Diabetes, Fevers, Metabolism

डायबिटीज़ ( Diabetes mellitus )

हमारे भोजन में जो कार्बोहाइड्रेट्स (गेहूं, चावल, आलू, चीनी आदि) होते हैं वे पाचन क्रिया द्वारा ग्लूकोज में बदल जाते हैं. यह ग्लूकोज़ रक्त में मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचता है और ऊर्जा (energy) उत्पन्न करने के काम में आता है. रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा को नियंत्रित करने का काम इन्सुलिन नामक एक हार्मोन करता है जो कि पैंक्रियाज़ में बनता है. यदि रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ जाय तो इससे शरीर के अंगों को नुकसान होने लगता है. इसी अवस्था को मधुमेह या डायबिटीज मेलाइटस  कहते हैं.

डायबिटीज़ रोग को किसी भी इलाज द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता. हाँ! भोजन में परहेज, नियमित व्यायाम, व कुछ दवाओं द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है. डायबिटीज़ यदि नियंत्रित रहे तो इससे शरीर के किसी अंग को कोई नुकसान नहीं होता. डायबिटीज़ नियंत्रित न करने पर होने वाले मुख्य रोग निम्न हैं –

1. हृदय रोग

2. फालिज

3. गुर्दे खराब होना

4. आँख के परदे खराब होना

5. तंत्रिका तंत्र के रोग (neuropathy)

6. पुरुषों में नपुंसकता (नामर्दी)

7. पैरों के न ठीक होने वाले अल्सर व गैन्ग्रीन (जिसमें पैर काटने तक की नौबत आ सकती है)

8. भाँति भाँति के इन्फैक्शन होना और उनका आसानी से ठीक न होना

9. गर्भावस्था व प्रसव में जटिलताएँ

10. डायबेटिक डायरिया (दस्त)

11. बेहोशी (diabetic coma)

डायबिटीज़ को यदि शुरू से ही ठीक से नियंत्रित किया जाय तो इन भयानक रोगों से बचा जा सकता है.

लम्बे समय तक शुगर बढ़ी रहने से शरीर के अंगों को जो नुकसान हो जाता है वह बाद में शुगर कंट्रोल करने पर भी ठीक नहीं हो सकता. शुरुआत में बहुत से रोगियों को केवल हल्की सी डायबिटीज़ होती है. उस समय उनके रक्त में इन्सुलिन काफी मात्रा में होता है पर कुछ कारणों से  काम नहीं कर रहा होता है. इस अवस्था को इन्सुलिन रेसिस्टेंस कहते हैं. ऐसे रोगियों की शुगर बिना दवा खाए केवल परहेज व व्यायाम से कंट्रोल हो जाती है. ऐसे में वे यदि देशी या होम्योपैथिक दवाएं, जडी बूटियाँ, मेथी, करेला आदि भी ले रहे होते हैं या झाड़ फूंक कर रहे होते हैं तो उन्हें यह धोखा होता है कि उनकी शुगर इन चीजों से कंट्रोल हुई है. बहुत से ठग टाइप के लोग शुगर को जड़ से ठीक करने का दावा करते हैं और उस के लिए देसी दवाएँ देने का नाटक करते हैं. इन में से अधिकतर लोग तेज एलोपैथिक दवाओं (Daonil) आदि को पीस कर अपनी पुड़ियों में डाल कर देते हैं. ऐसे लोगों के चक्कर में पड़ कर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए.

जिन रोगियों का वजन अधिक है यदि वे अपना वजन कम कर लें तो भी शुगर काफी हद तक कंट्रोल हो जाती है, यहाँ तक कि बहुत से मरीजों में कुछ साल के लिए डायबिटीज ठीक भी हो सकती है (diabetes reversal). यदि केवल परहेज व व्यायाम से शुगर कंट्रोल नहीं होती है तो साथ में दवाएं भी प्रयोग करनी होती हैं. डायबिटीज़ की दवाएं कई प्रकार की होती हैं जिनका उपयोग बीमारी की स्टेज के अनुसार किया जाता है. जब शरीर में इन्सुलिन की मात्रा बहुत कम हो जाती है तो गोलियों से शुगर कंट्रोल नहीं होती है. ऐसे में इन्सुलिन के इंजेक्शन लगा कर उसे कंट्रोल करते हैं. इन्सुलिन कोई दवा न होकर शरीर में प्राकृतिक रूप से बनने वाला हार्मोन है जोकि बनना बंद हो जाने पर बाहर से पहुंचाना आवश्यक होता है. इसलिए इससे डरना नहीं चाहिए व आवश्यकता होने पर तुरंत लगाना आरम्भ कर देना चाहिए.

