हरपीस नामकी बीमारी एक विशेष वायरस वेरीसेला ज़ोस्टर द्वारा तंत्रिकाओं (nerve roots) का इंफेक्शन होने से होती है। चिकन पॉक्स (छोटी माता) नामक बीमारी भी इसी वायरस से होती है। जिन लोगों को चिकन पॉक्स निकल चुकी होती है उनके शरीर की नसों के सेंसरी नर्व रूट्स में यह वायरस सुप्तावस्था में पड़ा रहता है। कई सालों बाद कभी भी अनुकूल परिस्थिति मिलने पर यह वायरस सक्रिय हो जाता है और शरीर के किसी एक हिस्से की सेंसरी नर्व रूट में इंफेक्शन कर देता है। वह नर्व रूट त्वचा के जितने हिस्से को सप्लाई करती है उसमें छत्तों के रूप में छाले निकल आते हैं और अत्यधिक दर्द एवं जलन महसूस होती है।
हरपीस की बीमारी को सामान्य लोग मकड़ी फैलना समझते हैं। हरपीस की शुरुआत में छाले निकलने से पहले उतने हिस्से में दर्द व जलन आरंभ हो जाती है। फिर उसी हिस्से में लाल लाल चकते पड़ते हैं और उसके बाद उन्हीं चकत्तों में बहुत से छाले निकल आते हैं। दर्द की शुरुआत में यह समझ में नहीं आता है कि दर्द क्यों हो रहा है। उस समय बहुत से लोग उतने हिस्से की सिकाई करते हैं और दर्द कम करने की क्रीम आदि लगाते हैं। छाले निकलने पर वे समझते हैं कि लगाने वाली दवा रिएक्शन कर गई है।
हरपीस की बीमारी शरीर की एक ही साइड में होती है। यह सीना, पेट, सर या चेहरे के आधे हिस्से अथवा एक किसी हाथ या पैर में हो सकती है। हरपीस के छाले बीच की लाइन क्रॉस नहीं करते।
हरपीस के छाले ठीक होने के बाद भी बहुत दिनों तक इसका दर्द हो सकता है। हरपीस को जितनी जल्दी डायग्नोस कर लिया जाए एवं जितना शीघ्र इसका इलाज शुरू कर दिया जाए उतनी ही जल्दी यह ठीक होती है और उतना ही हरपीज के बाद होने वाला दर्द (पोस्ट हरपीटिक न्युरैल्जिया) कम होता है। माथे व चेहरे पर होने वाली हरपीस अधिक खतरनाक हो सकती है क्योंकि इससे आँख की रौशनी पर असर पड़ सकता है।
हरपीज के इलाज के लिए विशेष एंटीवायरस दवाएं एसाइक्लोविर व वेलासाइक्लोविर उपलब्ध हैं। इनको 5 से 7 दिन तक खाना होता है। छालों पर लगाने के लिए एसाइक्लोविर क्रीम दिन में तीन बार लगाते हैं। दर्द की तीव्रता को कम करने के लिए दर्द निवारक दवाओं का प्रयोग करते हैं। हरपीस के बाद के दर्द को कम करने के लिए नसों का दर्द कम करने वाली विशेष दवाएं दी जाती हैं। यदि आँख पर असर हो तो नेत्र विशेषज्ञ से राय लेनी चाहिए।