आधुनिक युग की सबसे महत्वपूर्ण बीमारियों में से एक है अवसाद अर्थात मेंटल डिप्रेशन. अवसाद का अर्थ है गहरी उदासी जो कि अक्सर बिना किसी कारण के होती है. सामान्यत: हम सभी लोगों की मनस्थिति हमेशा एक सी नहीं रहती. हम कभी प्रसन्न होते हैं, कभी उदास होते हैं व कभी तटस्थ रहते हैं. जैसे परीक्षा में फेल होने पर विद्यार्थी का अत्यधिक उदास होना व अच्छे अंक मिलने पर प्रसन्न होना बिलकुल स्वभाविक है. पर हम सभी यह अनुभव करते हैं कि कभी कभी बिना बात के भी हमारा मन खिन्न होता है या बहुत छोटी सी बात पर बहुत देर तक मूड खराब रहता है. हम यह भी देखते हैं कि कुछ लोग स्वभाव से बहुत खुशमिजाज व कुछ लोग काफी चिड़चिडे होते हैं.
मस्तिष्क के अन्दर ऐसी कौन सी रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं जिनसे मनुष्य दुःख या सुख महसूस करता है यह जानने का वैज्ञानिक लगातार प्रयास कर रहे हैं. वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि मस्तिष्क के कुछ भागों में कुछ विशेष रसायनों (neurochemicals) के कम हो जाने से मनुष्य के अन्दर उदासी बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में उसके मन में निराशा भरे विचार आने लगते है व उसको जीवन बेकार लगने लगता है. कुछ लोग इतने अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं कि वे आत्महत्या तक करने की सोचने लगते हैं. आत्महत्या करने वाले लोगों के पिछले जीवन का अध्यन करने पर ज्ञात होता है कि उनमे से अधिकतर लोग डिप्रेशन से ग्रस्त थे.
डिप्रेशन के लक्षण :
- मन में उमंग का न होना व अधिकतर समय मन उदास रहना.
- आनंद दायक व मनोरंजक कार्यों में रुचि न लेना.
- यह महसूस होना कि जीवन बेकार है.
- मरने का विचार मन में आना या आत्महत्या के विषय में सोचना.
- नींद अधिक आना या कम आना. बीच रात में या सुबह जल्दी आँख खुल जाना.
- आत्म ग्लानि का भाव मन में रहना.
- भूख कम हो जाना. (कभी कभी भूख अत्यधिक बढ़ भी सकती है).
- वजन कम होना या बढना.
- भाँति भाँति के दर्द व शारीरिक कष्ट होना जिनका कोई स्पष्ट कारण न हो.
- बहुत से लोग डायबिटीज, ह्रदय रोग या कोई गंभीर रोग होने पर भी ठीक से इलाज व परहेज नहीं करते या सिगरेट शराब का सेवन नहीं छोड़ते, यह जानते हुए भी कि इससे बहुत हानि है. यह भी डिप्रेशन का ही एक रूप है.
- कई बार स्वभाव से चिडचिडा होना व झगड़ालू होना भी डिप्रेशन का ही लक्षण होता है.
- अत्यधिक पूजा पाठ व धार्मिक सोच में लिप्त होना भी कभी कभी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं. डिप्रेशन से ग्रस्त रोगी यह सोचते हैं कि वे बहुत खराब परिस्थितियों में रह रहे हैं और उनकी परिस्थितियाँ ही उनकी उदासी और चिडचिडेपन का कारण हैं. वे यह मानने को तैयार नहीं होते कि उन्हें कोई बीमारी है. वास्तविकता यह है कि उनकी परिस्थितियाँ इतनी खराब नहीं होती हैं. डिप्रेशन के कारण उनका दृष्टि कोण नकारात्मक हो जाता है. जैसे हम हरे रंग का चश्मा लगा लें तो हमें हर चीज हरी दिखाई देती है, वैसे ही डिप्रेशन के रोगियों को हर बात का नकारात्मक (negative) पहलू दिखाई देता है. यदि कोई गिलास पानी से आधा भरा हुआ है तो डिप्रेशन का रोगी यह सोच कर संतुष्ट नहीं होता कि गिलास आधा भरा है यह खाली के मुकाबले कितना अच्छा है. वह यह सोच कर दुखी होता रहता है कि हाय, यह आधा खाली है. वह हर बात में यही अर्थ निकालता है कि जीवन बेकार है. डिप्रेशन वैसे तो मनुष्य के अन्दर से ही उत्पन्न होता है लेकिन साथ में यदि परिस्थितियाँ भी ख़राब हों तो यह और बढ़ सकता है. डिप्रेशन के रोगी अक्सर चिडचिडे हो जाते हैं और दूसरों से खराब व्यवहार करते हैं. दूसरे लोग भी उनसे वैसा ही व्यवहार करते हैं या उनसे दूर भागने लगते हैं जिससे वे और अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं. अन्य लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि रोगी डिप्रेशन की बीमारी के कारण ऐसा कर रहा है और उसे इलाज व सहानभूति की जरूरत है.
डिप्रेशन के इलाज में सबसे बढ़ी कठिनाई इस बात से होती है कि अक्सर रोगी व कुछ सम्बन्धी यह मानने को तैयार नहीं होते कि यह बहुत महत्व पूर्ण बीमारी है जिसका इलाज बहुत आवश्यक है. इस प्रकार की परिस्थितियों से परिवार में बहुत तनाव उत्पन्न हो जाता है और रोगी के साथ परिवार के अन्य लोग भी अत्यधिक कष्ट उठाते हैं. यदि दुर्भाग्यवश ऐसा रोगी आत्म ह्त्या कर ले तो पूरे के पूरे परिवार तबाह हो जाते हैं.
जो लोग अत्यधिक उदासी के शिकार हैं या जिन्हें दुनिया में सब कुछ खराब ही खराब नजर आता है. उन्हें यह सोचना चाहिए कि वे शायद डिप्रेशन रोग से ग्रस्त हैं. उन्हें यह मालूम होना आवश्यक है कि उनकी पारिस्थितियाँ खराब नहीं हैं बल्कि डिप्रेशन के कारण उनका नजरिया गलत हो गया है. यदि वे ठीक से इलाज करा लें तो वे स्वयं भी सुखी हो सकते हैं व उनके परिवार में भी खुशियाँ लौट कर आ सकती हैं. विशेष कर बच्चों के भविष्य पर इसका अत्यधिक प्रभाव पढता है.
डिप्रेशन का इलाज कोई भी मानसिक रोग विशेषज्ञ या फिजिशियन कर सकता है. इसमें रोगी को दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है – एक तो यह कि दवाओं का प्रभाव दो तीन सप्ताह बाद आना आरम्भ होता है. अर्थात दवा आरम्भ करते ही तुरंत लाभ नहीं होता. दूसरा यह कि ठीक होने के बाद भी दवाएं काफी लम्बे समय तक खानी होतीं हैं. कभी कभी यह दवाएं जीवन पर्यन्त भी खाना पड़ सकती हैं. आत्महत्या वाले विचार मन से निकलने में काफी समय लगता है, इसलिए इलाज के शुरू के दिनों में मरीज पर बहुत करीबी निगाह रखना आवश्यक होता है. परिवार के सभी सदस्यों को यह समझना आवश्यक है कि डिप्रेशन के रोगी को इलाज के साथ सहानुभूति की भी आवश्यकता है. यदि रोगी खराब व्यवहार करता है तो उन्हें उत्तेजित नहीं होना चाहिए. कुछ समय दवा खाने के बाद डिप्रेशन के रोगियों के व्यवहार में आश्चर्य जनक बदलाव आता है. डिप्रेशन एक ऐसी समस्या है जिसका प्रभाव सारे परिवार पर पड़ता है, इसलिए परिवार के सभी लोगों को इसके निदान में सहयोग करना चाहिए.
डिप्रेशन के रोगियों को किसी भी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए. नशा डिप्रेशन को बढाता है व डिप्रेशन नशे की प्रवृत्ति को बढ़ाता है. दवा के अतिरिक्त डिप्रेशन के रोगियों को हलके फुल्के खेलों व संगीत आदि में मन लगाना चाहिए. उन्हें ऐसे लोगों के साथ रहना चाहिए जो खुश मिजाज हों व सकारात्मक सोच रखते हों. योग्य चिकित्सक से जांच करवा कर यदि कोई अन्य बीमारी (ह्रदय रोग, डायबिटीज, खून की कमी, थायराइड रोग आदि) साथ में हों तो उनका इलाज अवश्य करवाना चाहिए. डिप्रेशन का इलाज काफी लम्बे समय तक करना पड़ता है. कोई भी योग्य फिजीशियन या मानसिक रोग विशेषज्ञ इसका इलाज कर सकता है. अधिकतर मरीजों में डिप्रेशन ठीक होने के बाद दवाएं छुड़वाने की कोशिश की जाती है. दवाएं बंद करने के बाद इस बात का खतरा हमेशा रहता है कि मरीज़ धीरे धीरे दोबारा डिप्रेशन में जा सकता है. ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर के दोबारा इलाज शुरू करना चाहिए. बहुत से मरीजों को जीवन भर दवाएं खानी पड़ती हैं.
उपरोक्त विवरण में उन मरीजों की चर्चा की गई है जिन्हें केवल डिप्रेशन होता है. एक अन्य बीमारी होती है मैनिक डिप्रेसिव साइकोसिस (Manic depressive psychosis, Bipolar illness) जिसमें रोगी को कुछ दिन अत्यधिक डिप्रेशन होता है व कुछ दिन मेनिया (mania). मेनिया के दौरान मरीज़ अधिक बोलता है, अधिक खुश होता है, कम सोता है, अधिक काम करता है, अधिक खा सकता है, अधिक सेक्स कर सकता है, अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझता है, झगड़ा मारपीट कर सकता है, बड़े बड़े निर्णय ले सकता है जिनमें उसे बाद में नुकसान हो सकता है इत्यादि. इस बीमारी का इलाज अलग दवाओं द्वारा होता है एवं दवाए जीवन भर खानी होती हैं.
डा. शरद अग्रवाल एम डी
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