डायबिटीज़ की दवाओं व इन्सुलिन से कोई साइड इफैक्ट नहीं होते. जब कि शुगर कंट्रोल न होने पर बहुत से भयानक रोग होने का डर रहता है इसलिए डायबिटीज़ के रोगी को डॉक्टर के साथ पूरा सहयोग करते हुए परहेज, व्यायाम व दवाओं और इन्सुलिन द्वारा शुगर कंट्रोल करनी चाहिए. अधिक बढ़ी हुई शुगर इन्सुलिन बनाने वाली बीटा सेल्स को नष्ट करती जिससे जल्दी इन्सुलिन लगाने की नौबत आ जाती है. 

शुगर बढ़ने के लक्षण:  थोड़ी बहुत शुगर बढ़ने पर कोई विशेष लक्षण उत्पन्न नहीं होता. शुगर अधिक बढ़ने पर पेशाब अधिक आना, प्यास अधिक लगना, कमजोरी व थकान लगना, जल्दी इंफैक्शन्स होना व उनका ठीक न होना, वजन कम होना आदि लक्षण हो सकते हैं. शुगर बढ़ने से खाल और जननांगों में फंगल इन्फेक्शन भी अधिक होते हैं.

शुगर कम होने के लक्षण :  जो लोग डायबिटीज़ की दवा नहीं खा रहे हैं वह चाहें कितने समय तक चीनी बिलकुल न खाएँ तो भी उनकी शुगर कम नहीं होती है. जो लोग शुगर की दवा लेते हैं या इन्सुलिन लगाते हैं वे यदि समय से भोजन न करें,  निर्धारित मात्रा से कम भोजन करें, उन्हें उल्टी व दस्त हो जाएं, वे सामान्य से अधिक व्यायाम कर लें या अधिक मात्रा में इन्सुलिन व दवा उनके अन्दर पहुँच जाय तो उनकी शुगर कम होने का ख़तरा होता है. शुगर कम होने पर एकदम घबराहट होने लगना, चक्कर महसूस होना, तेज भूख लगना, हाथ पैर काँपना, ठन्डे पसीने आना, इत्यादि लक्षण हो सकते हैं. और अधिक शुगर कम होने पर रोगी को बेहोशी आने लगती है या वह असामान्य व्यवहार करने लगता है. ऐसे में रोगी को चीनी या ग्लूकोज़ देना चाहिए व शुगर टैस्ट अवश्य करा लेनी चाहिए. यदि डायबिटीज़ का कोई रोगी बेहोशी की सी हालत में मिले तो उसे फ़ौरन हास्पिटल पहुंचाना चाहिए. बेहोश व्यक्ति के मुँह में कभी भी पानी या ग्लूकोज़ आदि नहीं डालना चाहिए बल्कि ड्रिप द्वारा ग्लूकोज़ देना चाहिए.

डायबिटीज़ के रोगियों के लिए परहेज :    डायबिटीज़ के रोगियों के लिए यह जरूरी है कि वे तय समय पर भोजन की तय मात्रा लें. आवश्यकता से अधिक भोजन करने से शुगर अधिक हो जाती है व वजन बढ़ता है. अधिक वजन वाले रोगियों में डायबिटीज़ कंट्रोल करना अधिक कठिन होता है. निर्धारित मात्रा से कम भोजन करने से शरीर कमजोर होता है व शुगर कम होने का ख़तरा होता है. डायबिटीज़ के रोगियों को व्रत नहीं रखना चाहिए. यदि डायबिटीज़ के रोगी को दस्त या उल्टी हो जाएं या बुखार इत्यादि के कारण वह ठीक से खाना न खा पा रहा हो तो उसे डाक्टर की सलाह लेकर शुगर की दवा कम कर देनी चाहिए.

