हिस्टीरिया ( Hysteria )
हिस्टीरिया एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसमे मरीज को विचित्र प्रकार के दौरे पड़ते हैं। ये दौरे मिर्गी के दौरों से भिन्न होते हैं। मरीज को यह भ्रम होता है की वह बेहोश है, या उसे दिखाई नहीं दे रहा है, या उसका हाथ अथवा पैर काम नहीं कर रहा है या उसे दौरा पड़ रहा है जिसमे उसके हाथ व पैर लगातार हिल रहे हैं। जो भ्रम उसके मन में होता है वैसा ही वह करने लगता है। इसको कन्वर्जन रिएक्शन भी कहते हैं।
कुछ लोगो को अपने ऊपर भूत प्रेत या देवी देवता आने का भ्रम होता है। वे वैसी ही हरकतें करने लगते हैं एवं भाषा बोलने लगते हैं। कुछ लोग जान बुझ कर भूत प्रेत की एक्टिंग करते हैं। अन्धविश्वाशी लोग ऐसे में झाड़फूँक और ऊपरी इलाज़ के चक्कर में पड़ जाते हैं। जिन लोगो को भूत प्रेतों में विश्वास होता है उन्हें ऐसे इलाज़ से अस्थायी तौर पर लाभ भी हो सकता है।
कुछ लोग अपनी बात मनवाने के लिए या अपनी ओर सबका ध्यान आकर्षित करने के लिए जानबूझ कर ऐसी हरकते करते हैं जैसे उन्हें कोई गंभीर बीमारी हो। बीमारी की यह एक्टिंग (malingering) हिस्टीरिया से भिन्न होती है। कुछ कर्मचारी ड्यूटी के दौरान चोट लग जाने पर अपनी तकलीफ को बहुत बड़ा चढ़ाकर दिखाते है जिससे उन्हें अधिक मुआवजा मिल सके। यह भी एक प्रकार की एक्टिंग (malingering) है।
कुछ लोगो को घबराहट के दौरे (anxiety attacks) पड़ते है जिनमे उनका शरीर शिथिल हो जाता है व ये कुछ कह नहीं पाते हैं। यह स्थिति भी हिस्टीरिया से अलग है।
मिर्गी के दौरों में भी कभी कभी अजीब से लक्षण होते हैं, जिनसे हिस्टीरिया का धोखा होता है। योग्य चिकित्सक दौरों का पूरा विवरण सुनकर व कुछ आवश्यक जांचे करा कर इसको डायग्नोस कर सकते हैं ।
कुछ लोगो को शुरुआत तो हिस्टीरिया या घबराहट के दौरे से होती है । पर जब वे देखते हैं की दौरे पड़ने पर उनका विशेष ध्यान रखा जा रहा है एवं उनकी बात मानी जा रही है, तो वह जान बूझ कर एक्टिंग भी करने लगते हैं। वास्तविक हिस्टीरिया एवं एक्टिंग वाले दौरों में अंतर करना कई बार बहुत कठिन होता है। दोनों प्रकार के दौरे मानसिक तनाव की दशा में बढ़ जाते हैं। महिलाओ में ये दोनों रोग अधिक होते हैं ।
वास्तविक हिस्टीरिया व बनावटी एक्टिंग दोनों अलग अलग बीमारिया हैं पर लक्षणों एवं इलाज़ में समानता के कारण इन को एक जैसा ही मानते हैं। इन दोनों में सबसे आम लक्षण हैं बेहोशी, दिखाई न देना व हाथ पैर हिलना। कुछ मरीज बेहोशी के साथ दांत भी भींच लेते हैं। इन मरीजो की पलकें लगातार हिलती रहती हैं। ये मरीज जब बेहोश होकर गिरते हैं तो ध्यान रखते है कि उन्हें चोट न लगे जबकि मिर्गी के मरीजो को अक्सर चोट लग जाती है या जीभ कट जाती है। ये वास्तव में बेहोश नहीं होते व सब कुछ सुनते समझते रहते हैं। हिस्टीरिया के मरीजों का बेहोशी में मल मूत्र नहीं निकलता।
हिस्टीरिया का इलाज़ बहुत कठिन है क्योंकि इसमे बहुत से फैक्टर जुड़े होते है और वास्तविक बीमारी कोई नहीं होती। मरीज की मानसिक स्थिति, शिक्षा, परिवार का वातावरण, तनाव, अंधविश्वास आदि बहुत सी बातें इस पर असर डालती हैं। हिस्टीरिया एवं बनावटी एक्टिंग करने वाले मरीज मानसिक रूप से अपरिपक्व (immature) होते हैं। वे यह नहीं समझते हैं कि तनाव से बचने का व अपनी बात मनवाने का यह तरीका सही नहीं है। दवाएँ इस में विशेष मदद नहीं करतीं।
इस प्रकार के मरीजो के इलाज़ में बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। मरीज के साथ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार रखते हुए उसकी परेशानी को समझना चाहिए। योग्य चिकित्सक मरीज को देख कर किसी अन्य बीमारी की संभावना के विषय में भी सोचते हैं। यदि मरीज़ को खून की कमी, थाईराइड की बीमारी, ब्लडप्रेशर, डिप्रेशन या घबराहट की बीमारी आदि साथ में हो तो उसका उचित इलाज आवश्यक है।
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी