हैल्थ टिप्स ( Health tips )
- यदि कोई व्यक्ति अचानक गंभीर रूप से बीमार हो गया है तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाएं. डॉक्टर को घर बुलाने की कोशिश में समय नष्ट ना करें. एक अकेला डॉक्टर घर पर गंभीर मरीज की ठीक से सहायता नहीं कर सकता.
- शरीर का कोई अंग जल जाए तो उस पर तुरंत बहता हुआ पानी डालें. यदि खाल में छाला बन जाए तो उस हिस्से की खाल को हटाए नहीं व उस पर कोई भी चीज न लगाएं. शीघ्र ही डॉक्टर को दिखाएं. बरनोल कभी न लगाएं.
- छोटे मोटे कटे या छिले घाव को साफ करने के लिए पानी में रूई को उबालकर थोड़ा ठंडा करके उसे साफ करें. डेटॉल, सेवलोन प्रयोग ना करें. सर्जिकल स्पिरिट या आफ्टर शेव लोशन से भी साफ कर सकते हैं. बहुत छोटे घाव पर बैंड एड लगा सकते हैं. थोड़ा बड़ा घाव हो तो डॉक्टर को दिखाकर ठीक से ड्रेसिंग कराना चाहिए. यदि घाव मिट्टी या गंदगी के संपर्क में आया हो तो टिटनेस का टीका भी लगवा लेना चाहिए.
- कुत्ते काटे के घाव को तुरंत बहते पानी व डिटर्जेंट सोप से भली प्रकार धोना चाहिए एवं उसके बाद डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए. घाव में मिर्च इत्यादि कभी ना लगाएं व झाड़ फूंक एवं देसी दवाओं के चक्कर में हरगिज न पड़ें.
- बुखार होने पर पेरासिटामोल ( क्रोसिन, कैल्पोल आदि ) की गोली हर 4 घंटे बाद ले सकते हैं. हल्के-फुल्के सीजनल बुखार एक आध दिन में उतर जाते हैं. तेज दर्द निवारक दवाएं जैसे डिस्प्रिन, कॉन्बिफ्लेम आदि न लें. बहुत तेज बुखार होने पर निमेसुलाइड की आधी गोली ले सकते हैं. अपने आप से एंटीबायोटिक्स न लें क्योंकि हर इंफेक्शन में अलग-अलग एंटीबायोटिक काम करती हैं. ठंड लगकर बुखार आने पर अपने आप से मलेरिया की दवा न खाएं क्योंकि ठंड लगकर बुखार बहुत से कारणों से आ सकता है.
- दस्त होने पर Norflox TZ, Ciplox TZ इत्यादि न लें. इनसे गैस्ट्राइटिस हो सकती है और उल्टियां होने की संभावना बढ़ जाती है.
- गुम चोट लगने पर उसे कुछ देर तक बर्फ से सेकें. इससे अंदर ही अंदर होने वाला खून का रिसाव व सूजन कम हो जाएगी. आयोडेक्स इत्यादि से कोई लाभ नहीं होता. लगाने वाली कुछ दवाएं इतनी तेज होती हैं कि उनसे खाल जल जाती है.
- सर दर्द या शरीर दर्द होने पर हल्की दर्द निवारक दवाएं ही लेना चाहिए. तेज दवाएं तेजाब को बढ़ाती हैं जिससे अल्सर होने की संभावना होती है. तेज दर्द निवारक दवाएं हृदय और गुर्दों पर भी बुरा असर डालती हैं.
- किसी व्यक्ति को सीने में दर्द हो व हार्टअटैक का संदेह हो तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना चाहिए. डॉक्टर को घर बुलाने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए. हार्ट अटैक के मरीज को जितनी जल्दी ICU मैं भर्ती होकर इलाज मिल सके उतना ही अच्छा रहता है.
- जो बच्चे घर में रहते हुए खाने पीने में बहुत परेशान करते हैं, कमजोर व चिड़चिड़े होते हैं, वे सब हॉस्टल में जाकर ठीक से खाने पीने लगते हैं और स्वस्थ हो जाते हैं. कारण यह है कि वहां केवल समय से खाना मिलता है और कोई खाना लेकर उनके आगे पीछे नहीं घूमता.
- यदि आपको किसी काम में रूचि न होती हो, मन में खुशी न होती हो, जीवन बेकार लगता हो तो आप संभवता डिप्रेशन ( उदासी की बीमारी) के शिकार हैं. इस बीमारी में व्यक्ति उदास, निराश व चिड़चिड़ा हो जाता है, उसका पारिवारिक जीवन और काम खतरे में पड़ जाता है और यहां तक कि वह आत्महत्या तक कर सकता है. डिप्रेशन का इलाज ठीक से करने पर यह पूरी तरह ठीक हो जाता है.
- आम तौर पर लोग यह समझते हैं कि फल खाने से बहुत ताकत आती है और शरीर की ग्रोथ होती है. सच यह है कि फलों से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण प्रोटीन वाले भोजन (जैसे दूध की चीजें, दालें, चना, अंडे इत्यादि) होते हैं. फलों के जूस तो खट्टे होने के कारण नुकसान भी करते हैं.