व्यायाम : डायबिटीज़ के रोगी को नियमित व्यायाम करना बहुत जरूरी है – जैसे तेज चाल से चलना, दौड़ लगाना, जॉगिंग करना, साइकिल चलाना, एरोबिक व्यायाम करना, बैड मिन्टन जैसे खेल खेलना, तैरना, डांस करना आदि. दिन भर में चालीस मिनट व्यायाम करना पर्याप्त रहता है. योग व प्राणायाम शरीर को कुल मिला कर फायदा पहुंचाते हैं पर डायबिटीज़ कंट्रोल करने के लिए व्यायाम अधिक आवश्यक है. डायबिटीज़ का मरीज़ चाहे कितनी दवा खा ले या इन्सुलिन लगा ले, यदि वह व्यायाम नहीं करता तो शुगर कंट्रोल नहीं हो सकती.

भोजन : भोजन को निम्चानलिखित के अनुसार चार भागों में बांटना आवश्यक है. भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स व चिकनाई का उचित संतुलन होना चाहिए. भोजन का समय निश्चित होना चाहिए और मात्रा भी निश्चित होनी चाहिए. बहुत से लोग केवल दो बार खाना खाते हैं. जब वे अधिक खाना खाते हैं तो उनकी शुगर बढ़ जाती है और बीच के गैप में उनकी शुगर कम होने का ख़तरा रहता है. ऐसे लोगों को जितना खाना वे दो बार में खाते हैं उतने ही भोजन को चार हिस्सों में बाँट कर खाना चाहिए. आम भारतीय भोजन (विशेषकर शाकाहारी भोजन) में प्रोटीन की मात्र बहुत कम होती है. डायबिटीज के मरीज को प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ बढ़ा कर कार्बोहाइड्रेट और चिकनाई कम कर देनी चाहिए.  जिन लोगों का वजन अधिक है उन्हें दिन में तीन बार गेहूँ चना मिली हुई एक एक रोटी खाना चाहिए. जिन का वजन कम है या जो लोग अधिक मेहनत करते हैं वे दो दो रोटी खा सकते हैं.  तीनों समय के भोजन में कार्बोहाइड्रेट एवं चिकनाई की मात्रा कम एवं प्रोटीन की मात्रा अधिक लेना चाहिए.

सुबह नाश्ता (8 से 9 बजे) :  कार्बोहाइड्रेट के लिए ब्रेड, रोटी, पराठा, दलिया, सूजी, पोहा, उपमा, कार्न फ्लेक्स इत्यादि (कम मात्रा में) व प्रोटीन के लिए दूध, मठ्ठा, अंडा, दाल, पनीर, चना आदि (अधिक मात्रा में) लेना चाहिए. दाल व चने को उबाल कर भी खा सकते हैं और अंकुरित कर के भी. घी, तेल, या मक्खन कम लेना चाहिए. बिना चीनी की चाय व कॉफ़ी शुगर को नहीं बढ़ातीं लेकिन एसिडिटी बहुत करती हैं. नीबू पानी, दूध या मठ्ठा आदि ले सकते हैं. गेहूँ में शुगर के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता इसलिए आटे और मैदा का प्रयोग कम से कम करना चाहिए.

दोपहर का खाना (1 से 2 बजे) : कार्बोहाइड्रेट के लिए रोटी या पराठा कम से कम मात्रा में लें. प्रोटीन के लिए दाल, चना, राजमा, लोबिया, मटर, बड़ियाँ, कढ़ी, दही, मठ्ठा, पनीर, मीट, अंडा इत्यादि अधिक मात्रा में ले सकते हैं. फल व सब्जियां नीचे लिखे अनुसार लें. गेहूँ के आटे में से चोकर न निकालें व उस में कम से कम चौथाई हिस्सा चने का आटा मिलाएँ. चने का आटा या बेसन जितना अधिक मिला सकें उतना अच्छा है. गेहूँ के स्थान पर मक्का या बाजरे का आटा भी प्रयोग कर सकते हैं.

