मरीजों में एक बहुत बड़ी संख्या सीने के दर्द के मरीजों की होती है.  सीने के दर्द के बहुत से कारण है जिनमें से हृदय रोग (heart disease) भी एक है,  पर सामान्य लोगों में ह्रदय रोग का डर इतना अधिक व्याप्त है

कि वे किसी भी कारण से होने वाले सीने के दर्द को हृदय रोग ही समझते हैं (विशेषकर सीने के बाएं और होने वाले दर्द को).  सीने के दर्द के मुख्य कारण निम्न हैं –

ह्रदय से संबंधित रोग

एनजाइना :   हृदय को रक्त ले जाने वाली कोरोनरी आर्टरी में चर्बी जम जाने से हृदय को रक्त की सप्लाई कम हो  जाती है. इससे  सीने में दर्द महसूस होता है. यह दर्द सीने के बीचो बीच में, निचले जबड़े में,  बांयी बांह में  या दोनों बाहों में

एनजाइना व हार्ट अटैक से होने वाला दर्द

हो सकता है. चलने से दर्द बढ़ता है और रुक जाने से या सौर्बिट्रेट की गोली चूसने से कम हो जाता है.  बीमारी के बढ़ने पर बैठे-बैठे भी दर्द हो सकता है. एनजाइना के मरीजों में ECG आमतौर पर नार्मल आता है. TMT (मशीन के ऊपर चलते समय ECG) द्वारा एनजाइना के अधिकतर मरीजों को डायग्नोज़ किया जा सकता है.

 

2.  हार्ट अटैक :   संकरी होने वाली कोरोनरी आर्टरी में यदि खून का थक्का जम जाए तो हार्ट के कुछ हिस्से को मिलने वाली ब्लड सप्लाई एकदम से बंद हो जाती है.  इससे व्यक्ति सीने में बहुत अधिक

दर्द महसूस करता है, उसको बहुत बेचैनी व घबराहट  होती है और पसीना आता है एवं तुरंत इलाज न मिलने पर खतरा भी होता है.  हार्ट अटैक के कुछ मरीजों को अधिक दर्द नहीं होता (विशेषकर डायबिटिक लोगों को), कुछ लोगों को बिलकुल दर्द नहीं होता जबकि कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें गैस बन रही है इसलिए वे उसे  गंभीरता से नहीं लेते. हार्ट अटैक के अधिकतर केसेज़ को ECG, ईको (Echocardiography) एवं कुछ ब्लड टेस्ट द्वारा डायग्नोज़ किया जा सकता है.

3.  हार्ट की झिल्ली की सूजन (pericarditis) :    हार्ट के चारों ओर एक झिल्ली नुमा रचना होती है जिसे पेरीकार्डियम कहते हैं. इसमें सूजन होने पर भी सीने में दर्द हो सकता है जो कि सीने को दबाने से और गहरी सांस लेने से बढ़ सकता है. इसके सबसे कॉमन कारण वायरल इन्फेक्शन और टीबी हैं. ECG, ईको, खून की जांच और यदि झिल्ली में पानी हो तो उसकी जांच से इसको डायग्नोज़ करते हैं.

फेफड़ों से सम्बंधित रोग

1. फेफड़े की झिल्ली की सूजन (pleuritis) :   इसके सामान्य कारण बैक्टीरियल इन्फेक्शन, न्यूमोनिया  टीबी और कैंसर  हैं. इसका दर्द गहरी सांस लेने और खांसने से बढ़ता है. अधिकतर केसेज़ में फेफड़े की झिल्ली में इन्फेक्शन या कैंसर होने पर उसमें पानी बनने लगता है (pleural effusion) जोकि सीने का एक्सरे कर के एवं सूई द्वारा थोड़ा पानी निकाल  कर उसकी जांच करने से  डायग्नोज़ किया जा सकता है.

2. न्यूमोनिया (pneumonia) :  इसका अर्थ है फेफड़े में इन्फेक्शन. इसमें सीने में दर्द होता है जोकि सांस लेने से बढ़ता है और साथ में खांसी व बुखार भी होता है. सीने का एक्सरे, खून की जांच और बलगम की जांच से इसको डायग्नोज़ किया जा सकता है.

3. फेफड़े का कैंसर :   यह अधिकतर धूम्रपान करने वाले लोगो को होता है. इसके मरीज़ को खांसी, बलगम, मुंह से खून आना आदि लक्षण हो सकते हैं. किसी किसी मरीज़ को सीने में बहुत दर्द होता है जबकि किसी को बिलकुल नहीं होता. सीने के एक्सरे में यदि कैंसर का संदेह होता है तो सीटी स्कैन व ब्रोंकोस्कोपी से इसको डायग्नोज़ करते हैं.

