टिटेनस एक बहुत खतरनाक रोग है. यह क्लास्ट्रीडियम टेटनाई नामक बैक्टीरिया द्वारा किसी चोट में इन्फैक्शन होने पर होता है. इस बैक्टीरिया के स्पोर्स अधिकतर धूल मिट्टी में पाए जाते हैं. किसी चोट में यदि यह बैक्टीरिया पहुँच जाएं तथा साथ ही उस में पस पड़ जाए तो यह बैक्टीरिया बहुत तेजी से बढ़ते हैं. बढ़ने के साथ ये एक टाक्सिन उत्पन्न करते हैं जो की रक्त के द्वारा रीड की हड्डी में स्थित स्पाइनल कार्ड में पहुँच कर मोटर नर्व्स को उत्तेजित करता है. इससे रोगी को टिटेनस के दौरे पड़ते हैं जिनके दौरान उसकी म्रत्यु हो सकती है.
सामान्यत: लोगों को यह भ्रम होता है कि लोहे की चोट से टिटेनस अधिक होती है. वास्तविकता यह है कि चोट चाहें किसी भी चीज से लगी हो, यदि गहरी हो व उसमे धूल गन्दगी आदि चली जाय तो टिटेनस की संभावना अधिक होती है. चोट के अतिरिक्त कान के इन्फैक्शन, दांत के इन्फैक्शन, एवं महिलाओं में यूटेरस के इन्फैक्शन से भी टिटेनस हो सकती है.
टिटेनस का ईलाज बहुत कठिन है और इस में जान का ख़तरा भी अधिक होता है इसलिए उसके बचाव पर अधिक ध्यान देना चाहिए. कोई भी खुली चोट लगे तो उसे ठीक से साफ़ करके पट्टी करवा लेना चाहिए एवं डॉक्टर की सलाह लेकर ऐन्टीबायोटिक दवा ले लेनी चाहिए. टिटेनस के विरूद्ध शरीर में ऐन्टीबॉडीज़ का निर्माण करने के लिए टिटेनस टाक्साइड के टीके लगाए जाते हैं. बच्चों को 3, 4, 5, महीने, डेढ साल व पांच साल पर लगाए जाने वाले ट्रिपल वैक्सीन में यह टीका शामिल होता है. इसके बाद हर पांच साल बाद केवल टिटेनस वैक्सीन (बूस्टर) लगवाते रहना चाहिए.
गर्भावस्था में महिलाओं को सातवें व आठवें माह में टिटेनस के टीके (टिटेनस टाक्साइड, Tetvac) अवश्य लगवा लेना चाहिए. गर्भावस्था में टिटेनस के टीके लगवाने से नवजात शिशु को टिटेनस (Tetanus neonatorum) होने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है. जिन लोगों को बचपन में टीके नहीं लगे हैं उन्हें टिटेनस का एक टीका अभी , फिर एक महीने बाद और छ: महीने बाद लगवा लेना चाहिए. इसके बाद हर पाँच साल बाद बूस्टर डोज लगवाना चाहिए. इस बीच में अगर किसी को कोई गंभीर चोट लग जाए तो उस समय भी एक टीका लगवा लेना चाहिए.
टिटेनस वैक्सीन लगवाने के बाद शरीर में ऐन्टीबाडीज बनने में समय लगता है. जिन चोटों में टिटेनस का खतरा अधिक होता है उन में वैक्सीन के साथ तुरन्त बचाव के लिए टिटेनस ऐन्टीबाडीज का इन्जेक्शन भी लगाते हैं. पहले केवल ए टी एस (ATS) का टीका उपलब्ध था जो कि घोड़े के खून से बनता था. इसमें ऐलर्जी और रिएक्शन होने की संभावना अधिक होती है. अब मानव रक्त से बना ह्यूमन टिटनेस इम्यूनोग्लोब्युलिन का टीका उपलब्ध है. यह बहुत कारगर है तथा इससे रिएक्शन नहीं होता, हांलाकि यह थोड़ा महंगा है. डॉ० शरद अग्रवाल एम डी