शाम को हल्का जलपान (5 से 6 बजे) : दूध, मठ्ठा, नमकीन बिस्किट, भुने चने, मूंगफली, पॉप कॉर्न, रोस्टेड नमकीन, फल इत्यादि. नारियल पानी, शुगरफ्री लस्सी, चने या जौ का सत्तू आदि ले सकते हैं.

रात का खाना (9 से 10) : दोपहर के खाने जैसा ही होना चाहिए. रात को सोते समय दूध ले सकते हैं.

बिलकुल नहीं लेना है : चीनी, ग्लूकोज़, गुड़, शहद, मिठाई, चाकलेट, आइसक्रीम, केक, पेस्ट्री, कोल्ड ड्रिंक, मिल्क मेड, डब्बा बंद फल और मुरब्बे, ग्लूकोज़ बिस्किट, जूस इत्यादि. आम, केला, अंगूर, चीकू आदि अधिक मीठे फल न लें.

कम लेना है : डबल रोटी, बिस्किट, घी, मक्खन, पकोड़े, समोसे व तली चीजें, कस्टर्ड, चावल, मीठे फल, मेवे, आलू, चुकंदर, अरबी, शकर कंदी, कटहल, भसीड़ा, मूली, गाजर, अचार, सॉस व प्याज. शलजम के अलावा जमीन के नीचे निकलने वाली सभी सब्जियां कम लेनी हैं.  सेब, अमरुद, पपीता, नाशपाती, आडू, खुमानी, संतरा, कीवी आदि फल सौ ग्राम दिन में दो या तीन बार ले सकते हैं. खरबूजा या तरबूज एक बार में दो सौ ग्राम ले सकते हैं. फलों का जूस कभी न पिएं. शुगर फ्री डाल कर कस्टर्ड, खीर, दलिया, सिवई आदि थोड़ी मात्रा में खा सकते हैं. 

अधिक मात्रा में ले सकते हैं : सब्जियों का सूप, जमीन के ऊपर निकलने वाली सब्जियां (जैसे फूल गोभी, बंद गोभी, पालक व अन्य पत्तेदार सब्जियां, सेम व अन्य फलियाँ, टमाटर, लौकी, तुरई, परवल, टिंडा, बैगन, भिन्डी, मिर्च, खीरा, ककडी), सभी दालें, सोयाबीन, चना, राजमा, बड़ी, मशरूम, मलाई निकला हुआ दूध, दही, मठ्ठा आदि. कोल्ड ड्रिंक्स में डाईट पेप्सी, डाईट कोक, नीबू पानी  व शुगर फ्री डाल कर ठंडा दूध या लस्सी ले सकते हैं.

नोट :

  1. अधिक वजन वाले मरीजों को कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें (आटा, मैदा, आलू, चावल) एवं घी, तेल, रिफाइंड व मक्खन बहुत कम लेना होता है. कम वजन वाले मरीज व अधिक शारीरिक श्रम करने वाले लोग इन चीजों को कुछ अधिक मात्रा में ले सकते हैं.
  2.  गेहूं के आटे में से चोकर न निकालें. केवल गेहूं के स्थान पर गेहूं +चना या गेहूं +सोयाबीन का मिक्स आटा अधिक लाभ दायक है.
  3.  शराब का सेवन सभी लोगों को हानि पहुंचाता है. डायबिटीज़ के रोगियों के लिए यह और अधिक हानिकारक है. फिर भी यदि शराब लेना चाहें तो उसकी मात्रा के बारे में डाक्टर से सलाह अवश्य ले लें.
  4.  तम्बाकू, बीडी सिगरेट व पान मसाला आदि डायबिटीज़ को नहीं बढाते हैं पर हृदय, अमाशय व फेफड़ों को अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं. इनसे हार्ट अटैक, फालिज, अल्सर व कैंसर की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
  5. बिना चीनी की चाय या काफी शुगर को नहीं बढ़ाती पर एसिड को अत्यधिक बढ़ाती हैं.                                               

 

        डॉ. शरद अग्रवाल एम डी

 

 

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