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सांस की घुटन

बहुत से मरीजों को ऐसा लगता है कि उन्हें सांस पूरी अंदर नहीं आ रही है.  इससे उन्हें बहुत घबराहट होने लगती है. वह मुंह खोलकर जोर से सांस लेते हैं या जम्हाई लेने की कोशिश करते हैं. फिर भी उन्हें लगता है कि सांस पूरी नहीं आ रही है. इससे वे बहुत घबरा जाते हैं. घबराहट के कारण उनके हाथ पैरों और होठों में झनझनाहट होने लगती है और हाथ पैर ठंडे होने लगते हैं. कभी कभी हाथ टेढे भी होने लगते हैं. मरीज को ऐसा लगता है कि वह अब नहीं बचेगा. ऐसी स्थिति में मरीज के साथ परिवार के लोग भी बहुत घबरा जाते हैं. यदि ऐसा व्यक्ति अकेला रह रहा हो या यात्रा कर रहा हो तो वह और अधिक डर जाता है.

योग्य एवं अनुभवी चिकित्सक ऐसे मरीज को देखकर कौन समझ लेते हैं कि मरीज को सांस का कोई रोग नहीं है तथा उसे जितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता है उससे अधिक ही पहुंच रही है. पल्स ऑक्सीमीटर (pulse oxymeter) नाम की एक छोटी सी मशीन से इसे आसानी से कंफर्म किया जा सकता है पर मरीज को इसका विश्वास दिलाना बहुत कठिन होता है.  उसे जितनी ज्यादा घबराहट होती है उसकी परेशानी  उतनी ही बढ़ती है.  इस बीमारी के इलाज के लिए मरीज को घबराहट कम करने की दवाई देनी पड़ती है.  मरीज को कोई खतरा नहीं होता लेकिन उसका डर कम करने के लिए कभी-कभी उसे हॉस्पिटल में भर्ती भी करना पड़ता है.  यह परेशानी बार-बार ना हो इसके लिए मरीज को यह समझाना आवश्यक है यह क्यों होती है और यह विश्वास भी जगाना आवश्यक है कि उसे सांस की कोई बीमारी नहीं है और उसे कोई खतरा नहीं है.  जब तक मरीज की समझ में यह ना आ जाए वह ठीक नहीं हो सकता.

दो बड़े सामान्य कारण हैं जिससे किसी व्यक्ति को ऐसा लगना शुरु होता है कि उसे पूरी सांस नहीं आ रही है.  पहला कारण है आमाशय में सूजन जोकि सामान्यता एसिडिटी के कारण होती है.  खानपान में खराबी, चाय, मिर्च, खट्टी चीजें, मसाले, जूस, तंबाकू आदि का सेवन करने के कारण हमारे देश में यह बहुत ही आम समस्या है.  दूसरा है सांस की नलियों में हल्की सिकुड़न या सूजन जो कि प्रदूषण व  एलर्जी के कारण बहुत से लोगों को हो रही है.  मरीज की घबराहट दूर करने के लिए इन कारणों पर नियंत्रण करना आवश्यक है. जब भी मरीज को ऐसा लगता है कि उसे सांस नहीं आ रही है तो उसके अवचेतन मस्तिष्क में यह डर बैठ जाता है कि अभी सांस नहीं आई तो क्या होगा. जैसे-जैसे उसकी घबराहट बढ़ती है वैसे वैसे सांस पूरी ना आने की फीलिंग बढ़ती जाती है.

पीक फ्लो मीटर नाम के साधारण से इंस्ट्रूमेंट से यह तुरंत पता लगाया जा सकता है कि मरीज की सांस की नलियों में सिकुड़न है या नहीं.  यदि ऐसा है तो इन्हेलर द्वारा इसे कंट्रोल किया जा सकता है.  अनुभवी डॉक्टर मरीज़ के पेट पर हाथ रखकर तुरंत मालूम कर लेते हैं कि उसके आमाशय में सूजन है या नहीं.  इसके लिए किसी जांच की आवश्यकता नहीं होती.  एसिडिटी व आमाशय में सूजन को दवाओं व परहेज द्वारा ठीक किया जा सकता है.

यदि मरीज को साथ में अन्य कोई बीमारी जैसे ब्लड प्रेशर,  डायबिटीज, खून की कमी, इओसिनोफिलिया कैल्शियम की कमी या थायराइड रोग आदि  हो तो उनका इलाज भी आवश्यक है.  यदि मरीज के मन में किसी बीमारी का संशय हो तो उसकी पूरी जांच अवश्य करा देनी चाहिए जिससे मरीज के मन की घबराहट निकल जाए.

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