4. फेफड़े की आर्टरी में खून का थक्का जमना (pulmonary thromboembolism) :    कुछ मरीजों में पैर की शिराओं (veins) मैं बनने वाले खून के थक्के वहां से छूटकर फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और फेफड़े की आर्टरी को ब्लॉक कर देते हैं.  यह एक खतरनाक स्थिति है. इसमें भी  हार्ट अटैक की भांति  सीने में बहुत तेज दर्द, दबाव और घबराहट होती है.  सीने का एक्सरे, ईको,  और कुछ स्पेशलाइज्ड  जांचों द्वारा  इसको डायग्नोस किया जाता है. 

पाचन तंत्र (digestive system)  के रोग

1. एसिडिटी :     अधिक तेजाब बनने से खाने की नली में सूजन व घाव हो जाते हैं जिससे  सीने में दर्द हो सकता है.   अधिक तेजाब से आमाशय (stomach)  में भी सूजन और अल्सर हो सकते हैं जिसका  दर्द पेट के ऊपरी हिस्से या सीने के निचले हिस्से में हो सकता है. एंडोस्कोपी द्वारा इनको डायग्नोस किया जा सकता है.

2. पित्त की थैली के रोग :     पित्त की थैली में सूजन या पथरी होने से भी  पेट के ऊपरी हिस्से, पीठ के बीच में दाहिनी ओर एवं सीने के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है.   अल्ट्रासाउंड द्वारा  इसको डायग्नोस किया जा सकता है.

गर्दन की नस का दर्द (cervical pain) :    गर्दन की रीढ़ की हड्डी में नस दबने से सीने के

सर्वाइकल दर्द का एरिया

ऊपरी हिस्से,  पीठ के ऊपरी हिस्से और बाहों में दर्द हो सकता है. अगर यह दर्द बाईं ओर होता है  तो इससे हार्ट के दर्द का धोखा होता है. यह दर्द चलने से नहीं बढ़ता  और गर्दन को आगे पीछे झुकाने से बढ़ता है.  जिन केसेज़ में संदेह हो  उनमें आवश्यक जांच कराकर देख लेना चाहिए.  गर्दन के एक्सरे और एम आर आई से इसको डायग्नोस करने में सहायता मिलती है.

 

पसली के कार्टिलेज का दर्द (costochondritis) :    पसलियों को सीने की हड्डी से जोड़ने वाला एक विशेष प्रकार का कार्टिलेज होता है (costal cartilage). इसके जोड़ में सूजन आ जाने से भी  सीने में दर्द होता है. दबाने से यह दर्द बढ़ता है और दर्द निवारक दवा खाने से कम हो जाता है. विटामिन डी  और कैल्शियम की कमी से  इन में सूजन आने की संभावना बढ़ जाती है.  इसके लिए कोई जांच नहीं होती.  यह केवल लक्षणों के आधार पर डायग्नोस किया जाता है.

हरपीस :  (herpes zoster) :    हरपीस  की बीमारी शरीर के जिस भाग पर भी होती है वहां पहले दो-तीन दिन तेज चुभन के साथ दर्द होता है,  उसके बाद लाल दाने जैसे दिखाई देते हैं एवं फिर  पानी भरे छालो के गुच्छे निकल आते हैं. जब तक छाले नहीं निकलते तब तक इसको डायग्नोस करना बहुत मुश्किल होता है.  यदि यह सीने पर निकलती है तो इससे होने वाले तेज दर्द के कारण बहुत सी बीमारियों का धोखा होता है. यह एक ही साइड में आगे से पीछे तक होती है.

कार्डियक न्युरोसिस :     यह एक विशेष प्रकार की बीमारी है जो कि ज्यादातर युवाओं में देखी जाती है.  इसमें सीने में बायीं ओर ऊपर की तरफ कुछ देर के लिए तेज दर्द होता है जो कि सांस लेने से बढ़ता है.  फिर यह दर्द अपने आप ठीक हो जाता है पर कभी भी दोबारा हो सकता है.  इसके मरीजों में अधिकतर घबराहट की बीमारी और थकान के लक्षण देखे जाते हैं.  अधिक तनाव होने पर यह बीमारी बढ़ जाती है.

मांस पेशियों का दर्द (muscular pain) :   सीने पर कभी कोई चोट लगने पर उसका दर्द बहुत दिनों तक हो सकता है. कभी असामान्य रूप से मांस पेशियों से बहुत अधिक काम लेने पर भी उनमे दर्द हो सकता है. कभी कभी वायरल इन्फेक्शन आदि से भी मांस पेशियों में बहुत अधिक दर्द हो सकता है. जिन मांस पेशियों में दर्द है उनसे काम लेने पर या उनको दबाने पर दर्द बढ़ता है. दर्द निवारक दवाओं व सिकाई से दर्द कम होता है.

इस लेख द्वारा यह सन्देश देने का प्रयास किया गया है कि सीने में दर्द के बहुत से कारण होते हैं जिनमें से कुछ खतरनाक भी हो सकते हैं, इसलिए सीने में दर्द होने पर उसे टालना नहीं चाहिए एवं योग्य फिजिशियन को दिखा कर उसके लिए समुचित इलाज व परहेज करना चाहिए.

 

 

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