ल्यूकोरिया (leucorrhea) अर्थात श्वेत प्रदर (सफेद पानी) स्त्रियों में होने वाली एक बहुत आम परेशानी है जिसमें योनि मार्ग से सफेद या पीला द्रव निकलता है. यह बिना किसी बीमारी के स्वस्थ महिलाओं में भी हो सकता है और कुछ बीमारियों का लक्षण भी हो सकता है
सामान्य श्वेत प्रदर (physiological leucorrhea) : नवजात बच्चियों में मां से प्राप्त हुए ईस्ट्रोजन हार्मोंस के कारण कुछ दिन तक योनि मार्ग से इस प्रकार का स्राव (discharge) हो सकता है. किशोरावस्था में माहवारी आरंभ होने के समय तथा स्त्रियों में गर्भावस्था में भी हारमोंस में बदलाव के कारण पानी जैसा पतला स्राव हो सकता है. इस प्रकार के डिस्चार्ज में दुर्गंध नहीं होती तथा उसके साथ खुजली, जलन व दर्द इत्यादि नहीं होते. इन सभी परिस्थितियों में इलाज की कोई आवश्यकता नहीं होती.
हमारे देश में अधिकतर महिलाओं को यह अंधविश्वास है कि कमर की हड्डी कटने से सफेद पानी आता है और इस के कारण शरीर में बहुत कमजोरी आ सकती है. इसी अंधविश्वास के कारण बहुत सी स्त्रियां फालतू एवं गलत दवाएं खाती रहती हैं तथा बहुत सी माताएं अपनी बच्चियों को अनावश्यक दवाएं खिलाती हैं. विशेष रुप से ऐसी महिलाएं हमारे देश में अत्यधिक प्रचलित अवैज्ञानिक देसी दवाओं, हर्बल दवाओं, होम्योपैथिक दवाओं एवं तरह तरह के हानिकारक केमिकल्स व डूशेज़ (douches) का शिकार बनती हैं.
बीमारियों के कारण होने वाला ल्यूकोरिया : इनमें सबसे कॉमन है Gardnerella Vaginalis नाम के बैक्टीरिया द्वारा होने वाला इंफेक्शन. सामान्य रूप से यह बैक्टीरिया कुछ अन्य बैक्टीरिया के साथ मिलकर योनि मार्ग में रहता है. शरीर के किसी अन्य भाग में इन्फेक्शन के लिए एंटीबायोटिक खाने से, गर्भनिरोध के लिए डायाफ्राम या अन्य डिवाइस प्रयोग करने से, अधिक डूश करने से या अधिक लोगों से यौन संबंध रखने से इस बैक्टीरिया की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है जिसके कारण अधिक डिस्चार्ज उत्पन्न हो सकता है. इसमें कुछ गंध होती है और कभी कभी जलन सी हो सकती है. कभी-कभी यह इंफ़ेक्शन गर्भाशय, फेलोपियन ट्यूब या पेट के अंदर पहुंचकर गंभीर बीमारियां उत्पन्न कर सकता है. विशेषकर प्रसव (डिलीवरी, delivery) या गर्भपात (abortion) के बाद ऐसा होने की संभावना अधिक होती है. कुछ विशेष एंटीबायोटिक्स के द्वारा इसका सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है.
योनिमार्ग का दूसरा सबसे कॉमन इन्फेक्शन कैंडिडा (candida) नाम की फंगस (fungal infection) द्वारा होता है. इसमें योनि मार्ग में दही के समान सफेद डिस्चार्ज होता है एवं योनि मार्ग तथा आसपास की त्वचा में जलन, लाली और खुजली हो सकती है. शरीर के अन्य हिस्सों की त्वचा में भी कैंडिडा द्वारा इंफेक्शन हो सकता है. विशेषकर जांघों में, स्तन के नीचे, बगल में एवं मुंह के अंदर (डायबिटीज के मरीजों में यह इंजेक्शन अधिक होता है). फंगल इन्फेक्शन की दवाओं द्वारा इसका इलाज किया जा सकता है.
योनिमार्ग के अन्य इन्फेक्शन कुछ अन्य बैक्टीरिया, फंगस या परजीवियों (मुख्यतः Trichomonas vaginalis) द्वारा होते हैं जिनके कारण ल्यूकोरिया हो सकता है. Gonorrhea एवं Chlamydia इन्फेक्शन जोकि यौन संक्रमण (sexually transmitted disease) द्वारा होते हैं उनमें भी ल्यूकोरिया हो सकता है. इन्फेक्शन द्वारा होने वाले सभी प्रकार के ल्यूकोरिया में स्त्री के साथ पुरुष का उपचार होना भी जरूरी होता है.
इन्फेक्शन के अतिरिक्त अत्यधिक केमिकल्स के प्रयोग से भी ल्यूकोरिया हो सकता है. इसका सबसे कॉमन उदाहरण है डूशेज़ (douches) का प्रयोग. योनिमार्ग या गर्भाशय ग्रीवा (cervix) पर कोई ट्यूमर या कैंसर होने पर भी योनिमार्ग से स्राव हो सकता है. इसलिए यदि अधिक आयु की महिलाओं को ल्यूकोरिया हो तो महिला चिकित्सक को अवश्य दिखा लेना चाहिए.
लेखिका : डॉ. पूनम अग्रवाल
वरिष्ठ परामर्शदाता, बरेली