Lungs & Breath

पुरानी खांसी ( Chronic Cough )

खांसी एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम फेफड़ों व सांस की नलियों में बनने वाले बलगम एवं सांस की नलियों में बाहर से पहुंचने वाले पदार्थों को बाहर निकालते हैं. लेकिन यदि यही  खांसी बहुत अधिक होने लगती है तो परेशानी का कारण बन जाती है. खांसते-खांसते मरीज के सीने व पेट में दर्द होने लगता है, वह थक कर निढाल हो जाता है और रात में सो नहीं पाता. अधिक खांसी से हर्निया भी  हो सकता है. कभी-कभी बहुत जोर से खांसी आने पर व्यक्ति को क्षणिक बेहोशी (cough syncope) हो सकती है.

खांसी अपने आप में कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक लक्षण है जिसके बहुत सारे कारण होते हैं. खांसी का इलाज भी उसके कारण के अनुसार ही किया जाता है. कुछ कारण ऐसे होते हैं जिनमें खांसी 10 – 15 दिन में अपने आप या इलाज द्वारा कम हो जाती है – जैसे सामान्य खांसी जुकाम, वायरल फीवर, निमोनिया इत्यादि. बहुत से कारण ऐसे हैं जिनमें खांसी लंबे समय तक   रहती है. यदि खांसी 8 हफ्ते से अधिक रहती है तो इसे पुरानी खांसी (chronic cough) कहते हैं.

इसके कारण हैं टी.बी.,  दमा, क्रॉनिक ब्रांकाइटिस, पुराना जुकाम जो हलक में गिरता हो, एसिड का अधिक बनना  एवं खाने की नली में आना, सांस की नली या फेफड़े में ट्यूमर या कैंसर, इओसिनोफिलिया, दिल की कुछ बीमारियां जैसे वाल्व का सिकुड़ना व हार्ट फेलियर आदि.  ब्लड प्रेशर की दवा जैसे रेमिप्रिल आदि  से भी कुछ लोगों को लंबे समय तक सूखी खांसी रह सकती है. वायरल ब्रोंकाइटिस और काली खांसी इत्यादि भी लंबे समय तक चलती है पर यह आमतौर पर 8 हफ्ते से कम में ठीक हो जाती है. दमे  के अधिकतर मरीजों को खासी के साथ सांस भी फूलती है  पर कुछ मरीजों को केवल खांसी भी हो सकती है. ऐसे में कंप्यूटर द्वारा साँस की जांच (PFT) कर के इसको डायग्नोस किया जा सकता है. कुछ लोगों को एक साथ दो या तीन कारण से भी खांसी हो सकती है.

यदि किसी को लंबे समय से खांसी हो तो उस का कारण जानना आवश्यक होता है. लंबे समय तक चलने वाली खांसी के मुख्य कारण इस प्रकार हैं –

 फेफड़ों की टी.बी.  में मरीज को खांसी के साथ बुखार रहता है जो कि शाम को बढ़ता है. भूख बहुत कम हो जाती है, वजन कम होने लगता है, खांसी में बलगम आता है व कभी कभी खून भी आ सकता है. फेफड़ों के एक्सरे एवं बलगम की जांच से इसको कंफर्म करते हैं.

क्रॉनिक ब्रांकाइटिस  अधिकतर सिगरेट पीने वालों में होती है. शुरू में खांसी के साथ हल्का बलगम आता है. फिर धीरे धीरे सांस फूलने लगती है.  जाड़ों में परेशानी बढ़ जाती है. एक्सरे में बीमारी काफी बढ़ने के   बाद दिखाई देती है. कंप्यूटर द्वारा फेफड़ों की जांच (PFT) से बीमारी की अवस्था के बारे में कुछ जानकारी मिलती है.

दमा  के मरीज को कुछ चीजों से एलर्जी होती है जिनके संपर्क में आने से सांस की नली में  सिकुड़न व  सूजन हो जाती है. इससे उसे बहुत अधिक खांसी होती है व  सांस फूलती है. दवाओ  द्वारा अटैक को कंट्रोल करने के बाद मरीज लगभग नॉर्मल हो जाता है. दमे के बहुत से मरीजों को एलर्जी वाला जुकाम भी होता है. कुछ मरीजों को   सांस  नहीं फूलती व केवल खांसी ही होती है. खून की जांच में अधिकतर मरीजों को हल्का इओसिनोफिलिया मिलता है. केवल लक्षणों के आधार पर दमे  की डायग्नोसिस की जा सकती है. कंप्यूटर द्वारा PFT की जांच करके इसे कंफर्म कर सकते हैं

एसिडिटी  खाना पचाने के लिए आमाशय में एसिड बनता है. यही एसिड यदि वापस खाने की नली में आने लगे तो कुछ लोगों को खांसी पैदा करता है. आजकल खानपान की खराबी के कारण एसिडिटी की बीमारी बहुत कॉमन है इसलिए इसके कारण होने वाली खांसी भी अक्सर देखने को मिलती है. इस तरह की खांसी अक्सर रात में सोते समय अधिक होती है.

