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सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (cervical spondylitis )

सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (cervical  spondylitis )

सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस एक बहुत आम बीमारी है. हमारा शरीर एक मशीन के समान है जिसके कल पुर्जे लगातार प्रयोग करने से घिसते हैं. हमारे जितने भी जोड़ हैं उनमें सबसे अधिक उपयोग होता है गर्दन, कमर की रीढ़ की हडडी व घुटनों का. इस कारण से इन्हीं जोड़ों में सबसे अधिक बीमारियाँ होती हैं. प्रकृति ने इस प्रकार की व्यवस्था कर रखी है कि शरीर में जहाँ कहीं भी टूट फूट या नुकसान होता है, शरीर उसको रिपेयर करने का प्रयास करता है. इस प्रयास में हड्डी बढ़ जाती है या हड्डी में कोने निकल आते है. यह बढ़ी हुई हड्डी यदि आस पास की अन्य हड्डी या मांसपेशियों को दबाने लगती हैं तो उसमें दर्द होने लगता है. यदि कोई नस दबने लगती है तो उस नस द्वारा सप्लाई होने वाले शरीर के भाग में सुन्नपन, झनझनाहट या दर्द होने लगता है.

सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस से उत्पन्न होने वाले लक्षण :

  1. गर्दन में दर्द होना व गर्दन का अकड़ना
  2. कंधे, पीठ व सीने के उपरी हिस्से में दर्द होना
  3. सर के पिछले हिस्से में दर्द होना
  4. बाँह, हाथ व उंगलियों में दर्द होना, झनझनाहट होना या उनका सुन्न होना
  5. चक्कर आना

कुछ लोगों को सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के कारण सीने में दर्द होता है व साथ में  कंधे एंव बाँह में दर्द होता है. ऐसे में हृदय रोग की सम्भावना को ध्यान में रखते हुए आवश्यक जाँच करा लेनी चाहिए.

एक प्रकार से देखा जाये तो सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस बीमारी न हो कर आयु के साथ होने वाली एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो सभी लोगों में होती है. इसके लक्षण बहुत भिन्न भिन्न होते हैं. कुछ लोगों के एक्स-रे में काफी खराबी दिखाई देती है पर उन्हें कोई कष्ट नही होता, कुछ को दर्द इत्यादि बहुत होता है पर एक्स-रे में विशेष खराबी नहीं आती. किसी को गर्दन में अधिक दर्द होता है, किसी के हाथ अधिक सुन्न होते हैं, किसी को केवल चक्कर आते हैं. एक ही व्यक्ति में अलग अलग समय पर अलग अलग लक्षण हो सकते हैं.

उपचार व रोकथाम :

  1. नियमित दिनचर्या में थोड़ा व्यायाम जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना, जॉगिंग करना, या कुछ खेलकूद अवश्य होना चाहिए.
  2. गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिये विशेष व्यायाम करें (isometric neck exercises).
  3. टेढ़े मेढ़े बैठ कर या लेट कर टी.बी. न देखे व पढाई न करें.
  4. पढाई व आफिस कार्यो के लिये उचित ऊँचाई की मेज कुर्सी का प्रयोग करें.
  5. फ़ोम का तकिया न लगाएँ. यदि गर्दन में दर्द हो तो मुलायम तौलिया का रोल बनाकर गर्दन के नीचे लगाएँ.
  6. दर्द होने पर सिकाई व सरवाइकल कालर का प्रयोग करने से राहत मिलती है.
  7. यदि दर्द अधिक हो तो डाक्टर की सलाह ले कर दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग करें. दर्द असहनीय हो तो सरवाइकल ट्रैक्शन व डायथर्मी से शीघ्र आराम मिल सकता है.

ये उपचार करने के बाद जब आराम हो जाये तब सभी सावधानियाँ बरतते रहना चाहिए व गर्दन का व्यायाम करते रहना चाहिए. सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के मरीजों को यह ध्यान रखना चाहिए कि स्पॉन्डिलाइटिस के कारण गर्दन की रीढ़ की हड्डियों में जो बदलाव आते हैं वे स्थायी होते हैं. वे किसी दवा से ठीक नहीं हो सकते. व्यायाम करने से गर्दन की मांसपेशियाँ मज़बूत हो जाती हैं जिससे रीढ़ की हड्डी को सपोर्ट मिलती है.

डॉ. शरद अग्रवाल एम.डी.

 

 

 

 

 

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