- यदि आपको खर्राटे अधिक आते हैं, खर्राटों के दौरान सांस झटके के साथ टूटती भी हो एवं दिन के समय अधिक नींद आती है तो ये सब एक खतरनाक बीमारी Obstructive Sleep Apnea के लक्षण हो सकते हैं. इसके लिए sleep study नामक जाँच करानी होती है.
- जिन मरीजों को खून की कमी बताई जाती है उनमें से अधिकतर लोग अनार का जूस पीने लगते हैं. सच यह है कि अनार में आयरन बिल्कुल नहीं होता है. इसी तरह चुकंदर में भी बिल्कुल आयरन नहीं होता है.
- खून की कमी के ज्यादातर मरीजों को डॉक्टर आयरन की गोलियां या सिरप लिख देते हैं जबकि बहुत से मरीजों को अन्य कारणों से खून की कमी होती है. कुछ लोगों को विटामिन बी12 या फोलिक एसिड की कमी से खून नहीं बनता है. कुछ लोगों को थैलासीमिया माइनर के कारण खून की कमी होती है. उनको आयरन देने से नुकसान हो सकता है.
- किसी मरीज को खून की बहुत कमी होने पर बहुत से डॉक्टर केवल खून के बोतले चढ़ा देते हैं. चढ़ाया हुआ खून केवल दो तीन हफ्ते में ही खत्म हो जाता है. जांच करा कर यह जानना आवश्यक होता है कि खून की कमी क्यों हो रही है.उसके अनुसार इलाज करने से ही खून की कमी पूरी होती है.
- बहुत से डायबिटीज के मरीज समझते हैं कि चावल में से मांड निकालने से उसका स्टार्च खत्म हो जाता है. सच यह है कि चावल स्वयं में केवल स्टार्च (कार्बोहाइड्रेट) ही होता है.
- मोतीझला के विषय में लोगों में बहुत से अंधविश्वास पाए जाते हैं. लोग इसे टाइफाइड का विशेष लक्षण समझते हैं. सच यह है कि किसी भी बुखार में लंबे समय तक न नहाने के कारण खाल के ऊपर किरेटिन की बारीक सी परत जम जाती है. उसके नीचे पसीने की बारीक बूंदें मोती के समान दिखाई देती हैं. इसे ही मोतीझला कहते हैं.
- छोटे कस्बों में स्थान स्थान पर ऐसी पैथोलॉजी लैब खुल गई हैं जिन्हें टेक्नीशियन लोग चला रहे हैं. यह एकदम गैरकानूनी है एवं इन की रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं होती. इसी प्रकार कुछ अस्पतालों व धर्मार्थ चिकित्सालय में केवल टेक्निशियन लोग टेस्ट करते हैं जोकि ठीक नहीं है. जांचें वहीँ कराना चाहिए जहां पैथोलॉजिस्ट स्वयं जांचें करते हैं.
- यदि किसी व्यक्ति का बहुत अधिक खून अचानक से बह जाए तो एक दम से ब्लड प्रेशर कम होने का खतरा होता है. ऐसे में तुरंत खून चढ़ाना ही सही उपचार है पर तुरंत खून उपलब्ध न होने पर ग्लूकोस सेलाइन (glucose saline) की बोतल चढ़ा कर ब्लड प्रेशर को मेंटेन किया जा सकता है. कुछ लोग ग्लूकोज की बोतल के स्थान पर हीमेक्सेल नाम की एक बहुत महंगी बोतल चढ़ाते हैं जिसका खून के हीमोग्लोबिन से कोई संबंध नहीं होता और जिस से कोई लाभ भी नहीं होता है. हद तो यह है कि कुछ झोलाछाप डॉक्टर खून की कमी के मरीजों में भी हीमेक्सेल की बोतल चढ़ा कर अनाप शनाप पैसे ऐंठ लेते हैं.
- बहुत से मरीज ऐसा बताते हैं कि उनकी ब्लड शुगर बहुत कम निकली इसलिए डॉक्टर ने उन्हें खूब चीनी खाने को बोला है जिससे उनकी शुगर डाउन न हो जाए. यह एक बहुत बड़ी गलतफहमी है. सच यह है कि कोई व्यक्ति यदि जिंदगी भर चीनी न खाए तब भी उसकी शुगर डाउन नहीं होगी. मनुष्य के अलावा कोई भी जानवर चीनी नहीं खाता लेकिन उनकी शुगर डाउन नहीं होती है. ब्लड शुगर केवल तभी डाउन होती है जब आपने डायबिटीज की दवा खाई हो या इंसुलिन का इंजेक्शन लगाया हो और खाना उसके अनुसार न खाया हो. डायबिटीज के मरीज को दस्त या उल्टी होने पर भी शुगर डाउन होने का डर रहता है.
- पीलिया होने पर कभी झाड़ने के चक्कर में न पड़ें, न ही कोई देशी दवा खाएं. झाड़ने वाले केवल हाथ की सफाई दिखाकर अंधविश्वासी जनता को बेवकूफ बनाते हैं. अधिकांश मरीजों में पीलिया अपने आप ठीक होता है जिसका क्रेडिट यह ठग लोग ले लेते हैं. देसी दवाओं में कुछ दवाएँ लिवर और गुर्दों को हानि पहुँचा सकती हैं.
- ऐलर्जी द्वारा होने वाली खाल की बीमारियों में डेटॉल, सैवलॉन, निको व नीम साबुन आदि प्रयोग न करें. इनसे खाल को नुकसान हो सकता है. खाल को साफ करने व नहाने के लिए भी डेटॉल का इस्तेमाल न करें. यदि खाल में बार बार फोड़े फुंसी का इन्फेक्शन होता हो इन चीजों का प्रयोग कर सकते हैं. फंगल इन्फेक्शन में भी डेटॉल व सैवलॉन नुकसान करते हैं. याद रखें, ऐलर्जी, फंगल इन्फेक्शन और फोड़े फुंसियाँ ये सब एकदम अलग बीमारियाँ हैं.
- त्वचा (खाल, skin) से सम्बंधित हर बीमारी में डेटोल (Dettol) लिक्विड या साबुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इस से खाल में एलर्जी हो सकती है. विशेषकर जननांगों की कोमल त्वचा को डेटोल बहुत नुकसान कर सकता है. कुछ लोग डेटोल लिक्विड को बिना पानी मिलाए त्वचा पर लगा लेते हैं जिससे खाल जल जाती है. डेटोल का प्रयोग केवल त्वचा की उन बीमारियों में करना चाहिए जो कीटाणुओं द्वारा इन्फेक्शन करने से होती हैं.
- टाइफाइड बुखार को डायग्नोस करने के लिए बहुत से लोग विडाल टेस्ट कराते हैं. एक बार टाइफाइड होने के बाद यह टेस्ट बहुत लंबे समय तक पॉजिटिव आ सकता है इसलिए यह विश्वसनीय नहीं होता. जिन डॉक्टरों या मरीजों को इस बात की जानकारी नहीं होती वे बार-बार इस टेस्ट को कराते रहते हैंऔर अनावश्यक एंटीबायोटिक्स खाते रहते हैं.
- बहुत से मरीजों को ऐसा लगता है कि उन्हें लंबे समय से बुखार है. उन्हें बुखार होता ही नहीं है, वे बुखार नाप कर देखते भी नहीं हैं और विडाल टेस्ट करा लेते हैं. विडाल टेस्ट हल्का सा पॉजिटिव आने पर वे टाइफाइड के धोखे में फालतू एंटीबायोटिक्स खाते रहते हैं.
- अधिकतर लोग यह समझते हैं कि यदि उनका मुँह कड़वा रहता है तो उन्हें बुखार है. सच यह है कि बुखार के अतिरिक्त भी मुँह कड़वा होने के बहुत से कारण होते हैं जिन में सबसे कॉमन कारण है एसिड के कारण आमाशय (stomach) में सूजन होना.
- दमा व गठिया के इलाज में देसी पुड़िया कभी न खाएं. इस प्रकार की पुड़िया बेचने वाले ठग लोग इसमें बेटनीसोल आदि स्टेरॉयड दवाएं मिला देते हैं जिनसे गठिया के दर्द या सांस फूलने में तुरंत आराम मालूम होता है पर फिर मरीज इन का बुरी तरह आदी हो जाता है और यह बहुत नुकसान करती हैं.
- अखबारों में विज्ञापन देकर मिर्गी का पवित्र इलाज करने वाले केवल ठग हैं. उनकी पुड़ियों में मिर्गी की सबसे सस्ती और सबसे स्ट्रांग दवा Epilan होती है जोकि बहुत नशा करती है इसलिए इसको डॉक्टर आमतौर पर प्रयोग नहीं करते. उसके अलावा पवित्र आयुर्वेदिक दवा के नाम पर और सब चीजें केवल स्टंट होती हैं.
- नाप सरकना और मलवाने से उसका ठीक हो जाना केवल मन के भ्रम है. इसी प्रकार कौड़ी भी कोई बीमारी नहीं होती.
- झाड़ फूंक करने वाले और भूत भगाने वाले केवल बातें बना कर और हाथ की सफाई दिखाकर भोले भाले और अंधविश्वासी लोगों को ठगते हैं. कुछ मानसिक रोगियों को दिमागी बीमारी के कारण तरह तरह की आवाजें सुनाई देती हैं या लोग दिखाई देते हैं. उसी को ये लोग भूत प्रेत बता देते हैं. कुछ लोग अपनी बात मनवाने के लिए अपने ऊपर भूत प्रेत या देवी देवता आने का नाटक भी करते हैं.
- नब्ज देखकर बीमारी बताने वाले हकीम केवल ठग होते हैं. वे केवल मरीज के हाव भाव एवं चाल ढाल देखकर अंदाज से कुछ सामान्य बातें बता देते हैं जो कि ज्यादातर लोगों पर फिट बैठती हैं. अंधविश्वासी लोग समझते हैं कि उनका मर्ज पकड़ लिया गया है
- बहुत से लोगों को यह वहम होता है के एलोपैथिक दवाएं उन्हें गर्मी करती हैं व रिएक्शन करती हैं. इनमें से अधिकतर लोगों को तेजाब के कारण पेट में सूजन होती है जिसमें दवा पहुंचने से बेचैनी होती है. कुछ लोगों को किसी विशेष दवा से एलर्जी भी हो सकती है. यदि किसी विशेष दवा से परेशानी होती है तो उसके बदले में अन्य दवाएं दी जा सकती हैं. ऐसे लोगों को अपने पर्चे संभाल कर रखना चाहिए और माफिक आने वाली एवं न आने वाली दवाओं की लिस्ट बनानी चाहिए.
- हेपेटाइटिस बी, एड्स के समान एक अत्यंत खतरनाक बीमारी है जोकि इंफेक्टेड खून द्वारा फैलती है. खून चढ़ाने से पहले उसकी पूरी जांच होना आवश्यक होता है. जो लोग खून बेचते हैं उनके खून में यह बीमारी अक्सर पाई जाती है.
- हेपेटाइटिस बी और एड्स इंफेक्टेड सुइयों से भी फैल सकते हैं.जब भी कोई इंजेक्शन लगवाना हो तो उसे डिस्पोजेबल सिरिंज से ही लगवाएं. खाल में गुदवाने (tattoo) से भी ये इंफेक्शन फैल सकते हैं. गली मोहल्लों में घूमने वालों से नाक कान नहीं छिदवाना चाहिए. एक्यूपंक्चर की सुइयों से भी ये इंफेक्शन हो सकते हैं.
- नाई के उस्तरे से खाल में हल्का सा कट लग जाने से भी यह इंफेक्शन हो सकता है, इसलिए यदि नाई से शेव बनवाएँ तो नए ब्लेड से ही बनवाना चाहिए. बाल कटवाने के बाद गर्दन के बाल भी उस्तरे की बजाए मशीन से साफ करवाना चाहिए.
- बहुत से मोटे लोग वजन कम करने के लिए सुबह शहद नींबू का सेवन करते हैं. सच यह है कि शहद में काफी कैलरी होती है जिन से वजन बढ़ सकता है.
- अखबारों और टीवी में लाखों करोड़ों रुपए के विज्ञापन देकर बिकने वाली ताकत की दवाएं, लंबाई बढ़ाने की दवाएं, मोटापा कम करने की दवाएं, याददाश्त बढ़ाने वाली दवाएं, जोड़ों के दर्द के तेल, बवासीर, गंजेपन मर्दाना ताकत की दवाएं आदि केवल फ्रॉड होती हैं. इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता.
- बहुत से लोगों का यूरिक एसिड (Uric acid) थोड़ा सा बढ़ा हुआ होता है लेकिन उन्हें गाउट (gout) की बीमारी नहीं होती. जिन डॉक्टर्स को इस की जानकारी नहीं होती वे अनावश्यक रूप से यूरिक एसिड कम करने की दवाएं देना शुरू कर देते हैं. इससे बड़ा अनर्थ यह होता है कि वे सारे प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ बंद करने को बोल देते हैं. सच यह है कि दूध, दही, पनीर व अंडे से यूरिक एसिड नहीं बढ़ता है.
- टीबी की डायग्नोसिस करने के लिए बहुत से डॉक्टर PPD टेस्ट कराते हैं. टेस्ट पॉजिटिव आने पर टीबी का इलाज शुरू कर देते हैं. सच यह है कि PPD टेस्ट केवल यह बताता है कि बचपन से लेकर अभी तक व्यक्ति को कभी टीबी कीटाणु से इन्फेक्शन हुआ है और उसके अन्दर टीबी के खिलाफ एंटीबाडीज मौजूद हैं. इस समय टीबी का इन्फेक्शन है या नहीं यह इस टैस्ट से नहीं मालूम होता है.
- बहुत से लोगों को यह अन्धविश्वास होता है कि नंगे पैर घास पर चलने से आँखों की रौशनी बढ़ती है व अन्य कई लाभ होते हैं. सच यह है कि इस से कोई लाभ नहीं होता बल्कि पैर की खाल में तरह तरह के इन्फेक्शन और पेट में एक विशेष प्रकार के कीड़े (anchylostoma duodenale) होने का डर रहता है. डायबिटीज के मरीजों को तो कभी भी नंगे पैर नहीं चलना चाहिए क्योंकि पैर में सुन्न पन होने के कारण उन्हें चोट लगने या कुछ चुभने का एहसास नहीं होता जिससे पैर में खतरनाक इन्फेक्शन और गैंग्रीन हो सकती है.
- आजकल युवा और किशोर अपनी मांसपेशियां बनाने के लिए जिम (gym) में जा कर व्यायाम करते हैं जोकि अच्छा है. पर वे साथ में जिम के मालिकों द्वारा सुझाए गए अत्यधिक महंगे प्रोटीन सप्लीमेंट भी लेते हैं जोकि बिलकुल अनावश्यक हैं. विशेष कर व्हे प्रोटीन (whey protein) से कोई अतिरिक्त लाभ नहीं है. इसके अलावा कुछ सप्लीमेंट में स्टेरॉयड दवाएँ मिली होती हैं जोकि बहुत हानिकारक होती हैं. वास्तव में जिम वालों की मुख्य आय इन सप्लीमेंट को बेचने से ही होती है. प्रोटीन के सबसे अच्छे स्रोत हैं दूध व दूध से बनी चीज़ें, अंडा एवं दालें. नॉन वेजीटेरियन खाद्य पदार्थों में अंडे के बाद प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत मछली है. चिकेन, मटन व पोर्क में भी प्रोटीन अच्छी मात्रा में होता है बशर्ते कि इन्हें बहुत कम मसाले से बनाया जाए.
- सामान्य लोगों को यह अंधविश्वास होता है कि केवल लोहे से लगने वाली चोट से ही टिटनेस होती है. सच यह है कि टिटनेस के सबसे अधिक कीटाणु सड़क की धूल में पाए जाते हैं. अर्थात सड़क पर लगने वाली चोटों में टिटनेस का खतरा सबसे अधिक होता है.
- जिन लोगों को सर में रूसी (dandruff) की शिकायत होती है वे यह समझते हैं कि उनके सर में खुश्की है और तरह तरह के तेल डालने लगते हैं. सच यह है कि सर में रूसी होना एक प्रकार की बीमारी है जो त्वचा के इन्फेक्शन से होती है. तेल डालने से यह बीमारी और बढ़ जाती है. विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले भांति भांति के रूसी कम करने वाले, बाल लम्बे करने वाले, बाल काले करने वाले और टेंशन कम करने वाले तेलों से कोई लाभ नहीं होता बल्कि नुकसान हो सकता है.
- गुर्दे की पथरी वाले अधिकतर मरीज़ यह समझते हैं कि होम्योपैथिक एवं देसी दवाओं से पथरी निकल जाती हैं. सच यह है कि जो भी छोटी पथरियां होती हैं वे सब बिना किसी भी दवा के केवल अधिक पानी पीने से निकल जाती हैं और बड़ी पथरियां किसी भी दवा से नहीं निकलतीं. केवल हिन्दुस्तान में गुर्दे की पथरियों के हजारों ऑपरेशन रोज होते हैं, वे सभी मरीज़ महीनों तक देसी या होम्योपैथिक दवाएं खाए हुए होते हैं.
- लोगों को यह अंधविश्वास है कि पथरी निकालने में होम्योपैथी कारगर है. यह अंधविश्वास इसलिए कायम हुआ है क्योंकि जो पथरी अपने आप निकल जाती हैं उन्हें होम्योपैथी वाले दावा करते हैं कि उनकी दवा से निकल गईं. इस अंधविश्वास का फायदा उठाने के लिए होम्योपैथी वाले पित्त की पथरी निकालने की दवा भी देने लगते हैं और लोगों को महीनों तक बेवकूफ बनाते रहते हैं. सच यह है कि होम्योपैथी और देसी में कोई दवा ऐसी नहीं है जिससे पित्त की पथरी निकल जाएं. आधुनिक चिकित्सा में एक दवा ऐसी है जिसको लगातार खाने से पित्त की पथरी गल सकती है लेकिन उसको दो कारणों से प्रयोग नहीं करते हैं – पहला यह कि पथरी गलने के बाद दुबारा बनने की संभावना बहुत अधिक होती है, दूसरे पथरी का साइज़ कम होने पर वह पित्त की नली में जा सकती है जहाँ उसके अटक जाने से पीलिया एव पैन्क्रियाटाईटिस नामक खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं.
- जिन लोगों का वज़न अधिक होता है उन्हें चिकनी चीजें (fatty foods) खाने को मना किया जाता है. ऐसे में अधिकतर लोग घी व मक्खन खाना तो कम कर देते हैं पर वे रिफाइंड आयल खाते रहते हैं क्योंकि अधिकतर लोग समझते हैं कि रिफाइंड आयल में चिकनाई नहीं होती. सच यह है कि देसी घी, वनस्पति घी, रिफाइंड आयल, सरसों का तेल व जैतून का तेल, इन सभी में कैलोरी की मात्रा बिलकुल बराबर होती है. हाँ! सभी प्रकार के तेलों व वनस्पति घी में कोलेस्ट्रॉल नहीं के बराबर होता है जिसका महत्त्व हृदय रोग में तो है पर वज़न बढ़ाने में कोई योगदान नहीं है.
- अधिकतर लोगों को यह अन्धविश्वास होता है कि दूध पीने से बलगम बनता है. इस कारण से लोग खांसी जुकाम होने पर दूध पीना बंद कर देते हैं. सच यह है कि दूध पीने से बलगम बनता नहीं है बल्कि जो बलगम पहले से बना हुआ हो वह आसानी से निकलने लगता है.
- बहुत से लोगों को यह अन्धविश्वास होता है कि फार्मी अंडे में ताकत नहीं होती. वे देसी मुर्गी के अंडे ढूँढते रहते हैं. सच यह है कि फार्मी अंडा देसी के मुकाबले कुछ मायनों में बेहतर होता है, इसका आकार बड़ा होता है और यह शुद्ध होता है. देसी अंडे से इन्फेक्शन की सम्भावना भी होती है.
- अधिकतर लोग यह समझते हैं कि अंडे की ज़र्दी (पीले हिस्से, yolk) में ताकत होती है और सफ़ेद भाग बेकार होता है. सच यह है कि सफ़ेद भाग पूरा का पूरा एल्ब्यूमिन (albumin) होता है जोकि सबसे उत्तम प्रकार की प्रोटीन है. पीले भाग में काफी मात्रा में कोलेस्ट्रोल होता है जोकि हृदय रोग आदि को बढ़ाता है.
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बहुत से लोगों को यह अंधविश्वास होता है कि अंडा गर्मी करता है, इसलिए वे गर्मी के मौसम में अंडा नहीं खाते हैं. यह केवल एक भ्रम है. गर्मी के मौसम में भी अंडा खाने से बहुत फायदा होता है. यह जरूर है कि पहले जब घरों में फ्रिज नहीं होते थे तब गर्मी के मौसम में अंडे जल्दी खराब हो जाते थे इसलिए उन्हें खाने में दिक्कत आती थी. अब फ्रिज में रखने पर अंडे बहुत समय तक खराब नहीं होते और गर्मियों में भी आसानी से खाए जा सकते हैं.
- यदि कोई व्यक्ति अचानक से बेहोश हो जाए तो अधिकतर लोग उसे होश में लाने के लिए उस पर पानी छिड़कते हैं और उस के मुँह में पानी डालने की कोशिश करते हैं. यदि कोई व्यक्ति वास्तव में बेहोश है तो उस के मुँह में पानी कभी नहीं डालना चाहिए क्योंकि पानी बेहोश व्यक्ति के फेफड़े में जा सकता है जिससे बहुत खतरा हो सकता है.
- यदि किसी को दौरा पड़ रहा हो तो सामान्य लोगों के लिए यह जानना बहुत कठिन होता है कि यह मिरगी का दौरा है या हिस्टीरिया का. ऐसे में मरीज़ के कपड़े थोड़े ढीले कर के उसे तीन चौथाई करवट से लिटा देना चाहिए और जल्दी ही अस्पताल ले जाने का प्रबंध करना चाहिए. यदि दौरे के समय की विडियो बना सकें तो बना लेना चाहिए क्यों कि मिर्गी की डायग्नोसिस के लिए यह देखना आवश्यक होता है कि दौरा किस प्रकार का है.
- जिन लोगों को त्वचा में खुजली की शिकायत होती है वे अक्सर डॉक्टर को दिखाए बिना केमिस्ट के यहाँ से तरह तरह की ट्यूबें ले कर लगा लेते हैं. इन में से अधिकतर में एंटीबायोटिक और दाद की दवाओं के साथ स्टेरॉयड दवाएं मिली होती हैं. इनसे एकदम से आराम मालूम होता है लेकिन इन्फेक्शन करने वाले कीटाणु और फंगस खाल में अधिक गहराई तक पहुँच जाते हैं और उन पर दवाओं का असर कम हो जाता है. (resistance हो जाता है)
- हम सभी लोग यह चाहते हैं कि यदि हमें कोई बीमारी हो तो फ़ौरन पकड़ में आ जाए और उसका इलाज करवा लिया जाए. हमारे मन के इस डर का फायदा उठाने के लिए कॉर्पोरेट लैब्स ने तरह तरह के पैकेज निकाल दिए हैं, जिनमें वे बहुत सारी खून की जांचें करते हैं और लोगों को बहकाते हैं कि यह सारे शरीर की जाँच (whole body test) है. सच यह है कि इनमें से अधिकतर जांचें फ़ालतू होती हैं और अधिकतर बीमारियाँ इन जांचों से पकड़ में नहीं आती हैं.
- कोरोना से बचाव के लिए आजकल बहुत से लोग तरह तरह के काढ़े पी रहे हैं. सच यह है कि रोग प्रतिरोध क्षमता (immunity) किसी गिलोय, दालचीनी या अदरख से नहीं बल्कि संतुलित व पौष्टिक सादे भोजन और व्यायाम करने से बढ़ती है. देसी काढ़े पीने से कोई लाभ नहीं होता बल्कि आजकल एसिडिटी और अल्सर की शिकायत बहुत लोगों को हो रही है.
- बहुत से लोगों को यह भ्रम होता है कि ब्लड प्रेशर की एलोपैथिक दवा नुकसान कर सकती हैं और इनकी आदत पड़ जाती है इसलिए वे दवा खाने से बचते हैं. सही बात यह है कि ब्लड प्रेशर थोड़ा सा भी बढ़ा हो तो हृदय, गुर्दों व रक्त धमनियों (arteries) को हानि पहुँचाता है जबकि दवाएँ कोई हानि नहीं पहुंचातीं. यदि ब्लडप्रेशर लगातार बढ़ा हुआ न रहे व कुछ समय के लिए बढ़े तो भी उससे नुकसान होता है.
- ब्लडप्रेशर की दवाओं से बचने के लिए बहुत से लोग आयुर्वेदिक दवा मुक्तावटी खाने लगते हैं. मुक्तावटी में सर्पगंधा नाम की खतरनाक दवा होती है जिस में बहुत से साइड इफेक्ट्स होते हैं. इसका सबसे प्रमुख साइड इफ़ेक्ट है डिप्रेशन.
- बहुत से ब्लड प्रेशर और हार्ट के मरीजों को डॉक्टर्स द्वारा नमक कम खाने की सलाह दी जाती है. इनमें से कुछ लोग सेंधा नमक खाने लगते हैं. इस से कोई लाभ नहीं है. सेंधा नमक में बहुत सी अशुद्धियाँ होती हैं जिन से हानि हो सकती है. इसके अतिरिक्त इस में पोटैशियम अधिक मात्रा में होता है जो कि गुर्दे के मरीजों को नुकसान पहुँचा सकता है. हम सभी लोगों को आयोडीन युक्त सफ़ेद शुद्ध नमक ही खाना चाहिए और कम मात्रा में खाना चाहिए.
- बहुत से लोग यह समझते हैं कि छिपकली में बहुत अधिक जहर होता है. यदि उन के ऊपर छिपकली गिर जाए (और विशेषकर अगर छिपकली के पंजे से खरोंच लग जाए) तो वे अत्यधिक घबरा जाते हैं और घबराहट के कारण उन को तरह तरह की परेशानियां होने लगती हैं. सच यह है कि छिपकली में कोई खतरनाक जहर नहीं होता है और छिपकली का दांत या पंजा लगने से कोई खतरा नहीं होता. यदि छिपकली दूध में या खाने में गिर जाए तो भी कोई खतरा नहीं होता.
- बहुत से लोगों को यह अंधविश्वास होता है कि सांप के अंडों मे जहर होता है जिससे आदमी मर सकता है। सच यह है कि सांप के अंडे व सांप के शरीर में जहर नहीं होता.
- बहुत से लोगों को यह अन्धविश्वास होता है कि खसरे और चिकेन पॉक्स (छोटी माता) में दवा नहीं देनी चाहिए. कुछ लोग मालिन को बुला कर झाड़ फूंक भी कराते हैं. यह सही है कि ये दोनों वाइरल इन्फेक्शन से होने वाली बीमारियाँ हैं इसलिए इन में अनावश्यक दवाएँ नहीं देनी चाहिए, लेकिन सच यह है कि इन में कॉम्प्लिकेशंस से बचने के लिए योग्य डॉक्टर्स द्वारा सही इलाज किया जाना बहुत आवश्यक है.
- बहुत से लोगों को खून की कमी के कारण त्वचा का रंग पीला हो जाता है. वे उसे पीलिया समझ कर देसी इलाज करने या झड़वाने लगते हैं जिससे उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाता. झाड़ने वाले उन्हें बेबकूफ बनाते रहते हैं और कुछ मरीज खतरनाक स्थिति में भी पहुँच जाते हैं. पीलिया की सबसे आसान पहचान यह है कि इस में पेशाब लगातार बहुत अधिक पीले रंग की आती है.
- अप्रैल के महीने में मौसम के बदलाव के कारण कुछ इन्फेक्शन अधिक होते हैं. इनमें से प्रमुख हैं कीटाणुओं और वायरस द्वारा होने वाले दस्त. अप्रैल के महीने में नया गेहूँ भी आता है तो बहुत से लोग समझते हैं कि नए गेहूँ की गर्मी से दस्त हो रहे हैं. सच यह है कि दस्तों से बचाव के लिए इन्फेक्शंस से बचना चाहिए. बाज़ार की चीजें नहीं खाना चाहिए और पानी को उबाल कर या फिल्टर कर के पीना चाहिए.
- जब छोटे बच्चों के दांत निकलते हैं तो वे हर समय मुँह में कुछ न कुछ डालते हैं. इससे उन के पेट में गंदगी पहुँच जाती है व इन्फेक्शन होने से दस्त हो जाते हैं. बहुत से लोग इन्हें दांत के दस्त कह कर हल्के में लेते हैं. इस प्रकार के दस्तों से बचने के लिए बच्चों के हाथ साफ़ रखने चाहिए व उन्हें अच्छी कंपनी के teether (चबाने योग्य रबर की वस्तुएं) साफ़ कर के देनी चाहिए.
- हमारे समाज में खाने की कुछ चीजों को लेकर यह अंधविश्वास है कि वे बादी करती हैं. विशेषकर चावल, अरबी (घुइंया), उड़द की दाल, गोभी, कटहल आदि को लोग बादी बताते हैं. ये सब केवल मन के भ्रम हैं. किसी भी दाल, सब्जी, अंडे या मीट मछली को यदि अधिक घी, तेल, मिर्च मसाले, गरम मसाले, खटाई व टमाटर डाल कर बनाया जाए तो उसे पचाने में परेशानी होती है एवं उससे एसिडिटी भी होती है.
- एलर्जी टेस्ट को लेकर लोगों में बहुत भ्रम पाया जाता है. इसका फायदा उठाने के लिए कुछ कम्पनियाँ अखबार में बड़े बड़े विज्ञापन दे कर बहुत से लोगों का खून की जांच से एलर्जी टेस्ट कर देती हैं. जुकाम और दमे से अधिक त्वचा रोग वाले बहुत से मरीज और जिन को दवाओं से रिएक्शन होता है ऐसे मरीज अपना टेस्ट करा लेते हैं. वास्तव में इस टेस्ट की उपयोगिता और विश्वसनीयता बहुत कम होती है.
- एसिडिटी के मरीजों के इलाज के लिए बहुत से डॉक्टर पेट में नली डाल कर तेज़ाब निकालते हैं. यह एकदम अनावश्यक इलाज है. जब तक एसिड को कम करने वाली दवाएँ उपलब्ध नहीं थीं तब तक तो इस इलाज की कुछ उपियोगिता थी, पर अब एसिड कम करने और अमाशय (stomach) की सूजन कम करने वाली बहुत अच्छी दवाएँ उपलब्ध हैं इसलिए इस प्रकार के इलाज की कोई आवश्यकता नहीं है.
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हम सभी जानते हैं कि अधिक नमक खाना नुकसान देह होता है (विशेषकर ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, गुर्दा रोग एवं लिवर के मरीजों को)। बहुत से लोग सामान्य सफेद नमक (Nacl, सोडियम क्लोराइड) को कम खाने के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग करने लगते हैं। वे सोचते हैं कि सेंधा नमक नुकसान नहीं करता इसलिए जितना चाहे खा सकते हैं। यह एक भ्रामक विचार है। सेंधा नमक में पोटेशियम अधिक मात्रा में होता है एवं कुछ अन्य अशुद्धियां भी होती हैं जिसके कारण रोज खाने एवं अधिक मात्रा में खाने से यह नुकसान कर सकता है। विशेषकर गुर्दे के मरीजों को तो सेंधा नमक बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।
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हम में से अधिकतर लोगों को सफर के दौरान या शादी पार्टी इत्यादि में कभी न कभी बाहर खाना पड़ता है। इस प्रकार के खाने से होने वाले इंफेक्शन से बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम केवल वही चीज़ें खाएं जो सिकी हुई, उबली हुई या तली हुई हों (जैसे रोटी, कचौड़ी, नान, तेज गरम सब्जी व दाल या तुरन्त के बने हुए तेज गरम फ़ास्ट फ़ूड)। इस प्रकार के स्थानों पर कोई चटनी, सलाद, जूस, शेक, गोल गप्पे इत्यादि नहीं लेना चाहिए।
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अधिकतर लोग यह समझते हैं कि देसी नुस्खों एवं आयुर्वेदिक व हकीमी दवाओं से कोई नुकसान नहीं होता। सच यह है कि इन दवाओं से भी बहुत से साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। इसके अलावा एक खतरा यह भी है कि बहुत से वैद्य हकीम अपनी दवाओं में तेज एलोपैथिक दवाएं (जैसे स्टेरॉइड एवं दर्द निवारक दवाएं) बहुत अधिक डोज़ में पीस कर मिला देते हैं।
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बहुत से लोग बाथरूम में गैस गीज़र का प्रयोग करते हैं. इस में LPG की लौ द्वारा पानी गर्म किया जाता है. बंद बाथरूम में देर तक गीज़र जलाने से ऑक्सीजन गैस कम होने लगती है और उसके बाद यदि गैस जलती रहे तो हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड गैस बनने लगती है. कार्बन मोनोऑक्साइड में कोई गंध नहीं होती और इसकी मात्रा बढ़ने पर उस हवा में सांस लेने वाला व्यक्ति धीरे धीरे बेहोश हो जाता है. जाड़ों की रात में बंद कमरे में अंगीठी जलाने से भी ऐसा ही होता है और बंद गेराज में कार स्टार्ट कर के छोड़ने से भी यही होता है. ऐसे व्यक्ति को यदि तुरंत बाहर निकाल कर उपचार न किया जाए तो उसकी मृत्यु निश्चित होती है. यदि कोई व्यक्ति बाथरूम में गैस गीज़र इस्तेमाल करना चाहता है तो उसे खुले बाथरूम में पानी गर्म कर के बाल्टी में पानी भर कर नहाना चाहिए.
- बहुत से लोगों को अमाशय (stomach) में अधिक एसिड बन रहा होता है लेकिन उन्हें खट्टी डकारें नहीं आतीं व सीने में जलन नहीं होती. वे यह मानने को तैयार नहीं होते कि उन्हें एसिडिटी है. सच यह है कि एसिड अधिक बनना (hyperacidity) और एसिड का ऊपर खाने की नली में आना (acid reflux) दो अलग चीजें हैं. कुछ लोगों को यह दोनों परेशानियाँ होती हैं और कुछ को दोनों में से एक. सीने में जलन और खट्टी डकारें उन लोगों को आती हैं जिन्हें एसिड रिफ्लक्स की परेशानी होती है, लेकिन जिन लोगों को केवल हाइपर एसिडिटी होती है उन्हें भी एसिड के कारण अल्सर बनने का उतना ही डर होता है.
- बहुत से लोगों में दोनों बांहों में ब्लडप्रेशर में काफी अंतर होता है. ऐसे व्यक्ति में जिस बांह में अधिक ब्लडप्रेशर होता है वही उस व्यक्ति का ब्लडप्रेशर माना जाता है. इस प्रकार के लोगों को अपना ब्लडप्रेशर हमेशा उसी बांह में नपवाना चाहिए. कुछ लोगों में दोनों बाँहों में ब्लडप्रेशर बहुत कम होता है या रिकॉर्ड ही नहीं होता है जबकि उनका ब्लडप्रेशर ठीक होता है. ऐसा कुछ विशेष बीमारियों में होता है जिनकी जांचें और इलाज कराना आवश्यक होता है.
- डॉ. शरद अग्रवाल एम डी