नजला  हमारे नाक के छेद पीछे हलक  में खुलते हैं. यदि किसी को जुकाम के कारण हलक में नजला गिरता हो तो उससे खांसी पैदा हो सकती है. आजकल प्रदूषण के कारण एलर्जी बहुत कॉमन है. एलर्जी वाले जुकाम या नाक में साइनस इन्फेक्शन के लंबे समय तक रहने से भी इस तरह की खांसी हो सकती है. इससे अजीब तरह की आवाज वाली छोटी-छोटी खांसी होती है.

फेफड़ों का ट्यूमर व कैंसर  यह धूम्रपान करने वालों में अधिक होता है. इस में बहुत अधिक खांसी होती है जिस में कभी कभी खून भी आ सकता है. कुछ मरीजों को इसके कारण निमोनिया हो जाता है तो निमोनिया के लक्षण दिखाई देते हैं. कुछ मरीजों को सीने, कंधे या बांह में अधिक दर्द होता है.

हृदय रोग    इसमें मरीज को सांस फूलने के साथ खांसी होती है. लेटने एवं चलने पर अधिक सांस फूलती है व अधिक खांसी  होती है. कुछ मरीजों को सीने  में धड़कन व  एंजाइना की शिकायत भी हो सकती है.  एक्स-रे ईसीजी व इकोकार्डियोग्राफी द्वारा हृदय रोग की डायग्नोसिस की जाती है.  हृदय रोग का  इलाज करने पर खांसी भी कम हो जाती है.

रेमिप्रिल जैसी दवाओं से खांसी  ये  दवाएं ब्लड प्रेशर व हार्ट फेल्यर  के इलाज में प्रयोग होती हैं. कुछ मरीजों को इनके खाने से विशेषकर रात के समय गले में फंदे लग कर सूखी खांसी उठती है. यह दवाएं बंद करने के कुछ समय बाद खांसी आना बंद हो जाती है.

काली खांसी   यह एक विशेष बैक्टीरिया द्वारा इन्फेक्शन होने से होती है. यह बच्चों में ज्यादा होती है. इसमें सूखी  खांसी के  लंबे दौरे जैसे पड़ते हैं जिससे बच्चों का मुह लाल पड़ जाता है और खांसी के अंत में सांस लेने में विशेष प्रकार की आवाज होती है जिसे हूप (whoop)  कहते हैं. इस कारण इसका नाम whooping cough पड़ा है.

इओसिनोफीलिया  एक विशेष प्रकार के कीड़े के लारवा फेफड़े में पहुंचने से खांसी और सांस की परेशानी हो जाती है. इस में खून में इओसिनोफिल नाम की कोशिका बहुत अधिक मात्रा में मिलती हैं. एक विशेष दवा के प्रयोग से यह बीमारी ठीक हो जाती है.

इन सामान कारणों के अलावा पुरानी खांसी के और भी बहुत से कारण होते हैं. मरीज  द्वारा बताई गई बीमारी की हिस्ट्री, डॉक्टर द्वारा किया गया एग्जामिनेशन एवं कुछ सामान जांचों (सीने का एक्सरे, खून में TLC, DLC, ESR,  कंप्यूटर द्वारा PFT नामक फेफड़ों की जांच एवं बलगम की जांच आदि) द्वारा इनमें से अधिकतर बीमारियों को  डायग्नोस किया जा सकता है.

खांसी के इलाज के लिए उस बीमारी का इलाज किया जाता है जिसके कारण से खांसी हो रही है. यदि बहुत अधिक खांसी से मरीज को परेशानी हो रही है तो खांसी कम करने के लिए कफ़ सिरप आदि दिये जा सकते हैं. सामान्य खांसी जुकाम बुखार आदि से होने वाली खांसी कुछ दिनों में अपने आप ठीक हो जाती है. इन में भी तकलीफ कम करने के लिए सामान्य कफ़ सिरप आदि ले सकते हैं.

आजकल बहुत अधिक प्रदूषण के कारण अधिकांश लोगों को ब्रांकाइटिस की शिकायत हो रही है जिससे साँस की नलियों में  सिकडून  हो जाती है. रोज की दिनचर्या में क्योंकि हम कोई मेहनत का काम नहीं करते इसलिए हमारी   सांस नहीं फूलती है,  और हमें इसका एहसास नहीं होता है. कुछ लोग धूम्रपान करते हैं उन्हें भी शुरू में कई साल तक इसका एहसास नहीं होता कि उन्हें अंदर ही अंदर ब्रांकाइटिस बन रही है. ऐसे लोगों को जब सामान्य खांसी जुकाम होता है तो उनकी खासी बहुत दिनों तक ठीक नहीं होती है. ऐसे में डॉक्टर को दिखाकर जांचें करा लेनी चाहिए, जिससे समय रहते बीमारी को  डायग्नोस और कंट्रोल किया जा सके. हम सब को सभी प्रकार के धुएं विशेषकर सिगरेट बीड़ी एवं चूल्हे के धुएं से बचना चाहिए.

डॉक्टर शरद अग्रवाल एम डी

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