हमारी छोटी आंत और बड़ी आंत के जोड़ पर अपेंडिक्स नाम की एक संरचना होती है. घास पत्ते खाने वाले चौपाए जानवरों (गाय, भैंस, बकरी, घोड़ा इत्यादि) में यह काफी बड़ी होती है और सेलुलोज़ को पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मनुष्य के पाचन तंत्र में इसका कोई योगदान नहीं होता और यह एक अनुपयोगी अंग (vestigial organ) है. इस में होने वाली सूजन या इंफेक्शन को अपेंडिसाइटिस (appendicitis) कहते हैं.
हमारे देश में अपेंडिसाइटिस पश्चिमी देशों के मुकाबले कम होती है. ऐसा माना जाता है कि भोजन में रेशे की मात्रा कम होने से अपेंडिसाइटिस की संभावना बढ़ जाती है. अपेंडिसाइटिस एक बहुत महत्वपूर्ण बीमारी है क्योंकि सही इलाज न होने पर इसमें बहुत से कॉन्प्लिकेशन होने का डर होता है और मरीज की जान भी जा सकती है.
लक्षण : शुरुआत में पेट में रुक रुक कर दर्द होता है जो कि पेट के ऊपरी हिस्से या नाभि के चारों ओर हो सकता है. आमतौर पर दर्द शुरू होने के बाद उल्टियां भी होती हैं. भूख लगना बिल्कुल बंद हो जाती है. 12 से 24 घंटे में यह दर्द पेट के निचले हिस्से में दाहिनी ओर होने लगता है. इस स्टेज पर होने वाला दर्द हिलने डुलने, झटका लगने, खांसने या छींकने से बढ़ता है. दर्द के स्थान पर दबाने से और दबाने के बाद छोड़ने से अत्यधिक दर्द होता है. सामान्यत: अपेंडिसाइटिस में दस्त नहीं होते लेकिन यदि अपेंडिक्स मलाशय तक पहुँची हुई हो दर्द के साथ बार बार लैट्रीन और आंव आ सकती है. इसी प्रकार सामान्यतः अपेंडिसाइटिस में पेशाब से संबंधित लक्षण नहीं होते लेकिन यदि अपेंडिक्स मूत्राशय को छू रही हो तो पेशाब में जलन, दर्द और बार-बार पेशाब आने जैसे लक्षण हो सकते हैं.
48 से 72 घंटे बाद अपेंडिक्स के आसपास की आंत की झिल्ली (mesentery) और आंतें अपेंडिक्स से चिपक जाती हैं और उस स्थान पर एक गांठ जैसी बन जाती है (appendicular lump).
छोटे बच्चों बूढ़े लोगों और गर्भवती महिलाओं में अपेंडिसाइटिस के लक्षण कुछ फर्क हो सकते हैं. इन लोगों में एपेंडिसाइटिस अधिक खतरनाक भी होती है.
जांचें : अपेंडिसाइटिस की संभावना होने पर खून की सामान्य जांचें TLC, DLC, ESR, पेशाब की रूटीन जांच और पेट का अल्ट्रासाउंड कराते हैं. यदि TLC, DLC बढ़ा हुआ होता है तो इससे यह मालूम पड़ता है कि शरीर में कहीं इंफेक्शन है. पेशाब की जांच की यदि नार्मल हो तो उससे यह मालूम होता है कि गुर्दे में इंफेक्शन या पथरी होने की संभावना कम है अर्थात अपेंडिसाइटिस की संभावना अधिक है. अल्ट्रासाउंड में कभी कभी अपेंडिक्स की सूजन दिख जाती है या कभी कभी उस स्थान पर आँतों के बीच में थोड़ा सा तरल पदार्थ दिख जाता है. अल्ट्रासाउंड से उन बीमारियों के विषय में भी जानकारी मिल सकती है जो अपेंडिसाइटिस जैसे लक्षण उत्पन्न करती हैं जैसे गुर्दे की पथरी एवं इंफेक्शन, ओवरी एवं ट्यूब्स का इन्फेक्शन, आँतों में गांठें, आँतों की टीबी, आंत का उलझना, आंत का बर्स्ट होना आदि. कुछ मरीजों में डायग्नोसिस के लिए पेट के सीटी स्कैन की आवश्यकता हो सकती है.
उपचार : अपेंडिसाइटिस का सबसे अच्छा इलाज है शीघ्रातिशीघ्र ऑपरेशन. दर्द आरंभ होने के 48 घंटे के भीतर ऑपरेशन हो जाना चाहिए. यदि अपेंडिसाइटिस की डायग्नोसिस बनने में देर हो जाए लेकिन उस समय तक अपेंडिक्स में गांठ (lump) न बनी हो तो कुछ टाइम बाद भी ऑपरेशन कर सकते हैं. यदि अपेंडिक्स बर्स्ट हो गई हो तो तुरंत ऑपरेशन करना आवश्यक होता है. यदि अपेंडिक्स में गांठ बन गई हो तो ऑपरेशन न करके अच्छी एंटीबायोटिक दवाएं देकर उस समय इंफेक्शन को कंट्रोल करते हैं और छह से बारह हफ्ते के बाद ऑपरेशन प्लान करते हैं.
कॉन्प्लिकेशंस : यदि समय रहते अपेंडिक्स का ऑपरेशन नहीं किया गया तो अपेंडिक्स के बर्स्ट होने (फटने) का डर होता है. कभी कभीअपेंडिक्स में फोड़ा (appendicular abscess) भी बन जाता है जिस से पस निकल कर पेट में इकठ्ठा होता रहता है. इन दोनों अवस्थाओं में ऑपरेशन करना आवश्यक होता है.
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी